Swapnil Saundarya e-zine # Vol - 03 , Issue - 02, 2015
।। Swapnil Saundarya e-zine ।।
।।स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन ।।
।। Vol - 03 , Issue - 02, 2015 ।।
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स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन - परिचय
कला , साहित्य, फ़ैशन, लाइफस्टाइल व सौंदर्य को समर्पित भारत की पहली हिन्दी द्वि-मासिक हिन्दी पत्रिका के तीसरे चरण अर्थात तृ्तीय वर्ष में आप सभी का स्वागत है .
फ़ैशन व लाइफस्टाइल से जुड़ी हर वो बात जो है हम सभी के लिये खास, पहुँचेगी आप तक , हर पल , हर वक़्त, जब तक स्वप्निल सौंदर्य के साथ हैं आप.
प्रथम एवं द्वितीय वर्ष की सफलता और आप सभी पाठकों के अपार प्रेम व प्रोत्साहन के बाद अब स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन ( Swapnil Saundarya ezine ) के तृ्तीय वर्ष को एक नए रंग - रुप व कलेवर के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है ताकि आप अपनी ज़िंदगी को अपने सपनों की दुनिया बनाते रहें. सुंदर सपने देखते रहें और अपने हर सपने को साकार करते रहें .तो जुड़े रहिये 'स्वप्निल सौंदर्य' ब्लॉग व ई-ज़ीन के साथ .
और ..............
बनायें अपनी ज़िंदगी को अपने सपनों की दुनिया .
( Make your Life just like your Dream World )
Launched in June 2013, Swapnil Saundarya ezine has been the first exclusive lifestyle ezine from India available in Hindi language ( Except Guest Articles ) updated bi- monthly . We at Swapnil Saundarya ezine , endeavor to keep our readership in touch with all the areas of fashion , Beauty, Health and Fitness mantras, home decor, history recalls, Literature, Lifestyle, Society, Religion and many more.
Swapnil Saundarya ezine encourages its readership to make their life just like their Dream World .
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Founder - Editor ( संस्थापक - संपादक ) :
Rishabh Shukla ( ऋषभ शुक्ला )
Managing Editor (कार्यकारी संपादक) :
Suman Tripathi (सुमन त्रिपाठी)
Chief Writer (मुख्य लेखिका ) :
Swapnil Shukla (स्वप्निल शुक्ला)
Art Director ( कला निदेशक) :
Amit Chauhan (अमित चौहान)
Marketing Head ( मार्केटिंग प्रमुख ) :
Vipul Bajpai (विपुल बाजपई)
'स्वप्निल सौंदर्य - ई ज़ीन ' ( Swapnil Saundarya ezine ) में पूर्णतया मौलिक, अप्रकाशित लेखों को ही कॉपीराइट बेस पर स्वीकार किया जाता है . किसी भी बेनाम लेख/ योगदान पर हमारी कोई ज़िम्मेदारी नहीं होगी . जब तक कि खासतौर से कोई निर्देश न दिया गया हो , सभी फोटोग्राफ्स व चित्र केवल रेखांकित उद्देश्य से ही इस्तेमाल किए जाते हैं . लेख में दिए गए विचार लेखक के अपने हैं , उस पर संपादक की सहमति हो , यह आवश्यक नहीं है. हालांकि संपादक प्रकाशित विवरण को पूरी तरह से जाँच- परख कर ही प्रकाशित करते हैं, फिर भी उसकी शत- प्रतिशत की ज़िम्मेदारी उनकी नहीं है . प्रोड्क्टस , प्रोडक्ट्स से संबंधित जानकारियाँ, फोटोग्राफ्स, चित्र , इलस्ट्रेशन आदि के लिए ' स्वप्निल सौंदर्य - ई ज़ीन ' को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता .
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चेतावनी : 'स्वप्निल सौंदर्य - ई ज़ीन ' ( Swapnil Saundarya ezine ) में घरेलु नुस्खे, सौंदर्य निखार के लिए टिप्स एवं विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों के संबंध में तथ्यपूर्ण जानकारी देने की हमने पूरी सावधानी बरती है . फिर भी पाठकों को चेतावनी दी जाती है कि अपने वैद्य या चिकित्सक आदि की सलाह से औषधि लें , क्योंकि बच्चों , बड़ों और कमज़ोर व्यक्तियों की शारीरिक शक्ति अलग अलग होती है , जिससे दवा की मात्रा क्षमता के अनुसार निर्धारित करना जरुरी है.
संपादकीय
प्रिय पाठकों .......
आप सभी को नमस्ते !
स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन के तृ्तीय वर्ष के द्वितीय अंक में आप सभी का स्वागत है .
' एक मछली और तालाब ' :: हममें से बहुत से लोग इस मुहावरे से भली - भाँति परिचित हैं कि एक गंदी मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है. कई लोग अपने जीवन में इस मुहावरे का उपयोग एक सीख के तौर पर करते हैं तो कई लोग दूसरों पर टिप्पणी करने हेतु. पर ये निश्चित कौन करेगा कि जिस तालाब को गंदा करने की वजह गंदी मछली बताई जा रही है , असल में गंदी मछली के कारण गंदा हुआ है या पूरा तालाब ही गंदगी से भरा है. यदि तालाब में पूर्णतया गंदगी ही व्याप्त है तो मछली क्या करे़...... जीवनयापन करने हेतु उतरना तो उस गंदे तालाब में ही पड़ेगा और लाख पवित्र या साफ - सुथरी होने के बावजूद तालाब की गंदगी की तरह उसे भी गंदे होने की त्रासदी सहनी पड़ेगी.
उपरोक्त विवेचना की प्रेरणा का आधार हमारे आधुनिक समाज अर्थात "मॉडर्न ससाइअटि " का घिनौना व दूषित वातावरण है जिसके चलते इस सटीक मुहावरे की परिभाषा ही बदल गई है.
समाज में फैले दूषित , संकीर्ण व तुच्छ मानसिकता वाले लोग जो यथार्थ से परे अपने जीवन को जीते हैं और हमारे समाज में गंद मचाए पड़े हैं और जब प्रश्न उन पर उठता है व उनके चरित्र पर उठता है तो अपने काले- कारनामों का घड़ा दूसरों के सिर पर फोड़ने की मूर्खता करते हैं . अत: इस मुहावरे का उपयोग भी आज की तारीख़ में आप उन्हीं लोगों के मुख से सुनेंगे जिनकी चुनरी व वस्त्रों में दाग ही नहीं अपितु जो अपने शरीर को ओढ़ने व ढकने हेतु चुनरी व वस्त्र ही नहीं पहनते . वे बेहर्म उन जीवों की श्रेणी में आते हैं जिनके मुँह को गली का हर कुत्ता शौचालय की भाँति प्रयोग करता है और वे इस बात पर हँसते हुए अन्य सफल व्यक्तियों की उन्नति , प्रगति, सुंदरता या उनके द्वारा किए गए सफल सामाजिक बदलावों को देख बस कहते ही रह जाते हैं कि - " एक गंदी मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है. "
आप सभी पाठकों के साथ यह बात साँझा करते हुए बेहद प्रसन्नता का अहसास हो रहा है कि हम अपनी पत्रिका के तीसरे चरण अर्थात तृ्तीय वर्ष में कदम रख चुके हैं. द्वितीय वर्ष में स्वप्निल सौंदर्य ई- पत्रिका के साथ हमने आप सभी के समक्ष ' सफ़केशन ' व ' एसिड - डाइल्यूट या कॉनसनट्रेटेड ?????? ' नामक दो ई- पुस्तकें प्रस्तुत कीं ... जिनमें सम्मिलित कहानियाँ आप ही पाठकों द्वारा आपके बेपनाह स्नेह व आशीर्वाद के साथ हमें प्राप्त हुईं जिसमें आप ने अपने जीवन के अनमोल अनुभवों का समावेश किया . इसके फलस्वरुप हम सभी को जीवन के अनगनित रंगों व कड़वी सच्चाईयों को समझने का व इनसे अवगत होने का अवसर प्राप्त हुआ ...........'सफ़केशन' व 'एसिड' में प्रकाशित हर कहानी को हमारे पाठकों की ओर से समुद्र सा अनंत प्रेम मिला और आप सभी पाठकों के ढेरों मेल्स ने हमें प्रोत्साहित व भावविभोर किया. इसके लिए आप सभी को तहे दिल से शुक्रिया .
आप सभी पाठकों के निरंतर मिल रहे पत्रों में अक्सर इस बात का जिक्र होता है कि हम अपनी पत्रिका को अब प्रिंट्स के जरिये देश भर के विभिन्न पुस्तक भंडारों में उपलब्ध कराएं ... अत: हम यह बेहद गर्व के साथ घोषित कर रहे हैं कि हम इस वर्ष के अंत तक अभी तक के प्रकाशित सभी अंकों में आपके द्वारा चुने गए सबसे अधिक प्रिय लेखों व कवर स्टोरीज़ को एकत्रित कर , स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन के तीनों वर्षों के संकलन को इस वर्ष के अंत तक लाँच अवश्य करेंगे.
स्वप्निल सौंदर्य लेबल द्वारा गत वर्ष के अंत तक हमने फ़ैशन , ज्वेल्स व लाइफस्टाइल पर आधारित ' फ़ैशन पंडित' व इंटीरियर डिज़ाइन, ग्रीन होम्स, वास्तु एवं फेंगशुई पर आधारित ' सुप्रीम होम थेरपि ' नामक पुस्तकें प्रकाशित की . इन्हें देश भर में काफी पसंद किया गया . इन पुस्तकों की सीमित कृ्तियाँ अभी हमारे ई- स्टोर पर उपलब्ध हैं.
आप सभी को जानकर कर हर्ष होगा कि स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन के इस अंक के साथ हम इस वर्ष लेकर आए हैं ' लावण्या :: डाँसिंग डॉल्स आफ इंडिया ' ( Lavanya : The Dancing Dolls of India ) नामक एक नव सेगमेंट , जिसमें आप पाठकों का साक्षात्कार होगा उन नामचीन , लोकप्रिय व अद्वितीय कला की धनी शास्त्रीय संगीत न नृ्त्य में पारंगत नृ्त्यांगनाओं से जिन्होंने शास्त्रीय नृ्त्य के क्षेत्र अपने अभूतपूर्व योगदान द्वारा अपनी दक्षता का लोहा मनवाया है. इसके साथ ही स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन में इस वर्ष कई नए सेगमेंट्स से आपका परिचय भी होगा . आशा है आपके प्रेम , टिप्पणियों व सलाहों द्वारा हर पल हमें और बेहतर कार्य करने की प्रेरणा मिलती रहेगी .....तो जुड़े रहिये ' स्वप्निल सौंदर्य ई- ज़ीन ' के साथ ........
और ...............
बनाइये अपनी ज़िंदगी को अपने सपनों की दुनिया .
M A K E Y O U R L I F E J U S T L I K E Y O U R D R E A M W O R L D .
स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन के तृ्तीय वर्ष के द्वितीय अंक में हम जिन विभिन्न पहलुओं व जानकारियों को सम्मिलित कर रहे हैं वे निम्नवत हैं :
विशेष : सौंदर्य , प्रतिभा व दक्षता का संगम :: मनीषा गुलयानी ( ऋषभ शुक्ला )
सौंदर्य : दाग - धब्बे व झाइयां दूर करने के लिए
आभूषण चर्चा : शक्ति व प्रभुत्व का प्रतीक : टोपाज ( स्वप्निल शुक्ला )
फ़ैशन ज्ञान : इवनिंग गाउन ( स्वप्निल शुक्ला )
पकवान : प्याज़ - पनीर परांठा ( दिव्या दीक्षित )
इंटीरियर्स : वास्तु शास्त्र और आप ( ऋषभ शुक्ला )
नानी माँ की बातें : गला बैठने की समस्या से पाइये छुटकारा ( सुमन त्रिपाठी )
साहित्य : अपूर्वा ~ 02 ( स्वप्निल शुक्ला )
अब कुछ समझ न आए ( कुमार प्रतीक )
डायरी : प्यार भरी आँखें ( शालिनी अवस्थी )
विविध : महाभारत की महानायिका- द्रौपदी ( ऋषभ शुक्ला )
सुर..लय...ताल : साहित्य संगीत कला विहीन : । साक्षात पशु पुच्छ विषाण हीन : ।। ( ऋषभ शुक्ला )
शुभकामनाओं सहित ,
आपका ,
ऋषभ ( Rishabh )
www.rishabhrs.hpage.com
विशेष :
लावण्या ~ दि डाँसिंग डॉल्स आफ इंडिया ' ( Lavanya : The Dancing Dolls of India ) ::
सौंदर्य , प्रतिभा व दक्षता का संगम :: मनीषा गुलयानी
नृ्त्य आत्मिक उल्लास एवं हर्ष को प्रकट करने का एक सहज , स्वाभाविक एवं बेमिसाल साधन है. आदि मानव को अपनी भूख मिटाने के लिए शिकार के पीछे काफी दौड़ने के बाद जब उसका शिकार प्राप्त हो जाता है तो वह आनंदमग्न होकर प्रसन्नता से नाचने लगता है . अत: आनंद की अभिव्यक्ति नृ्त्य को जन्म देती है. भारतीय मान्यता है कि नृ्त्य की उत्पत्ति भगवान शंकर से हुई . उन्होंने ही नृ्त्य की विभिन्न मुद्राओं का आविष्कार किया और तण्डु मुनि को नृ्त्य की शिक्षा दी .तण्डु मुनि से भरत को और भरत ने अपने पुत्रों को नृ्त्य की शिक्षा दी. भरत के पुत्रों ने इस जगत में नृ्त्य का प्रचार किया . शिव का यह नृ्त्य ताण्डव नृ्त्य कहलाया . देवी पार्वती ने लास्य नृ्त्य की रचना की . ताण्डव नृ्त्य पुरुष प्रधान और लास्य नृ्त्य स्त्री प्रधान नृ्त्य है. भारत की प्रत्येक नृ्त्य शैली में ताण्डव और लास्य की छाया दिखाई पड़ती है.
नृ्त्य का इतिहास बहुत प्राचीन है. मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाई में प्राप्त नृ्त्य करती हुई मूर्तियाँ इसकी प्राचीनता सिद्ध करती हैं. वेद, पुराण, रामायण , महाभारत आदि ग्रंथों में नृ्त्य का उल्लेख मिलता है. मौर्य और गुप्त काल में भी नृ्त्य का उल्लेख मिलता है. कौटिल्य ने तो नृ्त्यकार को इतना महत्व दिया है कि उसने एक स्थान पर लिखा है कि नृ्त्य के साधकों को राज्याश्रय मिलना चाहिये. राज्य की ओर से उनकी सब प्रकार की व्यवस्था करा देनी चाहिये जिससे कि वे नृ्त्य - साधना ठीक प्रकार से कर सकें.
कथक नृ्त्य जिसे कथक नटवरी नृ्त्य भी कहते हैं, उत्तर भारत का एक प्रमुख शास्त्रीय नृ्त्य है. कथक शब्द कोई नवीन शब्द नहीं है . ब्रह्म महापुराण, महाभारत , नाट्यशास्त्र में कथक शब्द का उल्लेख हुआ है. वह व्यक्ति कथक समझा जाता है जो लोकोपदेश के लिए अभिनय के माध्यम से कथा प्रस्तुत करता है. मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की मूर्तियों से कथक नृ्त्य का आभास मिलता है .
कथक नृ्त्य के विशिष्ट क्षेत्र में जहाँ अनेकों नृ्त्यांगनाएं एवं नृ्तक अपनी सफल भागीदारी दर्ज करा रहे हैं वहीं एक नाम , सूर्य के प्रकाश की भाँति उभर कर सामने आता है , जिन्होंने न केवल अपनी प्रतिभा के बल पर कथक नृ्त्य के रुप में भारतीय संस्कृ्ति की अनमोल विरासत को संजो कर रखा है बल्कि इसे विश्वस्तर पर बढ़ावा व प्रोत्साहन देने के लिए अनेकों कार्य भी किए हैं. हम बात कर रहे हैं, अद्वितीय प्रतिभा की धनी लोकप्रिय कथक नृ्त्यांगना मनीषा गुलयानी ( Kathak Dancer Manisha Gulyani ) की.
पिंक सिटी जयपुर में जन्मीं मनीषा गुलयानी ( Manisha Gulyani ) को बचपन से ही नृ्त्य के प्रति विशेष आकर्षण व रुझान था जिसके परिणामस्वरुप उन्होंने बेहद कम आयु से ही कथक की विधिवत शिक्षा जयपुर कथक केन्द्र से ग्रहण करनी प्रारंभ की. सर्वतोमुखी प्रतिभा की धनी मनीषा गुलयानी के नृ्त्य में जयपुर घराने की शैली साफ तौर पर नज़र आती है. इन्होंने पंडित गिरधारी महाराज एवं पंडित उदय मजूमदार के मार्गदर्शन में कथक नृ्त्य की बारीकियों को समझा व उन्हें आत्मसात किया. मनीषा गुलयानी के अद्वितीय एवं अतुलनीय कौशल, भाव, निपुणता व दक्षता के कारण इन्हें 2007 में ओ.एम.आई इंटरनेशनल रेज़िडेंसी अवार्ड ( OMI International Dance Residency award, USA ) , 2012 में इंटरनेशनल सूफी फेस्टिवल द्वारा आई. एस. एफ.आई गोल्ड अवार्ड ISFI ( Gold Award by International Sufi Festival, Ajmer ) , 2014 में कला के क्षेत्र में यूथ आइकॉन अवार्ड (Youth Icon Award 2014 (Arts), Jaipur ) से सम्मानित किया गया .
मनीषा गुलयानी ( Manisha Gulyani ) को मिनिस्ट्री आफ इनफॉरमेशन एण्ड ब्रॉड्कास्टिंग ( Ministry of Information and Broadcasting ) द्वारा आर्टीस्ट की श्रेणी प्राप्त है. इन्हें आई सी सी आर ( मिनिस्ट्री आफ एक्सटर्नल अफेअर्स ) के अधीन फॉरन असाइनमेंट्स के लिए बतौर शिक्षिका एवं परफॉर्मर के लिए चयनित किया गया है.
इनके राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सॉजर्न ( sojourns ) के अंतर्गत बालि स्पिरिट फेस्टिवल - इंडोनेशिया ( Bali Spirit Festival-Indonesia ), सिल्क रोड प्रॉजेक्ट्स - इटली (Silk Road Projects-Italy) , नाननिंग इंटरनेशनल फेस्टिवल- चाइना ( Nanning International Festival-China) , ट्रफेस्टा इंटरनेशनल डाँस फेस्टिवल - नाइज़ीरिया (Trufesta International Dance Festival-Nigeria) , कल्चराल - स्वीटज़रलैण्ड , इटली, जर्मनी, फाँस, बेलजियम, पोलैण्ड (CulturAll-Switzerland, Italy, Germany, France, Belgium, Poland) , ओ.एम.आई एण्ड हाई प्वाइंट यूनिवरसटि - यू.एस.ए ( OMI &High Point University USA) , कथक महोत्सव ( Kathak Mahotsav) , कथक समारोह ( Kathak Samaroh ) , राजस्थान संगीत नाटक अकादमी द्वारा आयोजित इंडियन म्यूज़िक एण्ड डाँस फेस्टिवल ( Indian Music & Dance festivals organized by Rajasthan Sangeet Natak Academy) आदि शामिल हैं.
भारतीय शास्त्रीय नृ्त्य के क्षेत्र में मनीषा गुलयानी द्वारा प्रस्तुत किए गए अनेकों रिसर्च पेपर्स प्रकाशित हो चुके हैं. ऎमटी स्कूल आफ परफॉरमिंग आर्टस , ऎमटी यूनिवरसटि राजस्थान ( Amity School of Performing Arts, Amity University Rajasthan ) की संयोजिका एवं भारतीय विद्या भवन ( Bharatiya Vidya Bhavan ) जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में बतौर नृ्त्य प्रशिक्षक के रुप में अपनी सक्रिय भागीदारी दे रही हैं.
शास्त्रीय संगीत, कथक नृ्त्य , भारतीय संस्कृ्ति व विरासत को बढ़ावा देने एवं इसको देश - विदेश तक पहचान दिलाने हेतु मनीषा गुलयानी ( Kathak Dancer Manisha Gulyani ) ने थिरक इंडिया कल्चरल सोसाइटी ( Thirak India Cultural Society ) की स्थापना करी . थिरक इंडिया कल्चरल सोसाइटी की संस्थापक के रुप में इनकी भूमिका व योगदान सराहनीय है.
2015 में कथक नृ्त्य के क्षेत्र में इनके बेमिसाल प्रदर्शन , योगदान व दक्षता को देखते हुए इन्हें नेशनल हेल्थ मिशन व राजस्थान कल्चरल सोसाइटी द्वारा वूमन आफ दि फ्यूचर अवार्ड से नवाज़ा गया साथ ही फिक्की लेडीज़ आर्गनाइज़ेशन ( जयपुर चैपटर ) { Ficci Ladies Organization, Jaipur Chapter } द्वारा भी इन्हें सम्मानित किया गया.
मनीषा गुलयानी के नृ्त्य में इनके हाथों का संतुलित घुमाव, पद संचालन, अंग , चक्कर आदि के बेमिसाल प्रदर्शन द्वारा इनके अपार कौशल का परिचय स्वत: ही मिल जाता है. दर्शक गण उनके लाजवाब एवं सौंदर्यपरक भावों व अंदाज़ को देख , इनकी नृ्त्य कला के सम्मोहन में बँधता चला जाता है. यह इनकी प्रभावशाली व बेहतरीन नृ्त्य कला का ही कमाल है कि जयपुर घराने की नृ्त्य शैली की कठिन तालों का प्रदर्शन हो या कठिन लयकारी प्रस्तुत करना , मनीषा गुलयानी जिस सहजता से कथक नृ्त्य को पेश करती हैं , उससे कथक नृ्त्य के क्षेत्र में उनकी गहरी तालीम उजागर होती है. जिस खूबसूरती व सहजता से मनीषा गुलयानी ( Kathak Dancer Manisha Gulyani ) अपने नृ्त्य में अंग संचालन, पाद- विक्षेप, नेत्र एवं भौं संचालन का समावेश करती हैं , वह इनके नृ्त्य को आपार सौंदर्य से भर अत्यंत प्रभावशाली , अतुल्नीय , आकर्षक व मनमोहक बनाता है.
कथक नृ्त्यांगना मनीषा गुलयानी ( Kathak Dancer Manisha Gulyani ) के विलक्षण व्यक्तित्व को व उनकी प्रतिभा को बयां करने में शब्द शायद कम पड़ जाएं . पता नहीं स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन के विशेष कॉलम के ज़रिये मनीषा गुलयानी को आप सभी पाठकों के कितना निकट ला पाया हूँ . कथक नृ्त्यांगना मनीषा गुलयानी ( Kathak Dancer Manisha Gulyani ) के व्यक्तित्व व कथक नृ्त्य के क्षेत्र में उनके योगदान के बारे में लिखते हुए ऐसा महसूस हुआ कि मनीषा जी का नृ्त्य के प्रति समर्पण अदभुत है . अपने में खो जाना ही तो , कभी किसी का हो जाना है " ...... कथक नृ्त्यांगना मनीषा गुलयानी ने नृ्त्य कला को अपने व्यक्तित्व में इस प्रकार समा लिया है और उसमें खो के वे नृ्त्य की एक बेहतरीन व प्रतिभावान पर्याय बन गई हैं. स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन टीम की ओर से कथक नृ्त्यांगना मनीषा गुलयानी ( Kathak Dancer Manisha Gulyani ) जी को ढेर सारी शुभकामनाएं व आभार .
Website :
www.manishagulyani.in
- ऋषभ शुक्ला ( Rishabh Shukla )
( संस्थापक - संपादक { Founder-Editor } )
सौंदर्य
दाग - धब्बे व झाइयां दूर करने के लिए ::
- एक पके टमाटर में छेद कर उसमें एक नींबू निचोड़ें. इस टमाटर को चेहरे पर रगड़ें और सूखने पर धो लें.
- दही व खीरे के रस का मिश्रण चेहरे पर लगाएं. इससे झाइयां दूर होती हैं.
- आधा टीस्पून नींबू का रस और ग्लीसरीन मिलाकर चेहरे पर लगाएं.
- शहद में थोड़ा केसर डालकर लगाने से काले दाग दूर होते हैं.
- हल्दी व तुलसी के पत्तों का पेस्ट लगाने से त्वचा संबंधी समस्याओं से छुट्कारा मिलता है .
आभूषण चर्चा :
शक्ति व प्रभुत्व का प्रतीक : टोपाज
सदियाँ बीतती जा रही हैं , पर पुखराज अर्थात टोपाज के प्रति लोगों का मोह किसी भी प्रकार से कम नहीं हो रहा है . एक लंबे अर्से से पुखराज सर्वाधिक लोकप्रिय रत्नों में शुमार होता आया है . ग्रीक और रोमन सभ्यता में इस रत्न को रहस्यमय शक्तियों का प्रतीक माना गया है. इस रत्न को शक्ति व प्रभुत्व का भी प्रतीक माना जाता है. टोपाज शब्द की उत्पत्ति ' टोपाजोस ' से हुई है . टोपाजोस लाल सागर में स्थित एक द्वीप है. कहा जाता है सदियों पूर्व रोमन सभ्यता के लोगों ने इसी द्वीप पर एक रत्न को ढूंढ़ निकाला था, जिसे उन्होंने टोपाज की संज्ञा दी. हालांकि कालांतर में जब इस रत्न की रासायनिक संरचना का विश्लेषण किया गया , तब यह पता चला कि रोमनों द्वारा तलाशा गया रत्न टोपाज नहीं बल्कि पेरीडॉट है . एक दूसरी मान्यता के अनुसार टोपाज शब्द की उत्पत्ति संस्कृ्त भाषा के शब्द ' तापस ' से हुई है जिसका अर्थ है अग्नि . प्राचीन मिस्त्रवासियों के अनुसार सूर्य देवता ने टोपाज के रंग में सुनहरी चमक का समावेश किया था . रोमनों ने इस रत्न को बृ्हस्पति ( जुपिटर ) के साथ संबद्ध किया. रोमन जुपिटर को सूर्य का देवता मानते थे. भारतीय मान्यता के अनुसार पुखराज को बृ्हस्पति ग्रह का मूल रत्न माना जाता है.
टोपाज को लेकर ऐसी मान्यता है कि विवाह की चौथी और उन्नीसवीं सालगिराह पर अपने जीवन साथी को इसे भेंट करना विशेष तौर पर शुभ माना जाता है. इसी तरह ' इंपीरियल टोपाज ' को शादी की 23 वीं सालगिराह पर धारण करना शुभ माना जाता है. मान्यता यह भी है कि टोपाज धारण करने पर रचनात्मक प्रवृ्त्तियों का विकास होता है और मन से नकारात्मक प्रवृ्त्तियाँ दूर होती हैं. इतना ही नहीं, इस रत्न को धारण करने से आध्यात्मिक रुझान बढ़ता है.
टोपाज विभिन्न रंगों में उपलब्ध है . हालांकि विशुद्ध टोपाज रंगहीन होता है पर एक विशेष तापक्रम पर गर्म करने पर टोपाज कई रंगों में परिवर्तित हो जाता है . जैसे पीले रंग के पुखराज ( टोपाज) गरम करने पर गुलाबी रंग में तब्दील हो जाते हैं . वैसे बाज़ार में नीले, पीले , गुलाबी, भूरे, लाल , हरे, नारंगी और सुनहरे रंग में टोपाज उपलब्ध हैं. एक वक़्त था जब पीले रंग के सभी रत्नों को पुखराज की श्रेणी में शुमार किया जाता था पर अब यह धारणा बदल चुकी है . नारंगी- लाल रंग वाले इंपीरियल वैरायटी के टोपाज को दुर्लभ व सार्वधिक कीमती माना जाता है. ब्लू टोपाज की सुंदरता भी अदभुत होती है . बाज़ार में इन दोनों किस्मों के टोपाज की अच्छी खासी मांग है.
टोपाज के स्त्रोतों की यदि बात की जाए तो दुनिया के कई देशों की खानों में टोपाज की विभिन्न किस्में पायी जाती हैं. जैसे रुस के साइबेरिया और यूराल पर्वत - श्रृंखलाओं में पाए जाने वाले टोपाज को उम्दा श्रेणी का माना जाता है. रुस के अतिरिक्त यह रत्न ब्राजील, , श्रीलंका, कुछ अफ्रीकी देशों , चीन, जापान, पाकिस्तान , म्यांमार, नाइजीरिया , आस्ट्रेलिया , मैक्सिको और अमेरिका में पाया जाता है . अमेरिका में उच्च कोटि का टोपाज कोलोराडो और कैलिफोर्निया में पाया जाता है . टोपाज का बड़ा भंडार ब्राजील में है.
19वीं शताब्दी में रुस में गुलाबी रंग के टोपाज की खोज हुई. यह रत्न इतना आकर्षक था कि रुस के शासक जार ने इस रत्न को सिर्फ शाही परिवार के लिए आरक्षित कर लिया. जार और उनके परिवार के अलावा अन्य का इस रत्न पर स्वामित्व नहीं हो सकता था. इसकी बेमिसाल खूबसूरती के कारण यह अंगूठी, ब्रेसलेट , हार, पेंडेंट आदि हर आभूषण में धारण करने पर फबेगा . बाज़ार में ब्लू टोपाज कई रंगों व आकारों में उपलब्ध है. अत: हर शख़्स अपनी पसंद के अनुसार ब्लू टोपाज के आभूषणों का चयन कर अपने व्यक्तित्व में चार- चाँद लगा सकता है. लाल और गहरे गुलाबी रंग वाले टोपाज दुर्लभ माने जाते हैं. इन रंगों वाले टोपाज की आभूषण प्रेमियों के बीच काफी माँग है.
सावधानी व देखभाल की दृ्ष्टि से टोपाज एक कठोर रत्न है . अत: इस रत्न को तुलनात्मक रुप से कम रत्नों के साथ नहीं रखा जाना चाहिये. ऐसा करने पर उनमें स्क्रैच आने की संभावना बनी रहती है. बेहतर होगा कि अन्य रत्नों के आभूषणों के साथ इन्हें न रखें. टोपाज के आभूषणों को सूर्य की किरणों से बचाना चाहिये . धूप लगने पर टोपाज का रंग धूमिल होने लगता है . इस रत्न को अल्ट्रासोनिक क्लीनर से साफ नहीं करना चाहिये . हल्के गुनगुने पानी में माइल्ड सोप मिलाकर टोपाज की साफ सफाई करें.
प्राचीन मान्यता है कि टोपाज धारण करने से कई रोगों में राहत मिलती है . कुछ लोगों की घारणा है कि इस रत्न को पहनने पर शरीर का इंडोक्राइन सिस्टम सुचारु रुप से संचालित होता है . इसी तंत्र से शरीर में विभिन्न हार्मोन प्रवाहित होते हैं, जो शरीर के विकास और स्वास्थ्य रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. सामान्य टिश्यूज़ के स्वाभाविक विकास में भी यह रत्न सहायक है. पुराने समय में मान्यता थी कि टोपाज धारण करने पर भूख खुलकर लगती है और हाजमा दुरस्त रहता है . ऐसी धारणा है कि रक्त संबंधी विकार दूर करने में भी टोपाज काफी सहायक होता है.
- स्वप्निल शुक्ला ( Swapnil Shukla )
( swapniljewels.blogspot.com )
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फ़ैशन ज्ञान
इवनिंग गाउन
ऐसे बहुत से अवसर व समारोह होते हैं जो अमूमन रात्रि के समय निर्धारित किए जाते हैं और ऐसे अवसरों पर सही परिधानों का चयन एक भागीरथी प्रयास होता है . ऐसे अवसरों के लिए 'इवनिंग गाउन' एक बेहतरीन विकल्प है. फ़ैशन के क्षेत्र में इवनिंग गाउन्स की बड़ी महत्ता है. फार्मल पार्टीस , समारोह आदि में इवनिंग गाउन धारण करना , सबसे बेहतरीन विकल्प माना जाता है . इवनिंग गाउन अमूमन लगश़ुरिअस फैब्रिक्स जैसे शिफॉन , वेलवेट , सैटन, आरगेन्ज़ा आदि द्वारा तैयार की जाती हैं. सिल्क फाइबर द्वारा तैयार इवनिंग गाउन्स सब्से अधिक प्रचलन में हैं. बॉल गाउन व इवनिंग गाउन में अंतर होता है. बॉल गाउन में हमेशा फुल स्कर्ट व उचित आकार की अर्थात फिटेड चोली ( बॉडिस ) होती है. इसके विपरीत इवनिंग गाउन शीथ़ , मरमेड, ए- लाइन या ट्रमपिट आकार की हो सकती हैं जिसमें एमपायर या ड्राप्ड वेस्ट हो सकती है. ब्लैक टाई इवेंट्स या व्हाइट टाई इवेंट्स में पुरुषों के साथ यदि महिलायें इवनिंग गाउन धारण करें , तो यह एक बेहतरीन सामंजस्य प्रदर्शित करता है . ब्यूटी पीजेंट्स की यदि बात करें, तो इनमें भी इविनिंग गाउन सेगमेंट्स की महत्ता को दरकिनार नहीं किया जा सकता .
इवनिंग गाउन्स टी लेंथ { अर्थात मिड काफ़ ( टाँग की पिंडली ) से ऎंकल लेंथ } से फुल लेंथ तक उप्लब्ध हैं. यदि स्टाइल की बात करें तो बाज़ार में ये विभिन्न प्रारुपों में उप्लब्ध हैं. 'शीथ़ स्टाइल् इवनिंग गाउन' को इस प्रकार डिज़ाइन किया जाता है ताकि ये आपकी बॉडी के आकार के अनुसार सहजता से फिट हो जाएं. यह साधारणतय: अनबेल्टेड ( बेल्ट रहित ) होती है व स्ट्रेट ड्रेप से लैस होती हैं. ये शोलडर स्ट्रैप के साथ या शोलडर स्ट्रैप के बिना भी उप्लब्ध हैं. 'मरमेड ( जलपरी ) स्टाइल इवनिंग गाउन्स' , अपने नाम की तरह ही मरमेड के आकार की होती हैं. फिटेड बॉडिस ( चोली ) के साथ इसकी स्कर्ट को मरमेड की पूँछ के आकार के आधार पर इसका प्रारुपण तैयार किया जाता है. 'ए- लाइन स्टाइल इवनिंग गाउन्स' ऊपर से क्लोस फिटेड होती है और बिना गैद़र्स या प्लीट्स के, नीचे से वाइड होती चली जाती हैं. यह सिंपल व एलिगेंट लुक प्रदान करती हैं. 'ट्रमपिट (तुरही के आकार की ) स्टाइल इवनिंग गाउन्स' टाइट फिटेड होती हैं परंतु नीस अर्थात घूटनों तक आते ही अधिक चौड़ी हो जाती हैं जिन्हें हम टेकनिकल भाषा में फ्लेअर्स कहते हैं. 'ड्राप्ड वेस्ट स्टाइल इवनिंग गाउन्स' की वेस्ट्लाइन , असल वेस्ट्लाइन से थोड़ा अधिक नीचे होती है. इसमें स्कर्ट फिटेड या फ्लेअर्ड होती है.
इसके अतिरिक्त आप इवनिंग गाउन्स के प्रारुपण के अन्य पहलुओं को भी नज़रअंदाज़ न करें. रफल्स, ज्वेलड बेल्ट, स्वीटहार्ट नेकलाइन, वन - शोलडर लुक आदि बारीकियों पर भी गौर फरमाएं.
इवनिंग गाउन्स के प्रारुपण में इमब्रॉइडरी , बीड्स, सीक्विंस आदि मटीरियल्स का प्रयोग किया जाता है. यदि आप इवनिंग गाउन खरीदने जा रहीं हैं तो सबसे पहले इस बात का ध्यान रखें कि आप को अपनी शारीरिक बनावट के बारे में जानकारी हो ताकि अपनी बॉडी टाइप व उम्र के आधार पर आप इवनिंग गाउन का चयन कर सकें. यह बेहद आवश्यक है कि आप अपनी उम्र के अनुसार अपने परिधानों का चयन करें. आज बाज़ार में 40, 50 आदि उम्र की महिलाओं के व्यक्तित्व पर फबने वाली इवनिंग गाउन्स भी उप्लब्ध हैं.
इसके अलावा यदि आपका वज़न अधिक है तो आप डार्क कलर्स जैसे ब्लैक, नेवी ब्लू, महरुन आदि रंगों का चयन करें . ये आपको स्लिमर लुक प्रदान करेंगे. इसके अलावा यदि आप प्लस साइज़ हैं परंतु आपकी बाँह टोन्ड हैं तो आप हाल्टर नेक इवनिंग गाउन्स का चुनाव करें और यदि आपकी बाँह माँसल हैं तो आप बेहिचक ऐसी इवनिंग ड्रेसेस का चुनाव करें जिनमें स्लीवस ( आस्तीन ) हों. इवनिंग गाउन की डिज़ाइन , रंग व फिटिंग आपको आरामदायक अनुभूति दे रही है या नहीं , इस पर भी गौर फरमाएं. इवनिंग गाउन धारण करने के साथ आपको एक्सेसरीज़ पर भी ध्यान देना होगा. ज्वेलरी, फुटवियर, हैंड्बैग्स, बेल्ट आदि का चयन बेहद सूझ- बूझ के साथ करें.ध्यान रहे आपका मेकअप व हेयर स्टाइलिंग आपके व्यक्तित्व को और निखारे और अपने दिमाग में यह विचार कतई न लाएं कि इवनिंग गाउन जैसे महँगे परिधान खरीद आप पैसे की बरबादी कर रही हैं. यकीन मानिये आपकी वार्ड्रोब में इवनिंग गाउन का होना हर सूरतेहाल में आपको कभी निराश नहीं होने देगा. इसके ज़रिये आप कॉकटेल पार्टीस, वेडिंग रिसेपशन्स, फॉर्मल डिनर पार्टीस या बीच पार्टीस में अपने सौंदर्य का जादू बिखेर सकती हैं.
- स्वप्निल शुक्ला ( Swapnil Shukla )
ज्वेलरी डिज़ाइनर ( Jewellery Designer )
फ़ैशन कंसलटेंट ( Fashion Consultant )
( swapnilsaundarya.blogspot.com )
The above article has published in one of the leading Nationalised Magazines .......
पकवान
दिव्या की किचिन से
पाक- कला- प्रवीण 'दिव्या दीक्षित' ( Divya Dixit ) की किचिन से सीधे लेकर आएं हैं हम आपके लिए कुछ चुनिंदा स्वादिष्ट व्यंजन जिससे हर गृ्हणी व कामकाजी महिला की हर रोज़ की किचिन संबंधी समस्याओं से उन्हें मिलेगी राहत . हर दिन क्या नया बनाएं, क्या खाएं और अपनों को खिलाएं जो हर किसी को रास आए और लोगों के दिलों में आप छा जाएं और बन जाएं स्मार्ट किचिन क्वीन , इन प्रश्नों के हल व एक से बढ़कर एक लज़ीज़ रेसिपीस के लिए जुड़े रहिये ' दिव्या की किचिन से '.
प्याज़ - पनीर परांठा ::
सामग्री :
3 कप गेहूं का आटा
आधा कप हरी प्याज़ कटी हुई
डेढ़ कप पनीर कसा हुआ
आवश्यकतानुसार तेल या बटर
नमक व परांठा मसाला स्वादानुसार
विधि :
आटे में नमक डालकर गूँध लें . कसा हुआ पनीर , हरी प्याज़ और परांठा मसाला मिलाकर स्टफिंग तैयार करें. आटे की छोटी- छोटी लोई बनाएं. इसमें तैयार मिश्रण की स्टफिंग करें और परांठे बेल लें. तवे पर बटर , घी या तेल लगाकर सेंक लें. गरमा- गरम सर्व करें.
इंटीरियर्स
वास्तु शास्त्र और आप
वास्तु शास्त्र का क्षेत्र काफी विस्तृ्त है . नि: संदेह इस विद्या का मूल उद्देश्य मानव जीवन में सुख, शांति , सुगमता व सौहार्द लाना है. आज लगभग हर व्यक्ति अपने घर का निर्माण वास्तु शास्त्र के नियमों के अनुरुप ही करवाना पसंद करते है .वास्तु शास्त्र के बारे में जब भी कोई बात हमारे सामने आती है तो सबसे पहले विचार यही आता है कि आखिर किस तरीके से हम अपने घर व व्यापार में वास्तु सा सही प्रयोग कर लाभ उठा सकते हैं. तो आइये सबसे पहले इस संदर्भ में जानते है कि वास्तु शास्त्र है क्या ? और ये किस प्रकार हमारे जीवन पर प्रभाव डालता है?
वास्तु शास्त्र एक प्राचीन कला व विज्ञान है जिसके अंतर्गत किसी भी स्थान के उचित निर्माण से संबंधित वे सब नियम आते हैं जो मानव और प्रकृ्ति के बीच सामंजस्य बैठाते हैं जिससे हमारे चारों ओर खुशियाँ, संपन्नता , सौहार्द व स्वस्थ वातावरण का निर्माण होता है.
वास्तु शास्त्र की रचना पंचतत्व अर्थात धरती, आकाश , वायु , अग्नि, जल व आठ दिशाओं के अंतर्गत होती है.
अपने घर को सही वास्तु शास्त्र के अनुसार सुनियोजित करने के लिए दिशाज्ञान यंत्र अर्थात कम्पास का प्रयोग करें ताकि घर की सही दिशाओं का ज्ञान हो सके.
सबसे पहले घर के पूजा कक्ष अर्थात मंदिर की बात करें तो इसको घर के उत्तर पूर्व { ईशान } दिशा मेम बनवाना चाहिये. अब प्रश्न यह उठता है कि मंदिर के अंदर की आठ दिशाओं की क्या व्यवस्था होनी चाहिये?
ईश्वर की मूर्ति पश्चिम या पूर्व दिशा में स्थापित करनी चाहिये. मंदिर की ईशान { उत्तर पूर्व } दिशा पूजा करने के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थल होता है.
पूजा कक्ष के बाद बात करते हैं शयन कक्ष की . घर के मुखिया के लिए दक्षिण - पश्चिम { नैऋत्य } दिशा का शयन कक्ष बेहतर होता है. मुखिया के बाद घर के बड़े सदस्य को दक्षिण - पूर्व व उसके बाद के सदस्य को उत्तर- पश्चिम दिशा में शयन कक्ष बनवाना चाहिये. बच्चों के लिए उत्तर- पूर्व दिशा में बनवाया गया शयन कक्ष बेहतर रहता है.
शयन कक्ष के अंदर बिस्तर को या तो कमरे के मध्य में रखें या फिर कमरे की दक्षिण - पश्चिम हिस्से में लगायें क्योंकि वास्तु शास्त्र के अनुसार दक्षिण - पश्चिम हिस्सा सदैव भारी होना चाहिये . बिस्तर कभी भी उत्तर व पूर्व दिवारों से सटा न हो . शयन कक्ष में पुस्तकों की अलमारी आदि दक्षिण - पश्चिम या पश्चिम दिशा में रखें . स्टडी टेबल व चेयर भी इसी दिशा में रखना शुभ माना जाता है. यदि शयन कक्ष में हम टी. वी व अन्य बिजली के उपकरणों का प्रयोग कर रहे हैं तो इनको दक्षिण - पूर्व { आग्नेय } दिशा में लगायें.
अब हम बात करते हैं बाथरुम की . बाथरुम को घर के उत्तर - पश्चिम कोने में बनवायें. बाथरुम के अंदर ईशान { उत्तर - पूर्व } दिशा में शॉवर या नल लगवाएं . बाथरुम के ईशान क्षेत्र में कभी भी ड्ब्ल्यू. सी ( W.C. ) न लगवाएं . शीशा सदैव पूर्व दिशा में लगाएं. ड्ब्ल्यू . सी को उत्तर - पश्चिम { वायव्य } क्षेत्र में लगवाएं. गंदे कपड़ों को पश्चिम दिशा में रखें. यदि कोई अलमारी हो तो उसे दक्षिण - पश्चिम क्षेत्र में रखें. गीजर, हीटर व अन्य बिजली के उपकरणों को दक्षिण - पूर्व { आग्नेय } दिशा में लगवाएं. बाथरुम का प्रवेश उत्तर या पूर्व में रखें.
आइए अब हम बात करते हैं किचन अर्थात रसोईघर की . किचन को घर के दक्षिण - पूर्व { आग्नेय } दिशा में बनवाना चाहिये. यदि घर का प्रवेश द्वार पूर्व या दक्षिण में हो तो आप किचन को उत्तर - पश्चिम { वायव्य } दिशा में स्थापित करें. खाना बनाने की वर्किंग प्लेट्फार्म को पूर्व दिशा में होना चाहिये क्योंकि खाना बनाते समय यदि खाना बनाने वाले का मुँह पूर्व दिशा में हो तो शुभ माना जाता है. किचन के सिंक को उत्तर - पूर्व { ईशान } दिशा में होना चाहिये . ऐसी मान्यता है कि उत्तर पूर्व दिशा में पानी का प्रवाह बेहद शुभ होता है. किचन में सिलेंडर को दक्षिण - पूर्व { आग्नेय } दिशा में रखें. गीजर व अन्य बिजली के उपकरणों को भी दक्षिण - पूर्व { आग्नेय } दिशा में लगवाएं . किचन के बर्तन , खाने का सामान , अलमारी आदि को दक्षिण व पश्चिम दिशाओं में बनवायें. फ्रिज को उत्तर- पश्चिम क्षेत्र में रखें.
वास्तु शास्त्र हमारे प्राचीन इतिहास की एक अनमोल देन है. वास्तु शास्त्र के नियमों पर आधारित बने हुए मकान उस घर में रहने वाले सदस्यों के लिए सदैव खुशहाली, संपन्नता, सुख व शांति लाते हैं . वास्तु शास्त्र के नियमों के अनुरूप की गई आंतरिक साज- सज्जा , वस्तुओं का सही दिशानुसार रख -रखाव आदि द्वारा हम हमारे घर में सकारात्मक ऊर्जाओं को आमंत्रित करके अनेकों प्रकार से लाभ उठा सकते हैं और अपने जीवन को एक खूबसूरत व सुखद आयाम दे सकते हैं .
- ऋषभ शुक्ल ( Rishabh Shukla )
इंटीरियर डिज़ाइनर ( Interior Designer )
वास्तु एवं फेंग शुई कंसलटेंट ( Vastu & Feng shui Consultant )
अगर आप उन लोगों में से एक हैं , जो अपने आस - पास, सौंदर्यपरक , सुगम व सुव्यवस्थित वातावरण की संरचना करना चाहते हैं और अपने आशियाने को बनाना वाहते हैं अपने सपनों का घर , तो यकीन मानिये ' सुप्रीम होम थेरपि ' केवल आप के लिए ही लिखी गई है .
होम डेकॉर , ग्रीन इंटीरियर डि़ज़ाइन , डेकोरेटिंग में क्या करें और क्या न करें, वास्तु एवं फेंग शुई, कलात्मक वस्तुओं की मह्त्ता आदि तमाम मह्त्वपूर्ण जानकारियों से लैस है , डिज़ाइनर व पेंटर ' ऋषभ शुक्ला' द्वारा लिखित पुस्तक ' सुप्रीम होम थेरपि ', जो आपके मकान को बना देगी आपके सपनों का घर .
पुस्तक : सुप्रीम होम थेरपि
लेखक :ऋषभ शुक्ला
विधा : नॉन- फिक्शन
भाषा : अंग्रेज़ी
विषय : होम डेकॉर
प्रकाशक : स्वप्निल सौंदर्य पब्लिकेशन्स
विसिट करें : www.riatheestudio.blogspot.com
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नानी माँ की बातें
गला बैठने की समस्या से पाइये छुटकारा ::
- शलजम को पानी में उबालकर पीने से गले की खराश मिट जाती है.
- अजवायन और शक्कर उबालकर पीने से गला खुल जाता है.
- एक ग्लास गर्म पानी में डेढ़ चम्मच शहद डालकर गरारा करने से बैठा गला ठीक हो जाता है.
- प्याज़ के रस में थोड़ी सा शहद मिलाकर गुनगुने पानी के साथ लें.
- गुनगुने पानी में नींबू का रस निचोड़कर नमक मिलाकर गरारा करें.
- सुमन त्रिपाठी ( Suman Tripathi )
साहित्य :
अपूर्वा :: 02
गमों में ढले हैं, गमों में पले हैं
ज़िंदगी बिल्कुल भँवर बन गई है
फूल भी यूँ लग रहे हैं
राहों में काँटे बन कर बिछे हैं
हर पल हर लम्हा , एक सहारा ढूँढती हूँ
एक किनारा ढूँढती हूँ
यूँ लग रहा है कि
खुद का साया भी अब खोने लगा है
अपने ही अपनों के घर को जलाते हैं
रिश्तों की दुनिया बस बेईमानी सी
बन कर रह गई है
अपनों से ही ज़ख्म मिले, बेगानों ने न साथ दिया
पर औरों से हमें न रहा कोई गिला
जब खुद खुदा का हम पर हाथ रहा .
- स्वप्निल शुक्ला ( Swapnil Shukla )
www.swapnilsworldofwords.blogspot.com
अब कुछ समझ न आए ..........
थक गया मैं ज़िंदगी से लड़ कर ,
अब कुछ समझ ना आए कि क्या करुँ,
हर तरफ दिया ज़िंदगी ने धोखा
अब कुछ समझ न आए कि क्या करुँ.
सोचा था कभी कि ज़िंदगी होगी हसीं,
पर कमबख़्त वो तो निकली बदनसीब ,
जिसे चाहा वो कभी मिल ना पाया ,
ऐसे मझधार में फँसा दिया इसने,
कि अब डूब जाने को जी चाहे.
वक़्त - बेवक़्त दिए नए- नए ज़ख्म इसने,
सँभलने का मौका न दिया,
क्या करुँ,किधर जाऊँ सब रास्ते बँद हैं,
ज़िंदगी के इस सफर में हम तो बदनसीब हैं.
एक आस जगी थी बहुत पहले,
कि शायद कुछ अच्छा होगा ,
नए दोस्त बने , नई ज़िंदगी मिली,
मिला जीने का नया बहाना.
पर शायद मँज़ूर ना था,
ज़िंदगी को कि खुश वो मुझे देख सके,
कर दिया दूर फिर उसने सबसे,
और अकेले रह गए हम .
एक दोस्त के लिए तरस रहे थे,
कोई तो मेरी चाहत को समझे .
पर इसी आशा में जीता रहा ,
और आज आखिरी मुकाम पे आ गया .
नहीं पता कल क्या होगा,
ज़िंदा रहूँ या ना रहूँ,
पर वो कसक दिल में ,
रह जाएगी और शायद,
मौत भी अच्छे से नसीब न हो पाएगी.
- कुमार प्रतीक ( Kumar Pratik )
एम. बी. ए. डिग्री होल्डर ' प्रतीक ' ( Pratik ) की ज़िंदगी अधिकतर कॉर्परट (Corporate ) जगत के इर्द- गिर्द ही घूमती रहती है. फिर भी इस भाग- दौड़ भरी ज़िंदगी में भी उन्होंने अपने लेखन के शौक़ को पंख दिए हैं. इनकी रचनाएं ज़िंदगी की सत्यता, तन्हाई व श्रृंगार रस पर केन्द्रित हैं.
डायरी
प्यार भरी आँखें ::
' प्रभात ' सच में अपने नाम की ही भाँति मेरे जीवन में एक नए सवेरे की तरह आया था जिसने मेरे जीवन को एक नई काँतिमय रोशनी से भर दिया .
प्रभात कॉलेज का सबसे खूबसूरत युवक था . अमूमन कॉलेज की हर लड़की उसको अपना जीवन साथी बनाना चाहती थी. विधि विद्यालय का आखिरी वर्ष मेरे लिए बहुत अहम था. प्यार , इश्क , मोहब्बत जैसी बातों के लिए मेरे पास समय न था. मेरे दिलो- दिमाग में बस एक ही धुन थी, पूरे भारत की श्रेष्ठ वकील बनने की धुन . कॉलेज में मेरे साथी मुझे लेडी हिटलर कहते थे. लंबा कुर्ता, चूड़ीदार सलवार , सिर पर जूड़ा, अत्यधिक लंबे नाखून जो हर वक़्त लाल नेल पेंट से सजे रहते थे, चटख गुलाबी रंग की लिपस्टिक - मेरा यह लिवाज़ मेरी पहचान था . कॉलेज की सभी युवतियाँ मुझसे जलती थीं और युवक मुझपे जाँ छिड़कते ...... अध्यापक अमूमन मुझे यही समझाते कि सुहानी ! कॉलेज में नाखून काट कर लिपस्टिक के बिना आया करो पर मैं अपने नाखूनों व गुलाबी लिपस्टिक के साथ जरा सा भी समझौता नहीं कर सकती थी.
प्रभात एक बेहद खूबसूरत पर सिंपल युवक था . श्याम वर्ण , घुँघराले बाल , लंबा कद , सुगठित देह , बड़ी- बड़ी आँखें, जिनमें हर वक़्त गुस्सा बना रहता था. वह थोड़ा अंतर्मुखी था और बेहद अड़ियल और घमंडी . उसे खुद पर बेहद गुरुर था और शायद उसे अपनी खूबसूरती व काबिलियत की पहचान भी थी जिसकी वजह से गुरुर उसके अंग- अंग से छलकता था.
मेरी और प्रभात की कभी बात - चीत नहीं हुई . एक दिन तबियत खराब होने के कारण जब मैं अपना असाइनमेंट पूर्ण न कर पाई तब मुझे प्रोफेसर साहब की लंबी डाँट सुननी पड़ी. मेरे लिए यह काफी शर्मनाक वाक्या था क्योंकि पढ़ाई- लिखाई को लेकर मैं बेहद गंभीर थी . फिर प्रोफेसर की इतनी डाँट ...... वो भी सभी सहपाठियों के सामने .. उस दिन प्रोफेसर साहब ने यहाँ तक कह दिया कि मेकअप , गुलाबी लिपस्टिक लगाने से फुर्सत मिलती , तब असाइनमेंट पूरा कर पाती ना ..........
प्रोफेसर साहब की इस बात पर सभी छात्र- छात्राएं जोर- जोर से हँसने लगे और एकाएक मेरी आँखों से आँसू छलक पड़े. आँसू पोछते हुए मैं अपनी सीट पर बैठने को हुई , तभी मेरी नज़र प्रभात पर पड़ी . हर वक़्त गुस्से में रहने वाला प्रभात मेरी तरफ बड़ी ही मासूमियत से देख रहा था . उसके होंठों पे भीनी सी मुस्कुराहट थी और आँखों में अजीब सी गहराई - प्रेम की गहराई . पता नहीं जहाँ सभी सहपाठी मुझ पर हँस रहे थे , वहीं प्रभात की आँखों में इतना प्यार , इतनी कशिश देख मुझे अचानक प्रभात से गहरा आकर्षण हो उठा . कितना सुंदर था वो, कितना प्यार था उसकी आँखों में ....उसकी मुस्कुराहट .....वो भीनी सी मुस्कुराहट ... कितना अपनत्व , कितनी मोहब्बत ..... ओह ! मेरे प्रभू ! ..........आज भी प्रभात की वो प्यार भरी आँखें , मुझे एक अजीब सा सुकून देती हैं . उस वक़्त तो मैंने तुरंत अपनी नज़रें प्रभात पर से फेर लीं पर उस दिन के बाद से दिन मेरे लिए ज़ालिम होते गए और रातें कातिलाना बन गईं. मुझे प्रभात की प्यार भरी आँखों से प्यार हो गया था .
फिलहाल सात दिनों के भीतर मैंने अपना असाइनमेंट पूर्ण कर प्रोफेसर साहब को दिखाया . प्रोफेसर साहब ने मेरे काम की तारीफ़ की. सभी सहपाठियों ने तालियों द्वारा मुझे सम्मान दिया . प्रोफेसर साहब की आँखों में शर्मिंदगी थी ... उन्हें शर्मिंदगी थी खुद पर ...होनी भी चाहिये थी क्योंकि उनकी डाँट के बाद से मैंने कॉलेज में कभी गुलाबी लिपस्टिक नहीं लगाई. प्रभात पता नहीं क्यों रोज मुझे बड़े ही गौर से देखता जैसे वो मुझे समझने की कोशिश कर रहा हो. उसकी आँखों में मेरे लिए बेपनाह मोहब्बत थी , पाकीज़गी थी, पवित्रता थी ... सच्चा प्यार था ... उसकी आँखें , उसकी प्यार भरी आँखें मुझे बेहद सुकून देती थीं.
एक दिन अचानक प्रभात मेरे पास आया और उसने एक छोटे से पैकेट से एक लिपस्टिक निकाली और मुस्कुराते हुए मुझसे कहा , " ये लो सुहानी ." मैंने पूछा ये क्या है ? प्रभात ने कहा, " ये लाल लिपस्टिक है .. लाल का मतलब खतरा, ताकत, जोश , उमंग . अभी कुछ ही दिनों में तुम एक ताकतवर और खतरनाक वकील बन जाओगी तो उस लिहाज से अब तुम्हें गुलाबी नहीं बल्कि लाल लिपस्टिक लगानी चाहिये और वैसे भी लाल नेल पेंट के साथ गुलाबी की जगह लाल लिपस्टिक ही मैच करती है और यह कहकर प्रभात जोर - जोर से हँसने लगा . उसकी हँसी में , उसकी आवाज़ में कितना अपनापन था ......कितने हक से उसने मुझसे यह बात कही बिना इस फिक्र के कि उसकी इस हरकत पर मैं उसे एक तमाचा भी मार सकती हूँ पर प्रभात की बातचीत में जरा सी भी कुत्सित मानसिकता का समावेश न था . वह उस वक़्त एक अबोध मासूम बच्चे की तरह मुझसे आग्रह कर रहा था . वो बस मेरे चेहरे पर हँसी लाना चाहता था . मैंने प्रभात के हाथों से लाल लिपस्टिक ले ली और उस रात मैं सो न सकी . मुझे अहसास था कि मुझे प्रभात से मोहब्बत हो चुकी है, सच्ची मोहब्बत ............. रात के 2:00 बजे मैं , अपनी माँ के पास गई और मैंने अपना हाल - ए- दिल सुनाया. माँ प्राइमरी स्कूल में शिक्षिका थीं . अत: अगले दिन सुबह उन्हें स्कूल जाना था परंतु उन्होंने हँसते हुए मेरी बातें ध्यान से सुनी और मुझसे पूछा, " तो क्या मैं तुम्हारी प्रभात से शादी करा दूँ ?" .......उनके इस प्रश्न से मैं, चौंक गई. मैंने माँ से कहा, " माँ , आप क्या बात कर रही हैं .... इस वक़्त मेरी हालत विश्वामित्र की तरह है जो अपनी तपस्या में लीन थे ... फल मिलने ही वाला था कि मेनका ने तपस्या भंग करा दी. प्रभात मेरे जीवन की मेनका है." ... माँ मेरी इस बात पर जोर से ठहाके लगा कर हँसने लगीं.
अगले दिन सुबह कॉलेज जाते वक़्त अचानक सड़क पार करने के दौरान मुझे एक ट्रक तेजी से मेरी तरफ आता दिखा . ट्रक ड्राइवर का ट्रक पर से नियंत्रण खो चुका था . मैं आवाक व स्तब्ध रह गई तभी मुझे किसी ने जोर से घक्का मारा और मैं सड़क के किनारे जा गिरी. ट्रक सीधा निकल गया पर सड़क खून से लाल हो गई . वो खून प्रभात का था . प्रभात मृ्त्यु को प्राप्त हो चुका था . उसके हाथों में लाल गुलाब का एक फूल था .......... मैं, नि: शब्द रह गई .. कुछ देर बाद मैं वहीं बेहोश हो गई .. जब होश आया तब मैं घर पर थी .माँ को पास में बैठा देख मैं फूट- फूट कर रोने लगी .. माँ ने मुझे समझाया और कहा कि यही ज़िंदगी है.
15 वर्ष बीत गए , मैं आज एक सफल वकील हूँ . एक लॉ फर्म की मालकिन हूँ. प्रभात को मैं आज भी भुला नहीं पाई हूँ . मैंने शादी नहीं की क्योंकि जो प्यार मैंने प्रभात की आँखों में देखा था वो मुझे आज तक किसी की आँखों में नहीं दिखा. प्रभात की उन प्यार भरी आँखों ने व भीनी सी मुस्कुराहट ने मुझे कभी किसी के प्यार की कमी महसूस होने ही नहीं दी और मैं, आज भी लाल लिपस्टिक के साथ लाल नेल पेंट लगाना कभी नहीं भूलती .
- शालिनी अवस्थी ( Shalini Awasthi )
अंग्रेज़ी साहित्य में परास्नातक श्रीमती शालिनी अवस्थी ( Shalini Awasthi ) जिंदगी की कठोर व कड़वी सच्चाईयों को साहित्य के रंग में रंगना बखूबी जानती हैं. स्त्री विमर्श , स्त्री संघर्षों को उजागर करती ऐसी कहानियाँ जो हमारे मस्तिष्क को ही नहीं अपितु हमारी आत्मा तक को हिला कर रख दें. श्रीमती शालिनी अवस्थी के द्वारा रचित दिल में कचोटन पैदा करने वाली कहानियाँ अब स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन का निरंतर हिस्सा होंगी.
विविध
महाभारत की महानायिका- द्रौपदी
'महाभारत' - हमारे प्राचीन इतिहास की महागाथा ....... धर्म की अधर्म पर विजय का साक्षी ..... महाभारत साक्षी है कि जब-जब संसार में अधर्म ने धर्म पर हावी होने का प्रयत्न किया है , तब स्वयं धर्म की रक्षा करने हेतु ईश्वर संसार में अवतरित हुए हैं और धर्म की रक्षा की है . महाभारत की गाथा से सबसे बड़ा संदेश जो मिलता है वो यह है कि स्त्री का अपमान करने की चेष्टा करने वालों का जड़मूल समेत सर्वनाश होता है और इसकी साक्षात संदेशवाहिनी बनीं द्रुपदनंदिनी द्रौपदी .
'द्रौपदी' - प्रतीक है धर्म की, न्याय की..... द्रौपदी वह लौह नारी हैं जिन्होंने द्वापर युग में और आने वाले युगों व पीढ़ियों के लिये यह स्पष्ट संदेश दिया कि नारी का अपमान करने की चेष्टा करने वाले कापुरुषों का जो रक्तरंजित समूल अंत होता है वो सदियों तक रुह में कँपन पैदा करने वाला होता है.
इतिहास साक्षी है कि द्रौपदी ही असल में महाभारत की महानायिका है, महाभारती है , अपराजिता है, लौह नारी है. यज्ञकुण्ड से अवतरित वो देवी स्वरुपा हैं जो अन्याय , अनाचार , अधर्म व अनैतिकता के विरुद्ध चुनौती बनकर अग्निज्वाला सी दहकती रहीं व विजयी हुईं . बहुत से लोगों ने भरी सभा में अपमान कर उस द्रुपद्सुता को तोड़ने के लिये हर संभव प्रयत्न किये पर द्रौपदी ज्वालामुखी सी अग्निशिखा के समान धधकती हुई, न सिर्फ अपने पतिव्रता धर्म का पालन करते हुए अपने पाँचों पतियों को दासता से मुक्ति दिलायी बल्कि एक वीरांगना के रुप में शपथ भी ली कि वो अपने अपमान का बदला दुशासन के रक्त से अपने केश धोकर लेगी व भरी सभा में द्रौपदी का अपमान करने वालों को जब तक यमलोक न पहुँचा दिया जाए, तब तक उसकी अंतरात्मा को शाँति नहीं मिलेगी .
द्रौपदी नारी शक्ति की द्योतक हैं . वह युद्ध की देवी हैं , प्रचंड साहसी हैं जिन्होंने अपने जीवन में हर प्रकार के अपमान सहे परंतु वो न झुकीं, न टूटीं बल्कि एक ऐसे महाभारत युद्ध की रचना की जिसके आघोष में सब छितर बितर हो गया. द्रौपदी के तेज व विलक्षण व्यक्तित्व को श्रीकृ्ष्ण ने ही समझा तभी तो धर्म की अधर्म पर विजय का संदेश देने के लिये स्रोत बनीं द्रौपदी .
द्रौपदी वह स्त्री हैं जिनके जीवन में अनेकों संघर्ष आए. स्वयंवर में पति के रुप में अर्जुन को चुना पर विधि की विडंम्बना तो देखिये कि अर्जुन और कुंती की गलती के कारण द्रौपदी को पाँच पतियों की पत्नी होने की त्रासदी सहनी पड़ी . जिसके कारण द्रौपदी को अनेकों लाँछन सहने पड़े . विचित्र मर्यादाओं व नियम जो उसी के लिये बनाए गए उनका पालन करना पड़ा . द्रौपदी अद्वितीय सौंदर्य , तार्किक शक्ति , बुद्धिमत्ता व विद्या की धनी वीरांगना स्त्री थीं. . उनके विलक्षण व्यक्तित्व के कारण बड़े- बड़े महारथियों ने ईर्ष्या व जलन के कारण उनके खिलाफ अनेकों षड़यंत्र व कुचक्र रचे ताकि द्रौपदी उनके समुख टूट जाए , झुक जाए व अपना मनोबल खो बैठे . परंतु अतुल्य था द्रुपदनंदिनी का आत्मबल . आजीवन संघर्षों के कारण वह भी टूट सकती थी पर जितना कापुरुषों ने उन्हें कुचलने का प्रयास किया वो उतनी ही धधकती हुई एक क्रुद्ध वीरांगना की तरह हुंकारती हुई हर अत्याचार के खिलाफ पुरजोर विरोध करती रहीं.धर्म की रक्षा के लिये तत्पर रहीं.
द्र्पदनंदिनी द्रौपदी का अंत तक कोई भी आत्म- सम्मान व मनोबल तोड़ न सका. कोई भी उनके मार्ग को काट नहीं पाया . द्रुपदनंदिनी की आपार शक्ति, बौधिक कौशल , मनोबल व स्वाभिमान का लोहा उनके दुश्मनों ने भी माना. उस युग में द्रौपदी ही एकमात्र ऐसी स्त्री हैं जो नारी शक्ति की द्योतक हैं . महाभारत काल की ही यदि बात करें तो कितनी ही नारियों पर धर्म के नाम पर अनेकों अत्याचार किये गए. ध्यान देने योग्य बात है , जो हुआ अम्बा के साथ . किस विवशता के कारण उसने आत्मघात किया . अंधत्व से ब्याह देने पर क्यों गांधारी ने भी सदा के लिये अपनी आँखे बंद कर ली थीं . परंतु द्रौपदी का चरित्र ऐसा है जो ना सिर्फ नारी के भीतर बल्कि पुरुषों में भी वीरता फूँक दें . जिसमें अग्निज्वाला है , प्रतिशोध की भावना है तो करुणा का सागर भी है. श्रीकृ्ष्ण की परम भक्त , उस युग में भक्ति की शक्ति को दर्शाने वाली, स्वर्ण की भाँति वो जितना जली उतनी ही प्रखर व दिव्य होती गई. वो लावण्या थी. अकेलेदम अन्याय के खिलाफ पुरजोर विरोध कर स्वाभिमान के साथ जीवन जीने वाली एक शक्ति व प्रेरणा स्रोत थीं.
द्रौपदी साक्षी हैं एक ऐसे संपूर्ण व्यक्तित्व की जो अपनी ज़िम्मेदारियों को संपूर्ण ईमानदारी के साथ निभाती हुई जीवन के संघर्षों का ड्ट्कर व पूरे साहस के साथ सामना कर व हर अत्याचार , कर कुचक्र , षड़्यंत्र को अपने मनोबल द्वारा काटती और विरोध करती हुईं दीपशिखा की भाँति प्रज्जवलित होती रहीं व धर्म का प्रतीक बन सही मायनों में बनीं महाभारत की महानायिका व अपराजिता.
- ऋषभ शुक्ला ( Rishabh Shukla )
The above article has published in one of the leading Nationalised Magazines .......
सुर ..... लय ..... ताल
' साहित्य संगीत कला विहीन : । साक्षात पशु पुच्छ विषाण हीन : ।। '
संस्कृ्त साहित्य के सुप्रसिद्ध विद्वान एवं विचारक श्रीभतृ्र्हरि का उपरोक्त विचार आज के आधुनिक समय में भी उतना ही प्रासंगिक है जितना 300 वर्षों पूर्व रहा होगा. आचार्य भतृ्र्हरि ने मनुष्य के लक्षणों की ओर इंगित करते हुए साहित्य , संगीत व कला से विहीन मनुष्य को पशु की श्रेणी में रखा है. सृ्ष्टि की समस्त वस्तुओं को हम दो भागों में विभाजित कर सकते हैं. एक जड़ और दूसरा चेतन . चेतन के अंतर्गत मनुष्य व पशु ये दो प्रकार के जीव आते हैं. मनुष्य को सृ्ष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी कहा गया है . अब यहाँ विचार करना है कि कुआ मनुष्य के लिए हाथ , पैर , आँख, नाक , कान आदि का होना ही पर्याप्त है या इसके अतिरिक्त भी उसकी अस्मिता के लिए कुछ अन्य गुण होने भी आवश्यक हैं. इन्हीं आवश्यक गुणों की और संकेत करते हुए विद्वान ने साहित्य, संगीत कला विहीन : ' का उल्लेख किया है उन्होंने मनुष्य को मानव के रुप में अपनी पहचान बनाए रखने के लिए साहित्य, संगीत, कला इन तीन गुणों से परिपूर्ण होना अनिवार्य कहा है. आगे यह भी कहा है कि इन गुणों में विहीन मनुष्य पशु के समान है. और वह भी उस निम्न श्रेणी का पशु जो पूँछ व सींग से रहित है. श्रीभतृ्र्हरि ने उपरोक्त तीनों गुणों से विहीन व्यक्ति को निम्न श्रेणी के पशुओं की पंक्ति में खड़ा कर दिया है. मनुष्य की पहचान उसकी प्रगति का प्रतीक है व उसकी चेतना , उसके साहित्य और संगीत कला की प्रवीणता से है. किसी देश का साहित्य , उसका इतिहास , बौद्धिक प्रगति व श्रेष्ठ चिंतकों के विचारों का भंडार उस देश की धरोहर होती है और उसका संगीत उसके परिष्कृ्त संस्कारों का प्रतीक होता है. हमारे देश में एक ओर जहाँ संगीत के माध्यम से ईश्वर प्राप्ति का प्रयास किया जाता है तो दूसरी ओर हर्ष , उल्लास, संयोग , वियोग व सुख , दुख को व्यक्त करने का सशक्त माध्यम माना जाता है. उपरोक्त श्लोक में कवि ने कला शब्द का प्रयोग कियाहै . समस्त कलाओं को हम दो भागों में विभक्त कर सकते हैं :: ललित कला और वास्तु कला. ललित कला के अंतर्गत उच्च श्रेणी की कला जैसे संगीत, कविता, चित्रकला आदि आते हैं. वह मनुष्य ही क्या जिसमे ये गुण न हों. जीवन तो एक पशु भी जीता है, परंतु उसका जीवन मनुष्य के जीवन से कितना भिन्न होता है, क्योंकि उसमें साहित्य, संगीत और कला का अभाव होता है . तभी कहा जाता है कि साहित्य , संगीत और कला से विहीन मनुष्य पूँछ और सींग विहीन पशु के समान है.
- ऋषभ शुक्ला ( Rishabh Shukla )
{ The Writer has attained musical degree ' Sangeet Prabhakar ' in Indian Classical Percussion Instrument ' Tabla' from Prayag Sangeet Samiti , Allahabad in First Class First division. }
आपके पत्र
आपके पत्र ..... आपका नज़रिया
* स्वप्निल सौंदर्य ई ज़ीन के तृ्तीय वर्ष संपूर्ण होने पर बहुत - बहुत बधाई. पत्रिका की विषय - वस्तु , कंटेट , रंग - रुप व गुणवत्ता उच्च श्रेणी की है और इसकी दिनों - दिन बढोत्तरी सराहनीय है. ऋषभ जी को इस अदभुत व अनमोल पत्रिका को निरंतर प्रकाशित करने हेतु ढेरों शुभकामनाएं व आभार.
-मोहन खरे , शिमला
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साभार
- अनीता साहू, अजमेर
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- G.P. Adarkar, Pune
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