Diary of Mridul || by SWAPNIL SAUNDARYA e-zine
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( Vol- 05, Year - 2018, SPECIAL ISSUE )
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~ Diary of Mridul ~
एक नयी सोच...... एक नई पहल ......एक नई कोशिश
शादी-ब्याह में खर्चों में कमी की बात हमेशा की जाती रही है, मगर समाज में यह बुराई इतने अंदर तक दाखिल हो चुकी है कि इसको रोक पाना मुश्किल दिखाई देने लगा है. शादी के नाम पर सामर्थ्य से अधिक खर्च सामाजिक प्रतिष्ठा के नाम पर बैंक से उधार लेकर भी बेटी की शादी करवाना, महँगाई के जमाने में 200,500,1000 या इससे भी अधिक लोगों को परिवार समेत व्यक्तिगत निमंत्रण देकर बुलाना और उनके स्वागत सत्कार में विभिन्न लज़ीज़ व्यंजन परोसना और फिर उनके द्वारा बर्बाद किए गए अन्न को कचरे में फेंक कर अन्न का अनादर करना...... ये किस प्रकार की संस्कृति है ?
उसके ऊपर वर पक्ष के लोगों का भीड़ इकट्ठा कर शोर-शराबे के साथ सड़कों पर निकलना, हुड़दंग मचाना, सड़कों पर आवागमन बाधित करके दूसरों की सुविधा को दरकिनार करना, मौका मिले तो शराब पीकर माहौल खराब करना ......ये कौन सी सभ्यता है?
'विवाह' दो परिवारों .....दो व्यस्क लोगों के निर्णय पर आधारित होता है. क्या इस व्यवस्था के अंतर्गत साधारण तरीके से दोनों परिवार के सद्स्य मिलकर आपस में इस शुभ का्र्य को सम्पन्न नहीं करा सकते ? क्या जरुरी है कि लाखों रुपये फूंक कर सड़कों पर शोर-शराबा और तमाशा करके तमाम ताम-झाम के साथ नाटकीय प्रचार करने के बाद ही इस निजि संस्कार को सामाजिक मान्यता वाला सर्टिफिकेट प्राप्त हो ?
ये सोच बदलनी चाहिये......शादी आजकल रिश्तों की अहमियत खोकर सिर्फ एक स्टेट्स सिंबल मात्र बन कर रह गई है,जहां लोग नए रिश्ते बनाने के नाम पर अपनी झूठी शानो-शौकत का प्रदर्शन करने को ज्यादा वरीयता देते हैं.
मैंने व्यक्तिगत तौर पर देखा है कि कई बार ऐसे तमाम ताम -झाम और लाखों रुपये खर्च कर देने के बाद भी विवाह संस्कार को लोग किनारे लगा कर संबंध विच्छेद कर लेते हैं. शुरुआत मंडप में होती है और अंत कोर्ट कचहरी की दहलीज़ पर हो जाता है. तो क्या मतलब रह जाता है एक दिन की रईसी का प्रदर्शन करने के लिए ऐसी नौटंकी करने का ?बेहतर विकल्प तो ये है कि साधारण तरीके से दो परिवार मिल कर, किसी गैर व्यक्ति को निमंत्रण दिए बिना अर्थात गैर व्यक्तियों की आवभगत पर खर्च करने के बजाए किसी मंदिर में अपने ईष्ट को साक्षी मान कर अपने परिवार जनों की उपस्थिति में विवाह करें और खिलाई-पिलाई में उनको सम्मिलित करें जिनको अन्न भी आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाता.....गरीब मजदूरों ,वृद्धाश्रम में मौजूद उन वृद्धों को सम्मिलित करें जिनको उनके अपनों ने त्याग दिया, उन बच्चों को सम्मिलित करें जिनके माँ-बाप नहीं हैं, जो अनाथाश्रम में पल रहे हैं.......क्या हम ऐसा नहीं कर सकते ? क्या आपको नहीं लगता कि टाई-सूट पहने गाड़ियों से आने वाले भरे पेट के लोगों को निमंत्रण देकर उनकी भीड़ के आगे व्यजंन परोसने से बेहतर है कि अपनी खुशी से जरुरत मंदो और भूखे लोगों को शामिल करें ? क्या आपको नहीं लगता कि जरुरत मंदो को अपनी खुशी में हिस्सेदार बना कर, उनकी सहायता करके अपने रिश्ते की शुरुआत करने वाले जोड़े को उनको सच्ची दुआ और आशीर्वाद मिलेगा जिस से उनका आने वाला भविष्य सुखमय और समृद्ध होगा? आप क्या समझते हैं कि भरे पेट वाले वे लोग जो व्यवहार के लिफाफे लिए आपके निमंत्रण पर आते हैं वो आपके बेटे-बेटी को सच्चा आशीर्वाद ही देते हैं ? वे तो व्यवहार के तौर पर आते ही आपके द्वारा किए गए तमाम दिखावे, ताम-झाम और खिलाई-पिलाई की कीमत चुकाने की कोशिशों में लग जाते हैं....कई बार ये कोशिशें सकारात्मक होती हैं तो कई बार नकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिल ही जाते हैं.
ऐसे में बेहतर विकल्प क्या है? जरुरत मंदो को अपनी खुशी में शामिल कर सच्चा आशीर्वाद और दुआएं पाना या तमाम खर्च कर झूठे आशीर्वाद के लिए फिज़ूल की भीड़ इकट्ठा करना...... ये तो आपको,हमको और इस समाज को ही तय करना होगा.. विचार अवश्य करें........और हो सके तो अविवाहित लोग इस कदम को उठा कर एक मिसाल कायम कर शादी के नाम पर होने वाले फिज़ूल खर्च पर रोक लगाने के लिए सहयोग करें.......अपनी खुशी में जरुरत मंदो को सम्मिलित करके उनकी और अपनी खुशी का कारण बन अपने नए रिश्ते की सुखद शुरुआत करें और जीवन में बदलाव देखें, इस से समाज में शादी के नाम पर होने वाली फिज़ूल खर्च की अवधारणा का भी अंत होगा.
मैं, मृदुल व्यक्तिगत तौर पर शादी के नाम पर होने वाली इस फिज़ूल, बेबुनियादी खर्च और बेवजह भीड़ इकट्ठा कर दूसरों को असुविधा का बोध कराने वाली व्यवस्था और दकियानूसी विचारधारा का खंडन करता हूँ.
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पेशे से थियेटर आर्टिस्ट व एडिटर मृदुल ( Mridul aka Mady ) के खरे-खरे विचार जब पन्नों पर उतरते हैं तो पढ़ने वालों को आसानी से हजम नहीं होते ......पर अपने स्वच्छंद विचारों पर अडिग मृदुल
( Mridul aka Mady ) वर्तमान समय के युवाओं को सही मायनों में परिभाषित करते हैं. लखनऊ विश्वविद्यालय ( Lucknow University ) से हिन्दी साहित्य व शिक्षा शास्त्र में स्नातक की उपाधि से अलंकृत मृदुल अपने पर्यटन व्लॉग ( Travel vlog ) के शुभारंभ की तैयारियों में सक्रिय हैं.
( Mridul aka Mady ) वर्तमान समय के युवाओं को सही मायनों में परिभाषित करते हैं. लखनऊ विश्वविद्यालय ( Lucknow University ) से हिन्दी साहित्य व शिक्षा शास्त्र में स्नातक की उपाधि से अलंकृत मृदुल अपने पर्यटन व्लॉग ( Travel vlog ) के शुभारंभ की तैयारियों में सक्रिय हैं.
( Stills from a documentary film )
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