Pranveer & Mission NGO By Swapnil Saundarya ezine


SWAPNIL   SAUNDARYA  e-zine 



Presents 




युवा सोच व शक्ति के  अनुपम मिसाल ~ प्रणवीर

( From the Desk of Swapnil Saundarya ezine  )


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स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन - परिचय 





कला , साहित्य,  फ़ैशन, लाइफस्टाइल व सौंदर्य को समर्पित भारत की पहली हिन्दी द्वि-मासिक हिन्दी पत्रिका के तीसरे चरण अर्थात तृ्तीय वर्ष में आप सभी का स्वागत है .

फ़ैशन व लाइफस्टाइल  से जुड़ी हर वो बात जो है हम सभी के लिये खास, पहुँचेगी आप तक , हर पल , हर वक़्त, जब तक स्वप्निल सौंदर्य के साथ हैं आप.

प्रथम एवं द्वितीय  वर्ष की सफलता और आप सभी पाठकों के अपार प्रेम व प्रोत्साहन  के बाद अब स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन  ( Swapnil Saundarya ezine )   के तृ्तीय वर्ष को एक नए रंग - रुप व कलेवर के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है ताकि आप  अपनी ज़िंदगी को अपने सपनों की दुनिया बनाते रहें. सुंदर सपने देखते रहें और अपने हर सपने को साकार करते रहें .तो जुड़े रहिये 'स्वप्निल सौंदर्य' ब्लॉग व ई-ज़ीन  के साथ .
और ..............
बनायें अपनी ज़िंदगी को अपने सपनों की दुनिया .
( Make your Life just like your Dream World )



Launched in June 2013, Swapnil Saundarya ezine has been the first exclusive lifestyle ezine from India available in Hindi language ( Except Guest Articles ) updated bi- monthly . We at Swapnil Saundarya ezine , endeavor to keep our readership in touch with all the areas of fashion , Beauty, Health and Fitness mantras, home decor, history recalls, Literature, Lifestyle, Society, Religion and many more.

Swapnil Saundarya ezine encourages its readership to make their life just like their Dream World .

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Founder - Editor  ( संस्थापक - संपादक ) : 
Rishabh Shukla  ( ऋषभ शुक्ला )

 
Managing Editor (कार्यकारी संपादक) : 
Suman Tripathi (सुमन त्रिपाठी)

Chief  Writer (मुख्य लेखिका ) : 
Swapnil Shukla (स्वप्निल शुक्ला)

 
Art Director ( कला निदेशक) :
Amit Chauhan  (अमित चौहान) 

 
Marketing Head ( मार्केटिंग प्रमुख ) :
Vipul Bajpai     (विपुल बाजपई) 




 
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युवा सोच व शक्ति  के  अनुपम मिसाल ~ प्रणवीर 



मारे  देश भारत में दूसरे देशों की तुलना में सबसे अधिक युवा बसते हैं. युवा वर्ग के अतर्गत 25 वर्ष से लेकर 40 वर्ष तक के लोग शामिल होते हैं .भारत में इस इस आयु के लोग सबसे बड़ी संख्या में मौजूद हैं .युवा वर्ग शारीरिक व मानसिक रुप से सबसे अधिक शक्तिशाली होता है जो अपने देश , समाज व परिवार की उन्नति के लिए हर संभव प्रयास कर सकते हैं. भारत में आज अधिक से अधिक युवा पढ़े लिखे हैं परंतु वे अपने देश, समाज व परिवार के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों को भूलते जा रहे हैं. किसी भी राष्ट्र अथवा देश के नवयुवक उस राष्ट्र के विकास एवं निर्माण की आधारशिला होते हैं. यदि देश के नवयुवकों में चारित्रिक दृढ़्ता व नैतिक मूल्यों का समावेश है तथा वो बौद्धिक, मानसिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक शक्तियों से परिपूर्ण है तो नि:संदेह हम एक स्वस्थ एवं विकसित राष्ट्र की कल्पना कर सकते हैं. परंतु यदि युवा वर्ग की मानसिकता संकीर्ण अथवा उनमें नैतिक मूल्यों का अभाव होता है तो यह देश अथवा राष्ट्र के लिए दुर्भाग्यशाली है. अपने देश के युवा वर्ग की मानसिकता, उसकी मन: स्थिति व उनकी वर्तमान  परिस्थिति  का आँकलन करें तो हम पाते हैं कि उनमें से अधिकांश अपनी वर्तमान परिस्थितियों से संतुष्ट नहीं हैं. कहीं हमारे देश की वर्तमान परिस्थितियाँ इसके लिए उत्तरदायी हैं तो कुछ उत्तरदायित्व हमारी त्रुटिपूर्ण राष्ट्रीय नीतियों एवं दोषपूर्ण शिक्षा पद्धति का भी है. अनियंत्रित रुप से बढ‌ती जनसंख्या के परिणामस्वरुप  उत्पन्न प्रतिस्पर्धा से युवा वर्ग  में असंतोष की भावना उत्पन्न होती है . जब युवाओं के हुनर का कोई राष्ट्र समुचित उपयोग नहीं कर पाता तब युवा असंतोष मुखर हो उठता  है.

स्वतंत्रता के इतने वर्षों के बाद भी हमारी शिक्षा पद्धति में कोई भी मूलभूत परिवर्तन नहीं आया है . हमारी शिक्षा का स्वरुप आज भी सैद्धांतिक अधिक तथा प्रयोगात्मक कम है जिससे कार्यक्षेत्र में शिक्षा का विशेष लाभ नहीं मिल पाता है . यदि देश के अतीत के पन्नों को पलटा जाए तो सौंदर्यपरक बातों के अलावा ज़मीनी हक्कीकत की बात करें तो देश की स्वतंत्रता के इतने वर्षों के बाद हमने क्या देखा ......... तरीके से संगठित होता भ्रष्टाचार , अंधाधुंध साम्प्रदायिकता , चलते फिरने में अक्षम लेकिन देश चलाने का दावा करने वाले नेता, घोर जातिवादी नेता और वातावरण ,राजनीति का अपराधीकरण या कहें कि अपराधियों का राजनीतिकरण , नसबंदी के नाम पर समझाने बुझाने का नाटक और लड़के की चाहत में चार पाँच छह बच्चों की फौज अर्थात जो भी बुरा हो सकता था वह बुरा सब अतीत में हो चुका है. आज का युवा विदेश जाते सॉफ्ट्वेयर इंजीनियर्स तथा आई . आई. एम मैनेजर्स को देखकर आत्ममुग्ध हो रहा है . उसे अपनी ज़िंदगी के सारे शौक पूरे करने हैं चाहे इसके लिए कोई भी रास्ता चुनना  पड़े या किसी भी हद तक जाना पड़े .

हमारे देश में युवा शक्ति को लेकर बहुत से लंबे- लंबे निबंध लिखे जाते हैं व भाषण कहे जाते हैं पर सही मायने में युवा शक्ति है क्या ?   

नि:संदेह हमारे देश के कल्याण में युवाओं का योगदान काबिले तारीफ है परंतु वर्तमान समय में समाज में युवाओं को यदि दो वर्गों में बाँटा जाए तो गलत न होगा. एक युवावर्ग सूर्य की किरणों की तरह अपना प्रकाश देश, समाज व परिवार के कल्याण के जरिये बिखेर रहा है वहीं दूसरा वर्ग जो पूर्णतया दिशा भ्रमित होकर अपनी राह से भट्क चुका है. उदाहरण के लिए आज कुछ युवाओं  की ऐसी सोच सामने आती है जिसके अंतर्गत उन्हें जीवन में प्रत्येक वस्तु का लुत्फ उठाना है वो भी 'बाई हुक ऑर बाई क्रुक' . अच्छी नौकरी...अच्छी छोकरी..बढ़िया बंगला व गाड़ी , नौकर चाकर आदि ऐशो आराम से लैस ज़िंदगी और वो भी बिना मेहनत के...... 'शार्ट कट मेथड्स यू नो' !

वर्तमान समय में यह कहना किसी भी प्रकार से अतिशयोक्ति न होगा कि ऐसे युवा बहुत कम  देखने को मिलेंगे जिन्हें सामाजिक उन्नति या अवनति या देश के विभिन्न राजनैतिक, आर्थिक , वैश्विक, सामाजिक मुद्दों से सरोकार हो . वे जीवन का भरपूर आनंद उठाना चाहते हैं . सेक्स, पोर्न, नशे , ओछी व गिरी हुई राजनीति में पड़ कर ये युवा अपनी शक्ति व अपने सामर्थ्य को बर्बाद कर रहे हैं. बहुत से लोगों की यह पढ़्कर भौंहे तन जाएंगी व मुख रक्त वर्ण का हो जाएगा पर मैं क्या करुँ ....मुझे "पॉलिटिक्ली इनकरेक्ट" के विशेषण से उस वक़्त से नवाज़ा गया है जब से मैंने अपने कलम को तलवार बनकर इस्तेमाल करना प्रारंभ किया....तो खुले शब्दों में ही व्याख्या करुँगा..............

ऐसे युवाओं को राजनीति में बहुत दिलचस्पी होती  है क्योंकि राजनीति के द्वारा उनके सिर पर बड़े नेता का हाथ जो हो जाता है . बड़े-बड़े बैनर्स में फोटो छपती है ...और फिर बड़े- बड़े नेताओं के अगल बगल खड़े होकर शुरु होता है फोटोसेशन का आवश्यक कार्य. उसके बाद उन फोटोग्राफ्स का फेसबुक व  व्हाट्सएप में प्रचार प्रसार करना. किसी भी तरह साम, दाम,दंड , भेद द्वारा बड़ी डिग्री खरीदो , दिखावे के लिए जॉब करो और फिर शादी कर लो.....शादी के लिए उन्हें दहेज नही चाहिये . बस माँ बाप की इतनी सी इच्छा होती है कि लड़्की के घर वाले लड़्के को एक नया लग्ज़री फ्लैट खरीद कर दे दें जिसमें उनकी लड़्की व दामाद खुशहाल जीवन जी सके और ये  लग्ज़री फ्लैट लड़के के नाम पर खरीद कर दे.बस इतनी सी उनकी दिली इच्छा होती है. और इस प्रकार अपने माँ बाप के सहयोग से आज के कुछ युवा बेहद कम उम्र में अपने दम पर सफलता के शिखर पर पहुँच जाते हैं. इस शिखर पर पहुँचने के लिए वे मेहनत भी खूब करते हैं और वो मेहनत कैसी होती है, प्रस्तुत है उसका एक उदाहरण...........

आज के समय के कुछ युवा अपना बहुमूल्य समय पार्न पर खर्च करना अधिक पसंद करते हैं. उनका दिमाग जरुरत से अधिक खाली रहता है जिसमें पार्न या सेक्स या अश्लीलता इस कदर व्याप्त रहती है कि वे हर क्षेत्र में इसी तो तलाशते रहते हैं.  द्वि- अर्थी संवाद पर अपने दिमाग का 100 प्रतिशत इस्तेमाल करना  भी आज के कुछ युवाओं के गुणों में से एक है. खुले शब्दों में व्याख्या करताहूँ ... वर्तमान समय में सिनेमा जगत की बात करें तो ऐसी फिल्मों का निर्माण जोरो पर है जिनमें हीरो व हीरोइन ...तेरी माँ की.....तेरी माँ  का घोंसला.......... इस प्रकार के डायलॉग का उपयोग कर 'एलीमेंट ऑफ ह्यूमर' का समावेश करते हैं जिस पर लोग ठहाके लगाते हैं क्योंकि सबको पता होता है कि ये डायलॉग्स प्रसिद्ध गालियों का संपादित वर्ज़न है . फिर कुछ युवाओं को यह इतना प्रभावित करता है कि वे इस पर रिसर्च करते हैं और गालियों पर रिसर्च पेपर तैयार करते हैं और उन्हें संपादित कर उनका बेधड़्क तरीके से इस्तेमाल करते  हैं जैसे तेरी माँ की लाल लाल चूड़ियाँ ...तेरी माँ की जय....तेरी सब लेते हैं या तुमने किसको दिया ....तुमने किससे लिया ....तुम देते हो या लेते हो आदि . किसी भी द्वि- अर्थी शब्द का इस्तेमाल कर आप अपने दिमाग की किस मनोदशा का परिचय दे रहे हैं वह बताने की जरुरत नहीं. शायद ऐसे युवा अपनी ज़िंदगी से बहुत अधिक संतुष्ट हैं. वे सब कुछ पा चुके हैं जिसका उन्होंने सपना देखा था .........ज़मीनी हक्कीकत  की बात करने पर उन्हें नींद आने लगती है और उन्हें यह सब बोर करता है. ऐसे युवा समाज के साथ आगे बढ़्ना चाहते हैं क्योंकि उनका मानना होता है कि समाज से गंदगी को मिटाने में कौन सा उनका नाम स्वर्णाक्षरों में लिखित हो जाएगा. इस अवधारणा के साथ वे जीवन में आगे बढ़्ते हैं. मेरे अनुसार ऐसे युवा धरती पर बोझ हैं ...यही सोच और ऐसे लोग समाज की वो गंदगी हैं जिन्हें समाज से उखाड़ फेंकना चाहिये. पर प्रश्न यह उठता है कि ऐसे युवाओं के इस कदर भट्काव की जड़ क्या है ....हमारा समाज....शिक्षा..लालच....असंतोष ........ यही युवा आगे चलकर बुजुर्ग बनते हैं पर ऐसे बुजुर्गों से भविष्य में क्या सीख मिलेगी...उनके कौन से अनुभव हमारे काम आएंगे..वर्तमान समय में युवाओं के एक बड़े वर्ग का भट्काव देश के भविष्य की स्वर्णिम नींव को हिला कर रख सकता है . अत युवाओं को अपनी संकीर्ण सोच व भटकते कदमों पर लगाम लगाने की आवश्यकता है .युवा जोश को स्वयं व समाज के कल्याण में उपयोग करें तो बेहतर होगा . यदि आज का युवा ज़मीनी हक्कीकत से रुबरु हो और यथार्थ  को देखने की कोशिश करे तो बखूबी महसूस कर सकता है कि हमारे समाज में किस प्रकार की गंदगी तेजी से अपने पैर पसार रही है . बाल शोषण, बाल अपराध, शिक्षा का व्यापारीकरण, गरीबी, लाचारी, महिलाओं का शोषण , लैंगिक भेदभाव, साम्प्रदायिकता , घरेलु हिंसा, एसिड अटैक, बलात्कार आदि .इन विकारों को समाज से उखाड़ फेंकने के लिए युवाओं को अपनी सोच , अपनी विचारधारा के स्तर को ऊँचा उठाना होगा...हिम्मती बनें ...अपनी बात को सही तरीके से प्रस्तुत करें...यदि कुछ गलत है तो उसका विरोध करें ...न किसी का शोषण करें और न खुद अपना शोषण होने दें. संयम रखें .  अनुशासित बनें.  युवा शक्ति एकजुट होकर ही समाज में फैले अपराधों और अपराधिक तत्वों का सर्वनाश कर सकती है.





 

पाँच वर्ष पूर्व आप और हम जैसे ही एक साधारण से युवक ने समाज की गंदगी से निपटने के लिए व गरीब बच्चों के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने का एक सपना देखा लोगों ने उसकी बातें हवा  में  उड़ा दीं.  किसी ने पढ़ाई पूरी करने की नसीहत दी तो किसी ने उसकी बातों को निरर्थक बता डाला. किसी ने उसको ये चेतावनी दी कि तुम्हारी ये स्पष्ट्वादिता  एक दिन तुम्हारे भविष्य को अंधेरे में ढकेल देगी  पर उस युवक ने हार न मानी.

श्वेत वर्ण , मासूम सूरत , आँखों में औरों के लिए प्रेम, दया , करुणा ...कम उम्र पर दिल में लोगों  के लिए बड़ी जगह ........... 'प्रणवीर प्रताप सिंह चंदेल' (Pranveer  Pratap Singh Chandel ) की यही पहचान है. जितनी सुंदर सूरत उतनी ही सुंदर सीरत. उत्तर प्रदेश की उद्योग नगरी  कानपुर के 'प्रणवीर' , युवाओं के उस वर्ग के प्रतिनिधि हैं जो अपने से अधिक औरों के लिए जीते हैं. 'प्रणवीर' ( Pranveer ) ने अपने तीन मित्रों  'अमन' ( Aman ) , 'शानू' ( Shanu ) व 'नागेंद्र' ( Nagendra ) के साथ मिलकर एक सपना देखा और लोगों के लाख विरोध करने के बावजूद उनका ये सपना आज हक्कीकत में तब्दील हो चुका है. 'मिशन एन. जी. ओ' ( Mission NGO )  प्रणवीर और उनके मित्रों का एक ऐसा सपना है जिसे इन्होंने खुली आँखों से देखा और उनके इस सपने को पूर्ण करने के पथ पर अनेकों राही उनके साथ जुड़्ते गए और आज उनका यह स्वप्न इनके अस्तित्व का अभिन्न अंग बन चुका है.










कानपुर विश्वविद्यालय ( Kanpur University ) से वनस्पति विज्ञान ( Botany ) व रसायन विज्ञान ( Chemistry ) विषयों के साथ स्नातक व गौतम बुद्ध टेकनिकल यूनिवर्सिटी (GBTU ) से एम.बी.ए ( मार्केटिंग व एच. आर ) डिग्री प्राप्त कर चुके प्रणवीर प्रताप सिंह चंदेल  (Pranveer  Pratap Singh Chandel )  , वर्तमान समय में गया प्रसाद विधि महाविद्यालय (GPVM ), कानपुर से अपनी वकालत की शिक्षा के आखिरी चरण पर अग्रसर हैं.

प्रणवीर जात पात की राजनीति के  सख्त खिलाफ हैं. वे सर्वधर्म एक समान की  विचारधारा के समर्थक हैं . प्रणवीर  उन युवाओं में से एक हैं जो कथनी से अधिक करनी में यकीन करते हैं. ये उनके सशक्त व मजबूत हौसले का ही कमाल है कि बिना किसी राजनैतिक दल या विशेष समूह के योगदान के उन्होंने अपने मित्रों के साथ  मिशन एन. जी. ओ के स्वप्न को जीवंत कर दिखाया है. आज मिशन एन. जी. ओ ग्रुप के साथ अनेकों लोग तन, मन और ढेर सारे विश्वास के साथ जुड़े हैं. लोग आगे बढ़ चढ़ कर प्रणवीर की सोच के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रहे हैं. प्रणवीर का कहना है कि , " मिशन एन.जी.ओ ( Mission NGO ) एक जागरुकता अभियान है . हम तब तक इस संस्था को बड़े स्तर पर क्रियाशील नहीं बना पाएंगे जब तक लोगों के भीतर दया, करुणा व समाज की उन्नति के लिए भावनाएं जाग्रत नहीं होंगी."

प्रणवीर ( Pranveer ) कहते हैं कि , "हम एक ऐसा सपना , एक ऐसी सोच को लेकर चल रहे हैं जो इस बदलते सामाजिक व सांसारिक परिवेश में कई सारे अपराधिक प्रवृत्तियों के अंबार के दौर में बहुत बड़ा वैश्विक बदलाव ला सके. असल मायनों में आज समाज में विकास की अँधी दौड़ में पूँजीवाद व धन प्रधान  युग का निर्माण हो रहा है. यदि किसी भी चीज़ जैसे  धन आदि का इतना प्रभुत्व हो जाए कि लोग इसे पाने और एक दूसरे से आगे निकल जाने की होड़ में हत्यारे या अपराधी बनने लगे तो समझ लीजिये कि समाज बहुत बड़े सर्वनाश की ओर है. विभिन्न प्रकार के अपराधों के चलते हमें सबसे पहले बुनियादी समस्याओं को एकत्रित करके धन प्रधानता खत्म करके एवं सामाजिक, नैतिक एवं सदाचारी सोच का दमदार व सशक्त तरीके से प्रचार प्रसार करना होगा. इसके लिए हमें विभिन्न मुद्दों पर भी विचार करना होगा और इनसे निपटने के लिए ठोस  कदम उठाने होंगे ...जैसे गरीबी की जड़ क्या है , जातिवाद , अंधविश्वास कैसे खत्म हो, शिक्षा कैसी हो जो धन कमाने के अलावा असल में इंसान को इंसान बनाए रखे.........वृक्षारोपण के लिए लोगों को कैसे जागरुक करें...अनुशासित समाज , देश व संपूर्ण विश्व कैसे बनें. सर्वजनों को समानता, रोजगार, शिक्षा आदि का अधिकार प्राप्त हो...शिक्षा का स्तर ऐसा हो कि धन कमाने वाला व आर्थिक रुप से सुदृढ़ व्यक्ति जरुरतमंद की नैतिक व  आर्थिक मदद  करने के लिए उत्साहित रहे. इस प्रकार जब मैंने रोज़ाना ऐसी घट्नाओं का सामना किया जिनसे आहत होकर मैं, विवश हो गया एक ऐसे संगठन व परिवार बनाने के लिए जो समाज को सशक्त रुप से सही दिशा  में शिक्षित करने का समग्र प्रयास करे. मिशन एन.जी.ओ ( Mission NGO ) एक ऐसी ही सोच का परिणाम है जिसका सर्वप्रथम लक्ष्य है ऐसी शिक्षा को जन जन तक फैलाएं जो व्यक्ति विशेष के भीतर नैतिक मूल्यों का विकास करे. ऐसी शिक्षा जो आज के व्यापारीकरण के दौर से भिन्न हो . आज  विभिन्न विद्यालयों के  भीतर शिक्षा के नाम पर सिर्फ और सिर्फ व्यापारीकरण हो रहा है. गुरु शिष्य परंपरा की परिभाषा बदल गई है.  छात्रों के भीतर देश प्रेम , निस्वार्थ भाव, दया , करुणा, ज्ञान, नैतिक मूल्य, कर्त्तव्य जैसी भावनाओं का विकास नहीं हो पा  रहा है. या यूँ कहें कि आज के समय में शिक्षा का स्तर इस कदर गिर चुका है जो कि नव युवकों का सर्वांगीण विकास कर पाने में व उन्हें एक आदर्श नागरिक बना पाने में असमर्थ है........कारण, प्रत्येक वस्तु का व्यापारीकरण . मिशन एन.जी.ओ का उद्देश्य है ज्ञान,  प्रेम,  विनम्रता, साहस, सम्मान व एकता के  साथ जगह जगह पर शिक्षा का प्रचार करना एवं गरीब  बच्चों तक शिक्षा रुपी  धन को पहुँचा कर एक आदर्श समाज व देश का निर्माण करना. "






 

 

प्रणवीर आगे कहते हैं कि , "मेरा मानना है कि अगर हम सब मिलकर समाज के गरीब तबके के लोगों की मददा करें अर्थात  हर सामान्य जीवनस्तर वाला व्यक्ति कम से कम एक बच्चे को शिक्षित करे तो बेहतर परिणाम दृष्टिगोचर होंगे  जो हम छोटे बच्चों को बचपन में ढालकर , पढा‌कर कर सकते हैं.....अच्छी सकारात्मक सोच , समाज व आदर्श देश सिर्फ अच्छी शिक्षा से ही निर्मित हो सकते हैं. "






जातिवाद को लेकर  प्रणवीर के विचार बेहद प्रशंसनीय हैं . वे कहते हैं कि,  "मैं अपने नाम के आगे किसी कुलनाम का प्रयोग नहीं  करुँगा......सिर्फ प्रणवीर लिखूँगा......मैं जातपात का घोर खंडन करता हूँ..... मैं सिर्फ एक इंसान हूँ और इस इस प्रकार के भेदभाव में कभी न पडूँगा ..छोटी जात, बड़ी जात .....इस प्रकार के भेदभाव पूर्णतया गलत है व समाज को बाँटते हैं. "

जीव हत्या को लेकर प्रणवीर कहते हैं,   "मैं किसी भी जीव का सेवन करने के खिलाफ हूँ..........मैं किसी भी जीव को न खुद खा सकता हूँ न ही उससे निर्मित किसी वस्तु को धारण कर सकता हूँ............इसके अलावा यदि देश को तरक्की करनी है तो अंधविश्वास जैसे विकारों का अंत अति आवश्यक है ."

वृक्षारोपण के लिए प्रणवीर का कहना हैं कि. " समय समय पर या किसी भी खुशी के अवसर पर वृक्षारोपण कर अपने नाम का वृक्ष लगाएं ....इससे हमारी धरती को ऊर्जा मिलेगी व हमें एक बेहतरीन पर्यावरण."

प्रणवीर के विचार क्रांतिकारी हैं , जो आज के समय की माँग है. आज के युवा जहाँ दूसरों के समक्ष प्रश्न  रखते हैं कि हम क्या कर सकते हैं वहीं प्रणवीर एक बेमिसाल उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं कि यदि कुछ कर गुजरने की ललक हो तो  हम क्या नहीं कर सकते हैं....  मन में यदि हौसला और कुछ कर गुजरने की चाह हो तो कोई भी रास्ते का काँटा हमे हमारे मार्ग से विचलित नहीं कर सकता . इस तथ्य को सार्थक कर दिखाया है प्रणवीर प्रताप सिंह चंदेल ने.

आज युवा को अक्सर कहते सुना है कि पैसे के अभाव में क्या कर सकते हैं ...पैसा नहीं तो इंसान अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति की कश्मकश में ही लगा रहता है. उसका संपूर्ण जीवन रोटी, कपड़ा व मकान जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति में ही निकल जाता है फिर वो समाज सेवा का कार्य क्यों करे ....जब पेट में अन्न ही नहीं होगा तो समाज सेवा कहाँ से हो पाएगी ...पहले स्वयं की तो सेवा कर लें फिर समाज की सेवाकर लेंगे आदि आदि. ये तर्क दिल को झकझोर कर रख देने वाले हैं. किसी नेक कार्य को आगे बढा‌ने में हमारा समाज ऐसे तर्क सहित सामने आता है मानो तर्कशास्त्र में विशारद करे बैठे हों....... किंतु  प्रणवीर व मिशन एन.जी.ओ के प्रत्येक सक्रिय सदस्य का प्रत्येक सार्थक प्रयास सामज के उपरोक्त लोगों के मुँह पर जोरदार तमाचा है .

प्रणवीर व मिशन एन.जी.ओ के सक्रिय युवा सदस्य अभी अपनी उम्र के 20वें दशक के मध्य में हैं और इतनी कम उम्र में ही वे अपनी सोच जो समाज के कुछ लोगों के नज़रिये के हिसाब से असंभव सी प्रतीत होती है , उसे संभव कर दिखा रहे हैं. अपनी पढ़ाई के साथ साथ अपने कार्यक्षेत्र में अनुभव व दक्षता ग्रहण करने के साथ छोटी छोटी जगहों पे जाकर बच्चों को साक्षर बनाने के साथ में उनमें नैतिक मूल्यों का समावेश हो, ऐसी विधिवत शिक्षा प्रदान करने का भरकस प्रयास कर रहे हैं. इन्हें धूप की परवाह नहीं ...इन्हें कोहरे का खौफ नहीं...इन्हें बारिश की फिक्र नहीं ...आँधी तूफान का भय नहीं ...प्रणवीर व मिशन एन.जी.ओ के सभी सक्रिय सदस्य तेज धूप को सूर्य देव का आशीर्वाद मानते हुए....कपकपा देने वाली सर्द हवाओं को पवन देव की कृपा मानते हुए ..तेज बारिश से शीतलता ग्रहण करते हुए अपने पथ पर बढ़े जा रहे हैं...उस एक जीव की खोज में जिसे शायद उनकी सबसे अधिक जरुरत है. .....






मैं,  ऋषभ शुक्ला , स्वप्निल सौंदर्य ई ज़ीन ( Swapnil Saundarya e-zine ) का संस्थापक संपादक, ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि मिशन एन.जी.ओ (Mission NGO ) के सभी सदस्यों को शक्ति दे और उनके इस नेक कार्य में उनका साथ दें व उनका पथ प्रदर्शन करें. जहाँ तक प्रणवीर ( Pranveer ) की बात की जाए तो प्रणवीर, के विचारों में दृढ‌ता है, निष्कपटता है , निस्वार्थ भाव से जरुरतमंदों की मदद करने की जिद है, जुनून है, जो उन्हें सही मायनों में युवा शक्ति का द्योतक बनाती है. प्रणवीर के मजबूत इरादे व हौसले व सामाजिक गंदगी को जड़ से मिटा देने का 'प्रण' उनके नाम को सार्थक करने के साथ साथ सही मायनों में बना देता है उन्हें 'प्रणवीर'.


- ऋषभ शुक्ला ( Rishabh Shukla )
  संस्थापक -संपादक ( Founder-Editor )













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