Diary of Parag Rastogi Part~ 06 by Swapnil Saundarya ezine
SWAPNIL SAUNDARYA e-zine
Vol- 10, Year - 2022
Presents
Diary of Parag Rastogi
Part~ 06
'पराग की डायरी-06'
•Poetry from his Soul for your Soul•
Published by
Aten Publishing House
'The Bold Brigade’, a collective to celebrate the Inclusive Power of Arts.
|| ज़िन्दगी ||
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सराय के बिस्तर सी हो गयी है ज़िन्दगी,
चंद सिलवटों के सिवा हासिल कुछ नहीं .....
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इतना टूटे हैं के मुस्कुराना भूल चुके हैं,
बस कर सताना ऐ ज़िन्दगी, हम टूटकर जुड़ने का हुनर भूल चुके हैं ....
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शब्द चुभते बहुत हैं,
बेहतर है खामोश रहना ऐ ज़िन्दगी ...
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हमनें आज़माया है कई दफा,
कुछ अधूरी ख्वाहिशों का सफरनामा है ज़िन्दगी .....
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खुद को बेहतर दिखाने की होड़ में,
ज़िन्दगी इश्तेहार बनकर रह गयी ...
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खुद को इतना भी न परेशां किया करो,
ज़िन्दगी खूबसूरत है इसे मुस्कुराके जिया करो,
बहुत ख़ास हो तुम, बस ये जान लो,
और खुद को तवज्जो दिया करो ....
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इससे पहले के मायूस हो जाऊं तुझसे ऐ ज़िन्दगी,
कभी तो मेरा भी साथ दे ऐ ज़िन्दगी ...
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मुफ्त की सलाह की अब ज़रूरत नहीं,
ज़िन्दगी अपनी तरह से जीने लगे हैं हम ...
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तमन्ना हर शख्स रखता है ज़िन्दगी अपनी तरह से जीने की,
कुछ ख्वाहिशें पूरी करने की, कुछ हसीन गुनाह करने की,
मगर ज़िन्दगी इस क़दर मसरूफ है रिश्तों के जाल में,
की खुद से तार्रुफ़ करने का वक़्त ही नहीं मिलता, और कभी वक़्त चुरा भी लो तो,
कम्बख्त ये दुनिया वाले खुद के लिए जीने नहीं देते....
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तराशो इस तरह खुदको के एक इनाम बन जाओ,
बसर ऐसे हो ज़िन्दगी के एक मिसाल बन जाओ,
और रुखसत इस तरह से हो के यादगार बन जाओ....
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पराग रस्तोगी (Parag Rastogi) की शायरियों व कविताओं में ज़िंदगी का भोगा हुआ यथार्थ है| प्रेम रस से लैस इनके लेखन को सुख-दुःख, आशा-निराशा, वफ़ा-बेवफाई जैसे विरोधाभासी तत्वों का बेमिसाल संगम कहना अतिशयोक्ति न होगा| बकौल पराग (Parag Rastogi),"ज़िंदगी का संघर्ष ही मेरी धरोहर है, और लेखन मेरे लिये कोई चर्चा का विषय नहीं बल्कि अनुभूतियां हैं, जो मेरी रुह में बसता है|"
उर्दू भाषा के प्रति विशेष लगाव व् हिंदी लेखन में प्रवीण पराग एक उद्यमी हैं व वाणिज्य में डिग्री होल्डर हैं|
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