Legal & Social Awareness Diaries by Advocate Karim Ahmad ~3 | by Swapnil Saundarya
SWAPNIL SAUNDARYA e-zine
Vol-08, Year-2020, SPECIAL ISSUE
Legal & Social Awareness Diaries by Advocate Karim Ahmad~3
| Mens Rea (दुराशय) अपराध दण्ड संहिता का एक प्रमुख तत्व |
न्यायमूर्ति कोक ने अपनी पुस्तक 'थर्ड इंस्टीट्यूट' सन्त अगस्ताइन के धर्मोपदेश का आधार लेते हुये एक सूत्र का प्रयोग किया है। यह सूत्र है -
"ACTUS NON FACIT REUM NISI MENS SIT REA" (ऐक्ट्स नॉन फेसिट रियम निसी मेन्स सिट रिया )
इसका अर्थ है कि दुराशय के बिना केवल कार्य किसी व्यक्ति को अपराधी नही बनाता। आज यह सूत्र अंग्रेजी आपराधिक विधि का अधार-स्तंभ बन गया है। यह सूत्र उतना ही प्राचीन है जितनी अंग्रेजी दाण्डिक विधि ।
उपरोक्त सूत्र का विश्लेषण करने से यह सुनिश्चित होता है कि किसी कृत्य को अपराध मानने के लिये दो आवश्यक तत्वों का होना आवश्यक है--
1- शारीरिक या भौतिक कृत्य (Actus Reus )
2- मानसिक तत्व या दुराशय (Mens Rea )
उपरोक्त दोनों तत्वों को विस्तार से समझते हैं :-
(1) शारीरिक या भौतिक कृत्य (Actus Reus )
शारीरिक या भौतिक कृत्य से तात्पर्य सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनो तरह से कार्यो से है। सकारात्मक कृत्य (Positive action) से तात्पर्य किसी मनुष्य की सकारात्मक गतिविधि से है। नकारात्मक कृत्य से तात्पर्य मनुष्य के ऐसे कृत्य या आचरण से है, जिसे देश की विधि (Law of land ) के किसी प्राविधान द्वारा निषिद्ध या वर्जित घोषित किया गया हो। किसी ऐसे कार्य को न करना जिसे करने के लिये देश की विधि द्वारा अपेक्षा की गई हो, नकारात्मक (Negative ) कृत्य है। अर्थात किसी कार्य को करना मनुष्य का कर्तव्य है, कार्य करने से चूक (अकार्य ) भी एक कार्य करने के समान हो जाता है। भारतीय दंड सहिंता की धारा 33 में अकृत्य या चूक को कृत्य के समान ही दण्डनीय माना जाता है। इसे एक उदाहरण से समझते हैं :- यदि a एक रोगी है तथा b उसकी देखभाल के लिये नियुक्त है। यदि b द्वारा a की देखभाल करने में उपेक्षा करने (खुराक या दवा न देने ) के कारण a की मृत्यु हो जाती है, तो b का यह कृत्य उसे आपराधिक मनाववध के अपराध के लिये दोषी बना देगा।
(2) मानसिक तत्व या दुराशय (Mens Rea )
दुराशय का अर्थ है विद्वेषपूर्ण या बुरा आशय या ' आपराधिक आशय' । दुराशय किसी व्यक्ति की आपराधिक मनोवृति का द्योतक है। दुराशय या आपराधिक मनःस्थिति के पीछे कोई न कोई कारण होता है जो ऐसे आशय को जन्म देता है। दुराशय सामान्यतः अपराध के गठित होने की अनिवार्य शर्त है। दाण्डिक विधि की यह मान्यता है कि दोषी मस्तिष्क के अभाव में किसी प्रकार के अपराध को नही किया जा सकता।
इससे स्पष्ट है कि व्यक्ति के किसी भी कृत्य को अपराध बनाने के लिये यह आवश्यक है कि वह कृत्य आपराधिक आशय या 'दुराशय' (Mens Rea ) से किया गया हो। किसी ऐसे कार्य जो सदभावपूर्ण या निष्कपटतापूर्ण ढंग से किया गया है, भले ही उस कार्य से किसी व्यक्ति को क्षति हुई हो, उससे कोई भी आपराधिक दायित्व उत्पन्न नही होता क्योंकि उसमें दुराशय (Mens Rea ) या आपराधिक आशय का अभाव होता है। इस प्रकार हर तरह के आपराधिक कृत्य में उस अपराध को करने का आशय या दुराशय (Mens Rea ) होना आवश्यक है जैसे हत्या के मामले में हत्या का आशय, चोरी के अपराध में चुराई हुई वस्तु का बेईमानी से इस्तेमाल करने का आशय आदि।
यद्यपि दुराशय का अर्थ आपराधिक मनःस्थिति से कृत्य करना होता है, परन्तु यदि कोई व्यक्ति बिना सोंचे-समझे कोई कार्य करता है तथा उस कार्य से किसी को कोई क्षति होती है तो यह माना जायेगा कि उस व्यक्ति ने कार्य आपराधिक मनःस्थिति के साथ किया है क्योंकि लापरवाही पूर्ण कार्य के बारे में आपराधिक मनःस्थिति या दुराशय (Mens Rea) की उपधारणा (Presumption) होती है। भारतीय दण्ड संहिता की धारा 304 इस बिंदु पर उदाहरण है जिसके अनुसार यदि किसी व्यक्ति के असावधानी या लापरवाहीपूर्ण कार्य से किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसे आपराधिक मानव-वध (Culpable Homicide ) के अपराध के लिये दण्डित किया जाएगा। ऐसी परिस्थिति में आपराधिक मनःस्थिति या दुराशय (Mens Rea) उपधारणा कर ली जाती है।
कठोर दायित्व के मामले (Matter of Strict Liability)
कठोर दायित्व के मामलों में जहाँ किसी व्यक्ति की लापरवाही या असावधानीपूर्ण किये गए कार्य से किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को जान या माल की गम्भीर क्षति होती है तो लापरवाही से कार्य करने वाले व्यक्ति का दायित्व कठोर होता है, ऐसे कार्य मे आपराधिक मनःस्थिति या दुराशय (Mens Rea ) को महत्व नही दिया जाता। ऐसे कार्यो में में आपराधिक मनःस्थिति या दुराशय (Mens Rea ) के अभाव में ही दोषी मानकर दण्डित किया जाता है। जैसे भोपाल गैस काण्ड, लोक अपदूषण (Public Nuisance ) एवं हाल ही में विशाखापट्टनम गैस लीक का मामला ये ऐसे अपराध है, जहां जो आपराधिक मनःस्थिति या दुराशय ( Mens Rea ) के अभाव में ही दण्डनीय है।
भारतीय दण्ड संहिता में दुराशय (Mens Rea ) का महत्व:-
अंग्रेजी दाण्डिक विधि एवम भारतीय दाण्डिक विधि दोनो में आपराधिक मनःस्थिति अर्थात दुराशय ( Mens Rea ) का अलग अलग महत्व है, जहाँ एक तरफ अंग्रेजी विधि में बिना दुराशय (Mens Rea ) के कोई अपराध हो ही नही सकता वहीं दूसरी तरफ़ दाण्डिक विधि में दुराशय को इतना महत्व नही दिया गया। वैसे तो भारतीय दण्ड संहिता में अपराध को परिभाषित नही किया गया है परन्तु भरतीय दाण्डिक विधि के अनुसार " प्रत्येक ऐसा कार्य जो विधि द्वारा वर्जित या निषिद्ध है अपराध कहलाता है " ऐसे कार्य के पीछे आपराधिक मनःस्थिति रही हो अथवा नही।
महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि भारतीय दण्ड संहिता में चूंकि प्रत्येक अपराध के साथ उस अपराध को गठित करने वाले आवश्यक तत्वों का भी उल्लेख कर दिया गया है, इसलिए अपराध के गठन के लिये दुराशय (Mens Rea ) प्रथक तत्व के रूप में भारतीय दण्ड संहिता में मान्यता नही दी गयी। जिस अपराध के संदर्भ में दुराशय को आवश्यक माना गया है वहां पर साशय (Intentionally), कपटपूर्वक (Fraudulently ) या बेइमानीपूर्वक (Dishonestly )जैसे शब्दों का प्रयोग कर दुराशय की आवश्यकता या आपराधिक मनःस्थिति को प्रकट करने के लिये किया गया है। भारतीय दण्ड संहिता में विभिन्न धाराओं के अंतर्गत भ्रष्टरूप से (Corruptly ), विद्वेषतापूर्वक (Maliciously ), उतावलेपन से (Rashly ) या उपेक्षापूर्वक (Negligently) शब्दों का प्रयोग कर अपराधी की आपराधिक मनःस्थिति को स्पष्ट किया गया है।
भारत के उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र राज्य बनाम मेयर हन्स जार्ज, AIR 1965, S.C.722 के वाद में यह कहा गया था कि " जब तक किसी विधि के अन्तर्गत आपराधिक मनःस्थिति (Mens Rea ) के अपराध का एक आवश्यक तत्व मानने से इनकार नही कर दिया जाता तबतक किसी अभियुक्त को किसी अपराध के लिये दुराशय (Mens Rea ) के अभाव में दोषी नही माना जा सकता |"
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारतीय दण्ड संहिता के अन्तर्गत दुराशय ( Mens Rea ) या आपराधिक मनःस्थिति को प्रत्यक्षतः अपराध के आवश्यक तत्व के रूप में शामिल न कर परोक्षतः इसे अवश्य समाविष्ट किया गया है|
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न्यायमूर्ति कोक ने अपनी पुस्तक 'थर्ड इंस्टीट्यूट' सन्त अगस्ताइन के धर्मोपदेश का आधार लेते हुये एक सूत्र का प्रयोग किया है। यह सूत्र है -
"ACTUS NON FACIT REUM NISI MENS SIT REA" (ऐक्ट्स नॉन फेसिट रियम निसी मेन्स सिट रिया )
इसका अर्थ है कि दुराशय के बिना केवल कार्य किसी व्यक्ति को अपराधी नही बनाता। आज यह सूत्र अंग्रेजी आपराधिक विधि का अधार-स्तंभ बन गया है। यह सूत्र उतना ही प्राचीन है जितनी अंग्रेजी दाण्डिक विधि ।
उपरोक्त सूत्र का विश्लेषण करने से यह सुनिश्चित होता है कि किसी कृत्य को अपराध मानने के लिये दो आवश्यक तत्वों का होना आवश्यक है--
1- शारीरिक या भौतिक कृत्य (Actus Reus )
2- मानसिक तत्व या दुराशय (Mens Rea )
उपरोक्त दोनों तत्वों को विस्तार से समझते हैं :-
(1) शारीरिक या भौतिक कृत्य (Actus Reus )
शारीरिक या भौतिक कृत्य से तात्पर्य सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनो तरह से कार्यो से है। सकारात्मक कृत्य (Positive action) से तात्पर्य किसी मनुष्य की सकारात्मक गतिविधि से है। नकारात्मक कृत्य से तात्पर्य मनुष्य के ऐसे कृत्य या आचरण से है, जिसे देश की विधि (Law of land ) के किसी प्राविधान द्वारा निषिद्ध या वर्जित घोषित किया गया हो। किसी ऐसे कार्य को न करना जिसे करने के लिये देश की विधि द्वारा अपेक्षा की गई हो, नकारात्मक (Negative ) कृत्य है। अर्थात किसी कार्य को करना मनुष्य का कर्तव्य है, कार्य करने से चूक (अकार्य ) भी एक कार्य करने के समान हो जाता है। भारतीय दंड सहिंता की धारा 33 में अकृत्य या चूक को कृत्य के समान ही दण्डनीय माना जाता है। इसे एक उदाहरण से समझते हैं :- यदि a एक रोगी है तथा b उसकी देखभाल के लिये नियुक्त है। यदि b द्वारा a की देखभाल करने में उपेक्षा करने (खुराक या दवा न देने ) के कारण a की मृत्यु हो जाती है, तो b का यह कृत्य उसे आपराधिक मनाववध के अपराध के लिये दोषी बना देगा।
(2) मानसिक तत्व या दुराशय (Mens Rea )
दुराशय का अर्थ है विद्वेषपूर्ण या बुरा आशय या ' आपराधिक आशय' । दुराशय किसी व्यक्ति की आपराधिक मनोवृति का द्योतक है। दुराशय या आपराधिक मनःस्थिति के पीछे कोई न कोई कारण होता है जो ऐसे आशय को जन्म देता है। दुराशय सामान्यतः अपराध के गठित होने की अनिवार्य शर्त है। दाण्डिक विधि की यह मान्यता है कि दोषी मस्तिष्क के अभाव में किसी प्रकार के अपराध को नही किया जा सकता।
इससे स्पष्ट है कि व्यक्ति के किसी भी कृत्य को अपराध बनाने के लिये यह आवश्यक है कि वह कृत्य आपराधिक आशय या 'दुराशय' (Mens Rea ) से किया गया हो। किसी ऐसे कार्य जो सदभावपूर्ण या निष्कपटतापूर्ण ढंग से किया गया है, भले ही उस कार्य से किसी व्यक्ति को क्षति हुई हो, उससे कोई भी आपराधिक दायित्व उत्पन्न नही होता क्योंकि उसमें दुराशय (Mens Rea ) या आपराधिक आशय का अभाव होता है। इस प्रकार हर तरह के आपराधिक कृत्य में उस अपराध को करने का आशय या दुराशय (Mens Rea ) होना आवश्यक है जैसे हत्या के मामले में हत्या का आशय, चोरी के अपराध में चुराई हुई वस्तु का बेईमानी से इस्तेमाल करने का आशय आदि।
यद्यपि दुराशय का अर्थ आपराधिक मनःस्थिति से कृत्य करना होता है, परन्तु यदि कोई व्यक्ति बिना सोंचे-समझे कोई कार्य करता है तथा उस कार्य से किसी को कोई क्षति होती है तो यह माना जायेगा कि उस व्यक्ति ने कार्य आपराधिक मनःस्थिति के साथ किया है क्योंकि लापरवाही पूर्ण कार्य के बारे में आपराधिक मनःस्थिति या दुराशय (Mens Rea) की उपधारणा (Presumption) होती है। भारतीय दण्ड संहिता की धारा 304 इस बिंदु पर उदाहरण है जिसके अनुसार यदि किसी व्यक्ति के असावधानी या लापरवाहीपूर्ण कार्य से किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसे आपराधिक मानव-वध (Culpable Homicide ) के अपराध के लिये दण्डित किया जाएगा। ऐसी परिस्थिति में आपराधिक मनःस्थिति या दुराशय (Mens Rea) उपधारणा कर ली जाती है।
कठोर दायित्व के मामले (Matter of Strict Liability)
कठोर दायित्व के मामलों में जहाँ किसी व्यक्ति की लापरवाही या असावधानीपूर्ण किये गए कार्य से किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को जान या माल की गम्भीर क्षति होती है तो लापरवाही से कार्य करने वाले व्यक्ति का दायित्व कठोर होता है, ऐसे कार्य मे आपराधिक मनःस्थिति या दुराशय (Mens Rea ) को महत्व नही दिया जाता। ऐसे कार्यो में में आपराधिक मनःस्थिति या दुराशय (Mens Rea ) के अभाव में ही दोषी मानकर दण्डित किया जाता है। जैसे भोपाल गैस काण्ड, लोक अपदूषण (Public Nuisance ) एवं हाल ही में विशाखापट्टनम गैस लीक का मामला ये ऐसे अपराध है, जहां जो आपराधिक मनःस्थिति या दुराशय ( Mens Rea ) के अभाव में ही दण्डनीय है।
भारतीय दण्ड संहिता में दुराशय (Mens Rea ) का महत्व:-
अंग्रेजी दाण्डिक विधि एवम भारतीय दाण्डिक विधि दोनो में आपराधिक मनःस्थिति अर्थात दुराशय ( Mens Rea ) का अलग अलग महत्व है, जहाँ एक तरफ अंग्रेजी विधि में बिना दुराशय (Mens Rea ) के कोई अपराध हो ही नही सकता वहीं दूसरी तरफ़ दाण्डिक विधि में दुराशय को इतना महत्व नही दिया गया। वैसे तो भारतीय दण्ड संहिता में अपराध को परिभाषित नही किया गया है परन्तु भरतीय दाण्डिक विधि के अनुसार " प्रत्येक ऐसा कार्य जो विधि द्वारा वर्जित या निषिद्ध है अपराध कहलाता है " ऐसे कार्य के पीछे आपराधिक मनःस्थिति रही हो अथवा नही।
महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि भारतीय दण्ड संहिता में चूंकि प्रत्येक अपराध के साथ उस अपराध को गठित करने वाले आवश्यक तत्वों का भी उल्लेख कर दिया गया है, इसलिए अपराध के गठन के लिये दुराशय (Mens Rea ) प्रथक तत्व के रूप में भारतीय दण्ड संहिता में मान्यता नही दी गयी। जिस अपराध के संदर्भ में दुराशय को आवश्यक माना गया है वहां पर साशय (Intentionally), कपटपूर्वक (Fraudulently ) या बेइमानीपूर्वक (Dishonestly )जैसे शब्दों का प्रयोग कर दुराशय की आवश्यकता या आपराधिक मनःस्थिति को प्रकट करने के लिये किया गया है। भारतीय दण्ड संहिता में विभिन्न धाराओं के अंतर्गत भ्रष्टरूप से (Corruptly ), विद्वेषतापूर्वक (Maliciously ), उतावलेपन से (Rashly ) या उपेक्षापूर्वक (Negligently) शब्दों का प्रयोग कर अपराधी की आपराधिक मनःस्थिति को स्पष्ट किया गया है।
भारत के उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र राज्य बनाम मेयर हन्स जार्ज, AIR 1965, S.C.722 के वाद में यह कहा गया था कि " जब तक किसी विधि के अन्तर्गत आपराधिक मनःस्थिति (Mens Rea ) के अपराध का एक आवश्यक तत्व मानने से इनकार नही कर दिया जाता तबतक किसी अभियुक्त को किसी अपराध के लिये दुराशय (Mens Rea ) के अभाव में दोषी नही माना जा सकता |"
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारतीय दण्ड संहिता के अन्तर्गत दुराशय ( Mens Rea ) या आपराधिक मनःस्थिति को प्रत्यक्षतः अपराध के आवश्यक तत्व के रूप में शामिल न कर परोक्षतः इसे अवश्य समाविष्ट किया गया है|
यह थी दोस्तो एडवोकेट्स समुदाय से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारी, और स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन पर 'लीगल एंड सोशल अवेयरनेस डायरीज़ बाई एडवोकेट करीम अहमद' की श्रृंख्ला का तीसरा चरण |
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Karim Ahmad Advocate
|About Advocate Karim Ahmad|
Advocate Karim Ahmad needs no introduction in the world of law and justice. He is known for fighting for legal reformations as well as, for the people of India. Whether making amendments for fast-track court trials for special cases, fighting for rights of minority communities or, crucial discussions in the passing of bills and acts, his contributions cannot be overlooked.
Advocate Karim Ahmad openly opposed the lawyers who charged big bucks. He himself charged the lowest even after being a top lawyer one can find in India.
He is a criminal lawyer and has been practising law since last two decades and also serving his services for the people from vulnerable section of the society to increase their access to justice.
With the motive to aware general public of various legal aspects, he is running his own vlog on YouTube and provide immediate legal advice to needy people via wats app.
Court Chamber-
Near election office, court compound kanpur 208001 (Timing 10am to 4pm)
Evening Chamber-
117/94, A purani basti kakadev kanpur 208025 (Time 7.30pm to 9.30pm)
Email-
🦋Swapnil Saundarya 🦋
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