Swapnil Saundarya e-zine # Volume -03 , Issue -01, 2015
।। Swapnil Saundarya e-zine ।।
।। स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन ।।
।। स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन ।।
Volume -03 , Issue -01, 2015
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स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन - परिचय
कला , साहित्य, फ़ैशन, लाइफस्टाइल व सौंदर्य को समर्पित भारत की पहली हिन्दी द्वि-मासिक हिन्दी पत्रिका के तीसरे चरण अर्थात तृ्तीय वर्ष में आप सभी का स्वागत है .
फ़ैशन व लाइफस्टाइल से जुड़ी हर वो बात जो है हम सभी के लिये खास, पहुँचेगी आप तक , हर पल , हर वक़्त, जब तक स्वप्निल सौंदर्य के साथ हैं आप.
प्रथम एवं द्वितीय वर्ष की सफलता और आप सभी पाठकों के अपार प्रेम व प्रोत्साहन के बाद अब स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन ( Swapnil Saundarya ezine ) के तृ्तीय वर्ष को एक नए रंग - रुप व कलेवर के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है ताकि आप अपनी ज़िंदगी को अपने सपनों की दुनिया बनाते रहें. सुंदर सपने देखते रहें और अपने हर सपने को साकार करते रहें .तो जुड़े रहिये 'स्वप्निल सौंदर्य' ब्लॉग व ई-ज़ीन के साथ .
और ..............
बनायें अपनी ज़िंदगी को अपने सपनों की दुनिया .
( Make your Life just like your Dream World )
Launched in June 2013, Swapnil Saundarya ezine has been the first exclusive lifestyle ezine from India available in Hindi language ( Except Guest Articles ) updated bi- monthly . We at Swapnil Saundarya ezine , endeavor to keep our readership in touch with all the areas of fashion , Beauty, Health and Fitness mantras, home decor, history recalls, Literature, Lifestyle, Society, Religion and many more.
Swapnil Saundarya ezine encourages its readership to make their life just like their Dream World .
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Founder - Editor ( संस्थापक - संपादक ) :
Rishabh Shukla ( ऋषभ शुक्ला )
Managing Editor (कार्यकारी संपादक) :
Suman Tripathi (सुमन त्रिपाठी)
Chief Writer (मुख्य लेखिका ) :
Swapnil Shukla (स्वप्निल शुक्ला)
Art Director ( कला निदेशक) :
Amit Chauhan (अमित चौहान)
Marketing Head ( मार्केटिंग प्रमुख ) :
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'स्वप्निल सौंदर्य - ई ज़ीन ' ( Swapnil Saundarya ezine ) में पूर्णतया मौलिक, अप्रकाशित लेखों को ही कॉपीराइट बेस पर स्वीकार किया जाता है . किसी भी बेनाम लेख/ योगदान पर हमारी कोई ज़िम्मेदारी नहीं होगी . जब तक कि खासतौर से कोई निर्देश न दिया गया हो , सभी फोटोग्राफ्स व चित्र केवल रेखांकित उद्देश्य से ही इस्तेमाल किए जाते हैं . लेख में दिए गए विचार लेखक के अपने हैं , उस पर संपादक की सहमति हो , यह आवश्यक नहीं है. हालांकि संपादक प्रकाशित विवरण को पूरी तरह से जाँच- परख कर ही प्रकाशित करते हैं, फिर भी उसकी शत- प्रतिशत की ज़िम्मेदारी उनकी नहीं है . प्रोड्क्टस , प्रोडक्ट्स से संबंधित जानकारियाँ, फोटोग्राफ्स, चित्र , इलस्ट्रेशन आदि के लिए ' स्वप्निल सौंदर्य - ई ज़ीन ' को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता .
कॉपीराइट : 'स्वप्निल सौंदर्य - ई ज़ीन ' ( Swapnil Saundarya ezine ) के कॉपीराइट सुरक्षित हैं और इसके सभी अधिकार आरक्षित हैं . इसमें प्रकाशित किसी भी विवरण को कॉपीराइट धारक से लिखित अनुमति प्राप्त किए बिना आंशिक या संपूर्ण रुप से पुन: प्रकाशित करना , सुधारकर संग्रहित करना या किसी भी रुप या अर्थ में अनुवादित करके इलेक्ट्रॉनिक या यांत्रिक , प्रतिलिपि, रिकॉर्डिंग करना या दुनिया के किसी भी हिस्से में प्रकाशित करना निषेध है . 'स्वप्निल सौंदर्य - ई ज़ीन ' के सर्वाधिकार ' ऋषभ शुक्ल' ( Rishabh Shukla ) के पास सुरक्षित हैं . इसका किसी भी प्रकार से पुन: प्रकाशन निषेध है.
चेतावनी : 'स्वप्निल सौंदर्य - ई ज़ीन ' ( Swapnil Saundarya ezine ) में घरेलु नुस्खे, सौंदर्य निखार के लिए टिप्स एवं विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों के संबंध में तथ्यपूर्ण जानकारी देने की हमने पूरी सावधानी बरती है . फिर भी पाठकों को चेतावनी दी जाती है कि अपने वैद्य या चिकित्सक आदि की सलाह से औषधि लें , क्योंकि बच्चों , बड़ों और कमज़ोर व्यक्तियों की शारीरिक शक्ति अलग अलग होती है , जिससे दवा की मात्रा क्षमता के अनुसार निर्धारित करना जरुरी है.
संपादकीय
प्रिय पाठकों .......
आप सभी को नमस्ते !
आप सभी पाठकों के साथ यह बात साँझा करते हुए बेहद प्रसन्नता का अहसास हो रहा है कि हम अपनी पत्रिका के तीसरे चरण अर्थात तृ्तीय वर्ष में कदम रख चुके हैं. द्वितीय वर्ष में स्वप्निल सौंदर्य ई- पत्रिका में हमने आप सभी के समक्ष ' सफ़केशन ' ( Suffocation ) व ' एसिड - डाइल्यूट या कॉनसनट्रेटेड ?????? ' ( ACID :: Dilute or Concentrated ? ) नामक दो ई- पुस्तकें प्रस्तुत कीं ... जिनमें सम्मिलित कहानियाँ आप ही पाठकों द्वारा आपके बेपनाह स्नेह व आशीर्वाद के साथ हमें प्राप्त हुईं जिनमें आप ने अपने जीवन के अनमोल अनुभवों का समावेश किया. इसके फलस्वरुप हम सभी को जीवन के अनगनित रंगों व कड़वी सच्चाईयों को समझने का व इनसे अवगत होने का अवसर प्राप्त हुआ ...........'सफ़केशन' ( Suffocation ) व 'एसिड' ( ACID :: Dilute or Concentrated ? ) में प्रकाशित हर कहानी को हमारे पाठकों की ओर से समुद्र सा अनंत प्रेम मिला और आप सभी पाठकों के ढेरों मेल्स ने हमें प्रोत्साहित व भावविभोर किया. इसके लिए आप सभी को तहे दिल से शुक्रिया .
आप सभी पाठकों के निरंतर मिल रहे पत्रों में अक्सर इस बात का जिक्र होता है कि हम अपनी पत्रिका को अब प्रिंट्स के जरिये देश भर के विभिन्न पुस्तक भंडारों में उपलब्ध कराएं ... अत: हम यह बेहद गर्व के साथ घोषित कर रहे हैं कि हम इस वर्ष के अंत तक अभी तक के प्रकाशित सभी अंकों में आपके द्वारा चुने गए सबसे अधिक पसंदीदा लेखों व कवर स्टोरीज़ को एकत्रित कर , स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन के तीनों वर्षों के संकलन को इस वर्ष के अंत तक लाँच अवश्य करेंगे.
स्वप्निल सौंदर्य लेबल द्वारा गत वर्ष के अंत तक हमने फ़ैशन , ज्वेल्स व लाइफस्टाइल पर आधारित ' फ़ैशन पंडित' ( Fashion Pandit ) व इंटीरियर डिज़ाइन, ग्रीन होम्स, वास्तु एवं फेंगशुई पर आधारित ' सुप्रीम होम थेरपि ' ( Supreme Home Therapy ) नामक पुस्तकें प्रकाशित की . इन्हें देश भर में काफी पसंद किया गया . इन पुस्तकों की सीमित कृ्तियाँ अभी हमारे ई- स्टोर पर उपलब्ध हैं.
आप सभी को जानकर कर हर्ष होगा कि स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन के इस अंक के साथ हम इस वर्ष लेकर आए हैं ' लावण्या :: दि डाँसिंग डॉल्स आफ इंडिया ' ( Laavanya : The Dancing Dolls of India ) नामक एक नव सेगमेंट , जिसमें आप पाठकों का साक्षात्कार होगा उन नामचीन , लोकप्रिय व अद्वितीय कला की धनी शास्त्रीय संगीत न नृ्त्य में पारंगत नृ्त्यांगनाओं से जिन्होंने शास्त्रीय नृ्त्य के क्षेत्र में अपने अभूतपूर्व योगदान द्वारा अपनी दक्षता का लोहा मनवाया है. इसके साथ ही स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन में इस वर्ष कई नव सेगमेंट्स से आपका परिचय भी होगा . आशा है आपके प्रेम , टिप्पणियों व सलाहों द्वारा हर पल हमें और बेहतर कार्य करने की प्रेरणा मिलती रहेगी .....तो जुड़े रहिये ' स्वप्निल सौंदर्य ई- ज़ीन ' के साथ ........
और ...............
बनाइये अपनी ज़िंदगी को अपने सपनों की दुनिया .
M A K E Y O U R L I F E J U S T L I K E Y O U R D R E A M W O R L D .
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सौंदर्य क्या है ? सौंदर्य की सटीक परिभाषा आखिर है क्या ?
इन प्रश्नों का उत्तर बेहद सीधा है.......... सौंदर्य देखने वाले की आँखों में होना चाहिये और व्यक्ति विशेष की सोच ही तय करती है कि उक्त व्यक्ति के अनुसार सौंदर्य के असल मायने क्या हैं.
मेरा मानना है कि बाहरी सौंदर्य से अधिक महत्वपूर्ण आपके भीतर का सौंदर्य होता है . आपके कर्म ही होते हैं जो आपको सौंदर्य अर्थात सुंदरता या कुरुपता की श्रेणी में लाते हैं. यदि सूरत मासूम हो और सीरत कुटिल तो ऐसी शख्सियत को आप कभी 'खूबसूरत' या 'सुंदर' शब्द से नहीं नवाज़ेंगे. और जिन लोगों के कर्म सुंदर होते हैं विश्वास मानियेगा जन्म से भले ही वे कलात्मक नाक -नक्श लेकर इस धरती पर अवतरित न हुए हों पर उनके सुंदर कर्मों की सुंदरता व लावण्य द्वारा उनका व्यक्तित्व भी सुंदरता अर्थात सौंदर्य से अलंकृ्त हो जाता है.
सुंदरता व सफलता का भी आपस में अत्यंत गहरा संबंध है . सुंदर व्यक्ति सफल होते हैं और जो सफल होते हैं वे स्वयं सुंदर हो जाते हैं . सफलता और सुंदरता संकट से घिरी रहती है . जैसे सूर्य पर ग्रहण लगता है पर सूर्य स्वयं के प्रकाश से उससे पार हो जाता है. इसलिए व्यक्ति सूर्य को देख कर जीवन में आगे बढ़ता है.
सुंदरता चाहे बाहरी हो या भीतरी हो , तन की हो या मन की हो ....सूरत की हो या सीरत की .... कर्मों की हो या विचारों की .... चेहरे की हो या दिमाग की ..... अदाओं की हो या आपके स्वभाव की ........मेरे अनुसार सुंदरता ऐसी हो जिसकी तारीफ मुमकिन न हो ....सुंदरता ऐसी हो जैसी चाँदनी की रात ... बारिश की पहली बूँद सी शीतल हो ....सूरज की पहली किरण सी उज्जवल हो..... आसमां और धरती को जोड़ने वाले क्षितिज सी .....सुंदरता ऐसी हो जिसे देखने वाले बस देखते ही रह जाएं . सुंदरता ऐसी हो जैसे कोई ख्वाब हो ........सुंदरता ऐसी हो जिसमें मानो आसमां और जमीं समा गए हों ....जो हरदम दिलकश लगे ...जो हर पल मदहोश करे...... सुंदरता ऐसी हो जैसे सौंधी सी खुशबू कोई.... सुंदरता ऐसी हो जो खुदा की दुआ सी लगे .... सुंदरता ऐसी हो जो हरपल एक अदा सी लगे. सुंदरता ऐसी हो जिसके आगोश में समा जाने का दिल करे .... सुंदरता ऐसी हो जिसके सामने दुनिया की हर फिक्र छोटी लगे. सुंदरता ऐसी हो जिसमें ज़िंदगी का सार समाया हो ....सुंदरता ऐसी हो जो जीना सिखा दे ...सुंदरता ऐसी हो जो मौत के वक़्त भी चैन व सुकून दे जाए.
बस यही हैं मेरे अनुसार सुंदरता के कुछ मापदंड . ध्यान दीजियेगा सुंदरता तन की हो या मन की, सुंदरता परमात्मा का दिया हुआ एक वरदान है , तोहफा है , इसकी हिफाज़त कीजियेगा.......इसका ख्याल रखियेगा . इस स्वार्थी दुनिया में आपकी सुंदरता मैली न हो इसलिए उस पराशक्ति पर सदैव विश्वास रखियेगा . खुद को आइने में हर रोज़ देखते ही होंगे ...बस इस बात का हमेशा ख्याल रखियेगा कि आपसे कभी कुछ ऐसा न हो जाए कि आपका प्रतिबिंब , आपका अक्स आइने में आपकी सुंदरता को कुरुपता में परिवर्तित कर दे .
सुंदरता के विभिन्न पहलुओं को एकत्रित करते हुए स्वप्निल सौंदर्य ई- ज़ीन के इस अंक में हम लेकर आएं हैं कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ केवल आप पाठकों के लिए ताकि आप सभी बना सकें अपनी ज़िंदगी को अपने सपनों की दुनिया. स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन के तृ्तीय वर्ष के प्रथम अंक में हम जिन विभिन्न पहलुओं व जानकारियों को सम्मिलित कर रहे हैं वे निम्नवत हैं :
विशेष : लावण्य , सौंदर्य व हुनर का पर्याय :: ऋचा जैन ( ऋषभ शुक्ला )
सौंदर्य : सौंदर्य मंत्र
आभूषण चर्चा : इस मौसम को बनाएं खास , रत्नों के साथ...... (स्वप्निल शुक्ला )
फ़ैशन ज्ञान : गर्मियों के हॉट फ़ैशन टिप्स ........ ( स्वप्निल शुक्ला )
पकवान : एगलेस केक ( दिव्या दीक्षित )
इंटीरियर्स : लाएं खुशियों की सौगात ' फेंगशुई ' के साथ ( ऋषभ शुक्ला )
नानी माँ की बातें : घरेलु उपचार ( सुमन त्रिपाठी )
साहित्य : अपूर्वा :: 01 ( स्वप्निल शुक्ला )
अधूरा प्यार ........ ( कुमार प्रतीक )
डायरी : मेरी परी ( शालिनी अवस्थी )
विविध : रुद्राक्ष ( स्वप्निल शुक्ला )
सुर ..... लय ..... ताल : भारतीय जीवन में संगीत ( ऋषभ शुक्ला )
शुभकामनाओं सहित ,
आपका ,
ऋषभ ( Rishabh )
www.rishabhrs.hpage.com
विशेष :
लावण्या ~ दि डाँसिंग डॉल्स आफ इंडिया ' ( Laavanya : The Dancing Dolls of India ) ::
लावण्य , सौंदर्य व हुनर का पर्याय :: ऋचा जैन ( Richa Jain )
नृ्त्य मन के उल्लास को प्रकट करने का एक सहज , स्वाभाविक और उत्कृ्ष्ट साधन है. बच्चा जब प्रसन्न होता है तो वह स्वत: हाथ - पैर इधर - उधर हिलाकर नाचने लगता है और वह प्रसन्न उस समय होता है जब उसे अपने मन की वस्तु प्राप्त हो जाती है . अत: यह कहना किसी भी प्रकार से अतिशयोक्ति न होगा कि आनंद की अभिव्यक्ति नृ्त्य को जन्म देती है. ध्यान रहे कि केवल हाथ - पाँव चलाने को नृ्त्य कला नहीं कहते . उसे सुंदरता और नियमबद्ध तरीके से करने पर ही नृ्त्य, कला का रुप लेता है. और जब नृ्त्य के साथ गायन - वादन दोनों होता है तो नृ्त्य का सौंदर्य बढ़ जाता है. आठ विभिन्न शास्त्रीय नृ्त्यों में कथक नृ्त्य को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है . कथक नृ्त्य उत्तर प्रदेश , बिहार, बंगाल , मध्य प्रदेश, राजस्थान , पंजाब आदि प्रांतों में प्रचलित है. यह उत्तर प्रदेश का शास्त्रीय नृ्त्य है. कथक शब्द की उत्पत्ति कथा से हुई और ' कथनं करोति कथक:' अर्थात जो कथन करता है वह कथक है . वैसे तो अन्य नृ्त्यों में भी कथानक होते हैं किंतु कथक नृ्त्य में कथा प्रधान है , इसलिए इसे कथक की संज्ञा दी गई है. कथक की प्राचीन परंपरा है . महापुराण, महाभारत तथा नाट्यशास्त्र में भी कथक शब्द मिलता है . पाली शब्द कोष में कथको एक उपदेशक के लिए प्रयुक्त किया गया है. मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाई में नृ्त्य करती हुई स्त्रियों की जो मूर्तियाँ प्राप्त हुईं हैं उनकी मुद्राओं से कथक नृ्त्य का आभास होता है.
प्राचीन काल में कथावाचकों द्वारा मंदिरों में पौराणिक कथाएं हुआ करती थीं . कथा के बाद जब कीर्तन होता था तो नट लोग जिन्हें भरत कहते थे, नृ्त्य करते थे. कुछ समय के बाद नट जाति के लोगों में बुराइयाँ आ जाने के कारण उनका समाज में बहिष्कार सा हो गया . अत: इन नटों ने स्वयं कथा कह - कह कर नृ्त्य करना आरंभ कर दिया जिससे उनकी जीविका चलती रहे . यही नट बाद में कत्थक या कथक कहलाने लगे. नृ्त्य के शास्त्रीय सिंद्धातों से परिचित वे भगवान की लीलाओं का नृ्त्य प्रधान नाटक व स्वाँग किया करते थे. अत: भक्त - समुदाय से उन्हें यश और धन दोनों प्राप्त होता रहा . बाद में यह नृ्त्य मुख्यत: राजदरबारों से संबंधित रहा, अत: श्रृंगार और अलंकारप्रियता इसकी विशेषता हो गई. इस नृ्त्य में तबला- पखावज से संगति की जाती है. नर्तक तैयारी के साथ पैरों की गति से तबला- पखावज के बोलों को निकालते हैं. इसमें अधिकतर परंपरागत कृ्ष्ण चरित्र का चित्रण किया जाता है.
आज के समय में कथक नृ्त्य के क्षेत्र में नृ्त्यांगनाओं का बड़ा वर्चस्व है. नई प्रतिभाओं के साथ नृ्त्य विद्या का यह विस्तार सुखद है . इस कड़ी में नृ्त्यांगना ऋचा जैन ( Kathak Dancer Richa Jain ) का नाम कथक नृ्त्य के क्षेत्र में किसी पहचान का मोहताज़ नहीं .
लावण्य, सौंदर्य और बेमिसाल प्रतिभा का दूसरा नाम ऋचा जैन ( Kathak Dancer Richa Jain ) को कहना अनुपयुक्त न होगा. कथक परिवार में जन्मीं ऋचा जैन को यह कला अपने माता- पिता से विरासत में मिली है. ऋचा जैन ने कथक नृ्त्य के क्षेत्र में अपनी औपचारिक शिक्षा मात्र तीन वर्ष की आयु से पिता श्री रवि जैन जी व माँ श्रीमती नलिनी जैन जी के मार्गदर्शन में प्रारंभ की. माँ नलिनी जैन व पिता पंड़ित रवि जैन जयपुर एवं लखनऊ घराने की नृ्त्य शैली के स्थापित कलाकार थे. अत: इनके नृत्य में जयपुर और लखनऊ दोनों घरानों की खूबियाँ सम्मिलित हैं जो दर्शकों को मंत्रमुग्ध करने में सक्षम हैं. कथक नृ्त्य के हर पहलुओं व पक्षों पर कड़ी पकड़ व विशिष्ट्ता रखने वाली ऋचा जैन का नृ्त्य अत्यंत मनमोहक व सौंदर्यपरक है . ऋचा जैन ( Kathak Dancer Richa Jain ) के नृ्त्य कौशल की तारीफ़ करना सूर्य को दिया दिखाने समान लगता है .
भगवान कृ्ष्ण की लीलाओं से जुड़े कई कथा - प्रसंगों का कथक जैसे जटिल नृ्त्य के साथ संरचना , लाजवाब व प्रशंसनीय है. तबले की तालों पर इनके पाँव की थिरकती गतियाँ , भावाभिव्यक्ति , अंग संचालन और लयकारी की संगत देखते ही बनती है.
कथक नृ्त्य ( Kathak Dance ) के अतिरिक्त ऋचा जैन ( Richa Jain ) ने पंडि़त अजीत कुमार मिश्रा और ए महेश्वर राव से शास्त्रीय संगीत की विधिवत शिक्षा ग्रहण की. ऋचा जैन नृ्त्य करने के साथ बंदिशों व गीतों को गाती भी हैं जिसके फलस्वरुप इनकी प्रत्येक प्रस्तुति प्रभावशाली व भेदकारी बन पड़ती है.
बात चाहे चक्करदार तिहाई में चक्करों के प्रयोग की हो या जयपुर घराने के थाट , आमद, तोड़े, टुकड़े व तत्कार को तीन ताल में पेश करना हो या एक परन के द्वारा 6 मात्रा में 16 मात्रा के तीन ताल के जटिल अंदाज़ को दर्शाना हो, ऋचा जैन की नृ्त्य कला लाजवाब , बेमिसाल एवं अत्यंत रोचक सिद्ध होती है और इनका हर अंदाज़ अत्यंत मोहक व आकर्षक होता है.
ऋचा जैन ( Kathak Dancer Richa Jain ) , राणा चूड़ावत और रानी हाड़ा की जीवन गाथा को कथा वाचन शैली में पेश कर दर्शकों की आपार प्रशंसा बटोर चुकी हैं. देश की संस्कृ्ति , परंपरा व शास्त्रीय नृ्त्य एवं संगीत को सहेजने की दिशा में कथक नृ्त्यांगना ऋचा जैन ( Kathak Dancer Richa Jain ) कहती हैं कि अपनी संस्कृ्ति को आने वाली पीढ़ी के लिए सहेज कर रखना तभी संभंव है जब उसे रुचिकर तरीके से नई पीढ़ी तक पहुँचाया जाए . नई पीढ़ी को देश की परंपरा और संस्कृ्ति से रुबरु कराने के लिए उनके साथ समय बिताना होगा. अभिभावकों को चाहिये कि वे बच्चों को संस्कृ्ति से जुड़ी प्रदर्शनी या धरोहर दिखाएं.इस तरह छोटे-छोटे तरीकों से बच्चों को देश की परंपरा से रुबरु करा सकते हैं. वाट्सएप , फेसबुक पर बच्चों संग जुड़ें तो उन्हें इंटरनेट से शास्त्रीय नृ्त्य- संगीत की जानकारी लेकर साँझा करने को कहें.
कथक नृ्त्यांगना ऋचा जैन ( Kathak Dancer Richa Jain ) दूरदर्शन , आल इंडिया रेडियो के साथ ही आई सी सी आर ( ICCR ) की कलाकार भी हैं. ये 2008 से ही देश के विभिन्न प्रतिष्ठित मंचों और कार्यक्रम में अपने हुनर का प्रदर्शन कर रही हैं. इन्हें 2009 में सुर - श्रृंगार समसद मुंबई द्वारा ' श्रृंगार मणि ' से सम्मानित किया गया. ऋचा ने दिल्ली विश्वविद्यालय से वाणिज्य विषय में परास्नातक की उपाधि प्राप्त की है.
कथक नृ्त्यांगना ऋचा जैन ( Kathak Dancer Richa Jain ) के विलक्षण व्यक्तित्व को व उनकी प्रतिभा को बयां करने में शब्द शायद कम पड़ जाएं . पता नहीं स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन के विशेष कॉलम के ज़रिये ऋचा जैन को आप सभी पाठकों के कितना निकट ला पाया हूँ . कथक नृ्त्यांगना ऋचा जैन के व्यक्तित्व व कथक नृ्त्य के क्षेत्र में उनके योगदान के बारे में लिखते हुए ऐसा महसूस हुआ कि ऋचा जी का नृ्त्य के प्रति समर्पण अदभुत है . अपने में खो जाना ही तो , कभी किसी का हो जाना है " ...... कथक नृ्त्यांगना ऋचा जैन ( Kathak Dancer Richa Jain ) ने नृ्त्य कला को अपने व्यक्तित्व में इस प्रकार समा लिया है और उसमें खो के वे नृ्त्य की एक बेहतरीन व प्रतिभावान पर्याय बन गई हैं. स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन टीम ( Swapnil Saundarya ezine Team ) की ओर से ऋचा जैन जी को ढेर सारी शुभकामनाएं व आभार .
Website :
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- ऋषभ शुक्ला ( Rishabh Shukla )
( संस्थापक - संपादक { Founder-Editor } )
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This Article has also appeared in Swapnil Saundarya ezine's Volume -3rd , Issue - 1st , 2015
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सौंदर्य :
सौंदर्य मंत्र ::
- दाँतों की चमक बनाए रखने व उन्हें पीला होने से बचाने के लिए चाय, कॉफी या रेड वाइन लेने के बाद अच्छी तरह कुल्ला कर लें.
- मेथी व दही का मिश्रण लगाने से चेहरे व बालों से संबंधित लगभग सभी समस्याओं से छुट्कारा मिलता है .
- सुबह उठकर नियमित रुप से ककड़ी ( खीरे ) का सेवन करने से त्वचा की रंगत निखरती है.
- खाना खाने के बाद नियमित एक ग्लास छाछ पीने से त्वचा की चमक बढ़ती है .
- छाछ से मुंह धोने से भी त्वचा के दाग- धब्बे मिटते हैं और रंग साफ होता है .
आभूषण चर्चा :
इस मौसम को बनाएं खास , रत्नों के साथ......
मार्च माह का आगमन , अमूमन हमे कड़ाकेदार सर्दियों से निजात और् गुलाबी धूप की आरामदायक अनुभूति का अहसास कराता है. हर मौसम की कुछ खूबियाँ और खामियाँ होती हैं . यही बात गर्मियों के मौसम पर भी लागू होती है. कुछ रत्न ऐसे होते हैं, जो इस मौसम में फबते हैं और आपके व्यक्तित्व में चार्- चाँद लगाते हैं. तो आइए जानते हैं, उन रत्नों के बारे में जो इस मौसम में आपके सौंदर्य को निखारेंगे और आपके व्यक्तित्व को एक खूबसूरत परिवेश में ढाँलेंगे.
इस मौसम में ' येलो डायमंडस ' खूब फबेंगे , पर इन्हें येलो गोल्ड में ही सेट कराएं . येलो गोल्ड भी इस मौसम के अनुकूल है. आप चाहें तो येलो डायमंड का व्हाइट डायमंड्स के साथ पेयर भी बना सकते हैं. इन दोनों डायमंड्स का संयोजन रंगों को स्पष्ट रुप से निखारेगा. मौजूदा मौसम के ज्वेलरी ट्रेंड्स में शीर्ष पर यलो सैफायर्स , डीप यलो डायमंडस और यलो साउथ सी पर्ल को कोई भी खारिज नहीं कर सकता .
इस मौसम में अन्य रंगों में हरे और लाल रंग के रत्न भी खूब फबेंगे . इसमें सबसे आगे रहेंगे कोलंबियन रुबी और बर्मीज़ एमरल्ड्स . वास्तव में ये कीमती रत्न हमेशा चलन में रहते हैं क्योंकि इनसे शाही - शानो- शौकत झलकती है.
पर्पल और पिंक कलर्स का यलो स्टोंस के साथ संयोजन उत्कृ्ष्ट लगता है, इसलिए इस मौसम में पिंक डायमंड्स , एमीथिस्ट , पिंक टोपाज , रोज़ क्वार्ट्ज़ और पिंक पर्ल्स भी चलन में रहेंगे.
इसके अतिरिक्त रत्नों के कट्स और साइज़ भी इनके सौंदर्य में इज़ाफा करते हैं. पन्ना अर्थात एमरल्ड का अपना एक अलग ट्रेड्मार्क कट होता है जो उसे दूसरे रत्नों से अलग करता है . कुछ स्पेशल कटस ऐसे होते हैं जो नवीनतम ट्रेंड के अनुकूल होते हैं. पीयर शेपड एमरल्ड भी एक ऐसा शेप है, जिसे आजकल काफी पसंद किया जाता है. कुछ लोगों को इसके बाद ओवल शेपड एमरल्ड पसंद आता है. पन्नों का आकार या शेप किसी भी प्रकार का हो , इससे उनके सौंदर्य में कोई कमी नहीं आती है.
यदि रुबी अर्थात माणिक की बात करें तो ज्यादातर लोगों को ओवल शेप पसंद आता है . इसके बाद तमाम लोग पीयर शेप रुबी पसंद करते हैं. यदि अति उत्कृ्ष्ट व हर दौर में प्रचलित कट्स की बात करें तो प्रिंसेस व मारकीज़ कटस बेहतरीन विकल्प हैं. अन्य लोकप्रिय कटस में रेडिएन्ट , एसचेर, हार्ट शेपड और कैबेशोन ( यह वह कट होता है जिसमें बिना फलक कटा गोल पत्थर होता है ) को शुमार किया जा सकता है. इस मौसम में विभिन्न साइज वाले रत्नों का एक दूसरे के साथ मिलाकर सेट कराने का चलन सामने आया है, उदाहरण के तौर पर, तीन कैरेट के कीमती रत्नों का डायमंडस के साथ मैच फबेगा.
इस बात में तनिक भी संदेह नहीं है कि रत्नजड़ित आभूषण बनाने के संदर्भ में यलो गोल्ड की शानदार ढंग से वापसी हुई है. वस्तुत: यलो डायमंडस का यलो यलो गोल्ड के साथ संयोजन करने पर डायमंडस सेट का सौंदर्य और ज्यादा जीवंत हो उठता है. वैसे 18 कैरेट सोना भी रत्नों के सौंदर्य व लुक्स को सुरुचिपूर्ण बनाता है.
विभिन्न रत्नों के रंगों के रहस्यवादी निहितार्थ होते हैं . हर रंग कई गुणों और खूबियों को प्रत्यक्ष व परोक्ष रुप से प्रकट करता है. वस्तुत: प्रत्येक रंग कई भावनाओं व प्रकृ्ति में मौजूद कई खासियतों का प्रतीकात्मक रुप प्रकट करता है. जैसे रुबी अर्थात माणिक का लाल रंग प्रेम, रिश्तों की गर्माहट और रोमांस का प्रतीक माना जाता है. यदि रुबी तीन कैरेट का या इससे अधिक है तो इसका प्रभावशाली उपयोग सेट , पेंडेंट या रिंग के लिए किया जा सकता है. हरे रंग का पन्ना अर्थात एमरल्ड को शाहीपन का प्रतीक माना जाता है . एमरल्ड सम्मान और सोशल स्टेट्स का पर्याय भी माना जाता है.येलो सैफायर का रंग पीला है जो प्रसन्नता , उत्साह और उज्ज्वल भविष्य का प्रतीक माना जाता है. इसे आध्यात्मिक रंग भी माना जाता है. यह रंग अग्नि का प्रतीक भी है और ज्यादातर भारतीयों की त्वचा के रंग में एक नई आभा बिखेर सकता है.
वैसे यह कहना किसी भी प्रकार से अतिशयोक्ति न होगा कि रत्नों से लैस आभूषण धारण करने से मन में एक खास प्रकार की अनुभूति होती है . आप इन्हें किसी भी मौसम या अवसर पर धारण करें , इनकी स्मृ्ति आपके मन के खजाने में अनेक वर्षों तक बनी रहती हैं. फिलहाल गर्मियों का मौसम दस्तक दे चुका है , इसलिए अपनी आर्थिक सामर्थ्य के अनुसार मौजूदा मौसम में फबने वाले रत्न जड़ित आभूषणों को धारण करने में देर न करें. वैसे भी रत्नों पर किया गया निवेश कभी व्यर्थ नहीं जाता.
- स्वप्निल शुक्ला ( Swapnil Shukla )
( swapniljewels.blogspot.com )
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फ़ैशन ज्ञान :
गर्मियों के हॉट फ़ैशन टिप्स ........
इन तपती गर्मियों में भी खुद को फ़ैशनेबल व स्टाइलिश बनाए रखना एक प्रकार से भागीरथी प्रयास है . हर समय गर्मी, पसीना और चिपचिपा मौसम अक्सर हमें विचलित कर देता है . ऐसे में सबसे बड़ी समस्या यही होती है कि ऐसा क्या पहने जिसमें गर्मी भी कम लगे और साथ ही आप फ़ैशनेबल व स्टाइलिश भी दिखें. ऐसी स्थिति में सूती कपड़े अर्थात कॉटन फैब्रिक, गर्मियों में आपके खास साथी की भूमिका निभाते हैं. ऐसे में इनका नियमित ख्याल व देखभाल करना भी आवश्यक हो जाता है है . यदि आप भी चाहती हैं कि आपके मन पसंद कपड़े छोटे न हो जाए या इनका रंग न उतर जाए तो इन बातों का ध्यान रखें :
-सूती कपड़ों को वॉशिंग मशीन में धोने की जगह हाथ से धो लें.
-ब्लीच का इस्तेमाल करने से बचें.
-सूती कपड़ों को कभी भी सूरज की सीधी रोशनी में न सुखाएं.
-कॉटन के रंगीन कपड़ों से रंग निकलने की समस्या से आप अक्सर रुबरु होती होंगी. इसका एक विकल्प है कि आप इन्हें गर्म पानी में धोएं वो भी उल्टा करके, इससे कपड़े के रंग ज्यादा समय तक बरकरार रहेंगे. परंतु सफेद कपड़ों को हमेशा ठंडे पानी में धोना ही बेहतर रहता है.
- अगर बहुत जरुरी न हो तो अपने सूती कपड़ों पर स्टार्च न करें.
उपरोक्त बातों द्वारा आप अपने सूती कपड़ों की चमक को बरकरार रखने में सफल होंगी. इसके अतिरिक इन गर्मियों में यदि आप फैशनेबल दिखना चाहती हैं तो स्कर्ट आपके लिए एक बेहतरीन विकल्प है. घुटनों तक लंबी स्कर्ट आपको ट्रेंडी लुक देगी. यदि आप स्लिम हैं तो आप घेर वाली स्कर्ट अपनाएं और यदि आप फैटी हैं तो पेंसिल फिट स्कर्ट पहनें. फ़ैशन पंडितों के अनुसार आजकल एथेनिक प्रिंट वाली स्कर्ट , काला या सफेद टॉप , बांधनी दुपट्टा और कोल्हापुरी चप्पल से लैस लुक काफी प्रचलन में हैं.
यदि आप को इंडियन लुक पसंद है और आप सूट - सलवार या चूड़ीदार पहनकर बोर हो चुकी हैं, तो अपने आउटफिट्स में धोती सलवार शामिल कर सकती है . धोती सलवार पुराने समय की इंडियन धोती का ही मॉडर्न कांसेप्ट है . ये रेडीमेड है और इसे बाँधने की जरुरत भी नहीं होती है. आज के लेटेस्ट ट्रेंड के डिज़ाइन्स के अनुसार इसमे लाइट फैब्रिक लायका व साटन यूज़ किया जाता है . यही वजह है कि इसे कैरी करना बहुत ईज़ी है. इसके साथ आप शॉर्ट कुर्ती डिज़ाइन करवा सकती हैं. पठानी सूट भी इस पर खूब फबता है. शार्ट कुर्ती में हाई नेक या कॉलर नेक बनवा सकते हैं. इस तरह की मैचिंग द्वारा आपका लुक लगेगा बिल्कुल परफेक्ट और आप दिखेंगी भीड़ से जुदा.
धोती सलवार में आप प्लेन या प्रिंटेड आप्शन अपना सकती हैं. यदि धोती प्लेन पहन रही हैं तो उसके साथ कुर्ती प्रिंटेड या एम्ब्रॉयडरी वाली पहनें. इससे धोती सलवार का लुक उभर कर आएगा. इसी प्रकार प्लेन कुर्ती के साथ प्रिंटेड धोती की मैचिंग करें.
धोती सलवार फ्री स्टाइल है और जो गर्ल्स फ्री स्टाइल या बोल्ड लुक चाहती हैं वे इसे कैरी कर सकती हैं. धोती सलवार आपके व्यक्तित्व में चार- चाँद लगाने में बेहद मददगार साबित हो सकता है. इसके अलावा धोती सलवार सूट के साथ बीडस ज्वेलरी धारण करें. धोती सलवार आप के व्यक्तित्व को और अधिक निखारे , इसके लिए हील्स के बजाए फ्लैट स्लीपर कैरी करें. पैरों में आप मोटी एंकलेट्स भी धारण कर सकती हैं. अगर वेस्टर्न व थोड़ा डिफरेंट लुक चाहती हैं तो आप धोती सलवार के साथ टी- शर्ट ट्राय कर सकती हैं.
इसके अतिरिक्त सही कपड़े चुनने के बावजूद हम अक्सर सही रंगों का चुनाव नहीं कर पाते हैं. इन गर्मियों में चटक पीले, लाल , रानी आदि प्रकार के रंगों से दूरी बना कर रखें. सफेद, लेमन, मोव, लाइट पिंक, गाजरी, आसमानी जैसे हल्के रंगों में अपने कपड़ों का चुनाव करें.
इसके साथ ही नीचे दिए गए फैशन एसेंशियल्स को हमेशा अपने साथ रखिये .ये आपको फैशन की दौड़ में हरदम रखेंगे सबसे आगे :-
1- स्टाइलिश हैंड बैग्स
2- स्टोल्स एंड स्कार्फ
3- स्मार्ट वॉच
4- सनग्लासेस
5- परफ़्यूम्स - डियोज़
6- लिप ग्लॉस/ लिप बाम
7- स्मार्ट क्लच
8- वेट एंड ड्राई टिस्यू वाइप्स
9- ट्रेंडी एक्सेसरीज़
10- फ्लैट चप्पल्स
11- हेयर ब्रश
12- क्लींज़र, टोनर, सनस्क्रीन एंड मॉइश्चराइज़र
- स्वप्निल शुक्ला ( Swapnil Shukla )
ज्वेलरी डिज़ाइनर ( Jewellery Designer )
फ़ैशन कंसलटेंट ( Fashion Consultant )
( swapnilsaundarya.blogspot.com )
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पकवान :
दिव्या की किचिन से :: एगलेस केक
पाक- कला- प्रवीण 'दिव्या दीक्षित' ( Divya Dixit ) की किचिन से सीधे लेकर आएं हैं हम आपके लिए कुछ चुनिंदा स्वादिष्ट व्यंजन जिससे हर गृ्हणी व कामकाजी महिला की हर रोज़ की किचिन संबंधी समस्याओं से उन्हें मिलेगी राहत . हर दिन क्या नया बनाएं, क्या खाएं और अपनों को खिलाएं जो हर किसी को रास आए और लोगों के दिलों में आप छा जाएं और बन जाएं स्मार्ट किचिन क्वीन , इन प्रश्नों के हल व एक से बढ़कर एक लज़ीज़ रेसिपीस के लिए जुड़े रहिये ' दिव्या की किचिन से '.
एगलेस केक :: चोको क्रंच
सामग्री :
- 1 बेक्ड चॉकलेट स्पॉन्ज केक
- 250 ग्राम चॉकलेट ट्रफल सॉस
- 150 ग्राम फ्रेश क्रीम फेंटी हुई
- 2 टेबलस्पून बटर स्कॉंच चिक्की
विधि :
स्पॉन्ज केक को दो परतों में काटें . मॉइश्चराइज़ करें. चॉकलेट सॉस और फ्रेश क्रीम को मिक्स करें. इस मिश्रण और बटर स्कॉच चिक्की को केक पर फैलाएं. फ्रेश क्रीम और चॉकलेट ट्रफल सॉस से सजाएं.
इंटीरियर्स
लाएं खुशियों की सौगात ' फेंगशुई ' के साथ ::
फेंगशुई क्या है ? व इसका उपयोग हमारे जीवन को किस प्रकार प्रभावित कर सकता है ? यह ऐसे प्रश्न हैं जिनका उत्तर हर व्यक्ति जानना चाहता है क्योंकि आज की भाग दौड़ से भरी ज़िंदगी में हर कोई अपने जीवन को खुशहाल, आरामदायक व समृ्द्ध बनाना चाहता है. तो आइये सबसे पहले जानते है कि फेंगशुई है क्या?
' फेंगशुई ' चीन की एक प्राचीन कला व विज्ञान है जो कि कुछ 6000 वर्ष पूर्व लोगों के सामने आई. फेंगशुई चीनी भाषा के दो शब्द ' फेंग ' और ' शुई ' से मिलकर बना है . जिसमें फेंग का अर्थ है ' जल ' और शुई का अर्थ है ' वायु ' . फेंगशुई वातावरण, स्थान, उस स्थान में रहने वाले लोग , समय व इन सभी ऊर्जाओं का एक दूसरे पर क्या प्रभाव पड़ता है, इस पर आधारित है.
फेंगशुई एक ऐसी कला व विज्ञान है जिसके द्वारा हम हमारे आस पास के वातावरण व विभिन्न ऊर्जाओं के बीच सही संतुलन बनाकर एक खुशहाल व आरामदायक स्थान की रचना कर सकते हैं.
भारतीय वास्तु शास्त्र व फेंगशुई में थोड़ा अंतर है. यह भारत व चीन की जलवायु में अंतर के कारण है . भारतीय वास्तु पंचतत्व अर्थात अग्नि, वायु, जल, आकाश व पृ्थ्वी व आठ दिशाओं पर आधारित है व फेंगशुई के अंतर्गत जिन पंचतत्वों को प्रधानता दी गई है वे हैं - काष्ठ, अग्नि, पृ्थ्वी, धातु व जल.
फेंगशुई में हमें यह छूट होती है कि यदि किसी स्थान में वास्तु दोष है और उस स्थान में तोड़ - फोड़ संभव न हो तो हम फेंगशुई के द्वारा उस स्थान को विशेष प्रकार की एक्सेसरीज़ जैसे विंड चाइम्स, शीशे, ड्रैगन, क्रिस्टल इत्यादि का प्रयोग करके वास्तु दोष के असर को बहुत हद तक सुधार सकते हैं.
चाहें भारतीय वास्तु शास्त्र हो या फेंगशुई दोनों ही विद्याओं का मूल उद्देश्य है हमारे आसपास के वातावरण और हमारे जीवन में सामंजस्य स्थापित कर एक सुखद संतुलन स्थापित करें जो हमें नाना प्रकार के उपद्रवों से बचाएं .
फेंगशुई के अंतर्गत 'ची' की बहुत अधिक महत्ता है . फेंगशुई के अनुसार 'ची ' एक अदृ्श्य शक्ति है जो सभी सजीव व निर्जीव पदार्थों में पायी जाती है . जो मुख्यत: दो प्रकार की होती है - प्राणवान ची व निष्प्राण ची . प्राणवान ची सकारात्मक व शुभ होती है व निष्प्राण ची नकारात्मक व दुष्परिणाम लाती है.
आइये ........ अब जानते हैं फेंगशुई की कुछ लाभदायक एक्सेसरीज़ के बारे में जिनको आप अपने निवास स्थान पर लगा के लाभ उठा सकते हैं.
1. ड्रैगन : ड्रैगन ऊर्जा का प्रतीक है . अत: दुकान , कार्यालय , होटल आदि स्थानों में इसको पूर्व दिशा में लगाने से लाभ होता है .
2- तीन चीनी सिक्के : घर में सौभाग्य , संपत्ति लाने के लिए मुख्य द्वार के हैंडल पर घर के अंदर की तरफ , इनको लाल रंग के फीते से बाँध कर लटकाएं.
3- अष्ट्कोणीय दर्पण : यदि आपके मुख्य द्वार के सामने सीधी सड़क, पेड़, दीवार या अन्य प्रकार की रुकावट हो तो दोष निवारण के लिए मुख्य द्वार के ऊपर घर के बाहर अष्ट्कोणीय दर्पण लगाएं.
4- हँसता हुआ बुद्धा { लाफिंग बुद्धा } : खुशहाली व धन- दौलत का प्रतीक है. इसको यदि घर की तिजोरी में रखा जाए तो धन में तेजी से वृ्द्धि होती है.
5- विंड चाइम्स { पवन -घंटी } : ये मुख्यत: शांति व खुशियों का प्रतीक है . पाँच छड़ वाले विंड चाइम्स को अध्ययन कक्ष में लगायें. छ: छ़ड़ वाले विंड चाइम्स को ड्राइंग रुम में लगायें . सात छड़ वाले विंड चाइम्स को बच्चों के कमरे में लटकाना चाहिये . आठ छड़ वाले विंड चाइम्स का प्रयोग कार्यालय में करें तो बेहतर परिणाम देखने को मिलते हैं. नौ छड़ वाले विंड चाइम्स को अगर ड्राइंग रुम में लगाएं तो निराशा का अंत होता है .
6- क्रिस्टल ग्लोब या एजुकेशन टॉवर : व्यापार व कैरियर निर्माण में बेहतर परिणाम के लिए इनका प्रयोग किया जाता है . क्रिस्टल ग्लोब को दिन में तीन बार घुमाना चाहिये.
7- लुक, फुक, साऊ : यह चीनी देवताओं की मूर्ति है जो सौभाग्य का प्रतीक होती है . इन्हें घर पर किसी भी शुद्ध स्थान पर स्थापित करने से सुखद परिणाम दृ्ष्टि गोचर होते हैं.परंतु इस बात का विशेष ध्यान दे कि इन तीनों देवताओं को घर में एक साथ रखा जाए.
8- लव बर्डस : इनको शयनकक्ष में दक्षिण- पश्चिम कोने पर रखा जाना चाहिये. लव बर्डस जीवन में प्रेम -पूर्ण सामंजस्य स्थापित करने में मदद करते हैं .
9- दर्पण : परिवार की सुख - समृ्द्धि व स्वस्थ जीवन के लिए दर्पण को भोजनकक्ष में ऐसे स्थान पर लगायें जहाँ भोजन करते समय प्रतिबिंब दिखाई दे.
10- एक्वेरियम : घर में एक छोटे से एक्वेरियम में सुनहरी मछलियाँ पालना, सौभाग्य वर्धक होता है .ध्यान रहे कि एक्वेरियम में आठ मछलियाँ सुनहरी और एक काले रंग की होनी चाहिये . इसको मुख्य द्वार के समीप न रखें.
11- बैटल विद डेथ : यदि आपके घर में कोई लंबे समय से बिमार है तो इसे उसके बिस्तर के पास रखने से विभिन्न प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है.
12- स्फटिक श्री यंत्र / स्फटिक पिरामिड/ क्रिस्टल बॉल : इसको ईशान या उत्तर दिशा में रखने से कार्यक्षमता बढ़ती है व व्यवसाय में चमत्कारी वृ्द्धि होती है.
- ऋषभ शुक्ला ( Rishabh Shukla )
इंटीरियर डिज़ाइनर ( Interior Designer )
वास्तु एवं फेंग शुई कंसलटेंट ( Vastu & Feng shui Consultant )
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नानी माँ की बातें :
घरेलु उपचार
- आँखों में जलन दूर करने हेतु गाए का मक्खन आँखों पर लगाएं , इससे आँखों की जलन से निजात मिलती है.
- सरसों का तेल हल्का गर्म करके डालने से कान का दर्द दूर होता है.
- कान में यदि सूजन आ गई हो तो एरंड के पत्ते पर तेल लगाकर सेंक करें. फिर कुनकुना गरम पत्तों को सूजन वाले स्थाम पर बाँध दें. इससे कान की सूजन व दर्द दूर हो जाता है.
- शहद और अदरक का रस एक - एक टेबलस्पून मिलाकर सुबह - शाम पीने से ज़ुकाम ठीक हो जाता है.
- यदि आपके कान में कीड़ा चला गया है तो प्याज़ का रस डालने से कीड़ा बाहर आ जाता है.
- सुमन त्रिपाठी ( Suman Tripathi )
साहित्य :
अपूर्वा :: 01
दोस्ती का जहाँ था , मोहब्बत की फिज़ा थी
दुश्मनी क्या होती है , किसको पता थी
हर तरफ पल - पल ज़िंदगी मुस्कुराती थी
मानो पुष्प बगिया में हर सुबह खिल उठते हों,
नज़र ही नज़र में , दोस्ती हो जाती थी
एक ही पल में खुशियों की दुनिया बस जाती थी
जाने कब कौन सी कैसी हवा चली
आँखों में लहु , बातों में अँगारे
साँसों से दुश्मनी का हर तरफ घुँआ उठा
इस दुश्मनी में न अपनों का एहसास रहा
न अपनों का प्यार
खून का रंग मानो पानी सा हो गया
दौलत की दुनिया है, दुखों की नदी में
हर पल नया साया नहा कर निकलता है
हर तरफ दुश्मनी की आवाज़ सुनाई देती है
आँसुओं के दरिया में, आँसू ही बहते हैं
पर यूँ लग रहा है , हमारी किस्मत सबसे जुदा है
आँसुओं की जगह , सैलाब बह रहा है.
- स्वप्निल शुक्ला ( Swapnil Shukla )
www.swapnilsworldofwords.blogspot.com
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अधूरा प्यार ........
एक रोज़ उनसे मुलाकात कुछ ऐसी हुई ,
ना सोच सकते थे वो बात कुछ ऐसी हुई.
दिल ने धीरे धीरे उसे अपना कहा ,
पर कह ना सके हाल-ए-दिल उसे कुछ ऐसा हुआ.
नज़रों के सामने वो आती तो ज़ुबान बंद हो जाती,
नज़रों से दूर जाती तो हाल-ए-दिल कहना चाहते थे,
रह गए इसी मशक्कत में कि कह देंगे एक दिन,
मगर वो रुठ न जाए इसी कश्मकश ने,
मेरी चाहत को इजाज़त न दी ...........
* अपने दिल की बात को जुबां पे लाने में समय व्यर्थ नहीं करना चाहिये वरना आप उन अपनों को हमेशा के लिए खो सकते है , जो शायद सिर्फ आप के लिए बने हैं. *
- कुमार प्रतीक ( Kumar Pratik )
एम. बी. ए. डिग्री होल्डर ' प्रतीक ' ( Pratik ) की ज़िंदगी अधिकतर कॉर्परट (Corporate ) जगत के इर्द- गिर्द ही घूमती रहती है. फिर भी इस भाग- दौड़ भरी ज़िंदगी में भी उन्होंने अपने लेखन के शौक़ को पंख दिए हैं. इनकी रचनाएं ज़िंदगी की सत्यता, तन्हाई व श्रृंगार रस पर केन्द्रित हैं.
डायरी :
मेरी परी ::
प्रिय सुनील ,
कैसे हैं आप ? आशा करती हूँ कि आप दिन प्रतिदिन अपनी नई नौकरी में तरक्की की सीढ़ी चढ़ रहे होंगे और एक दिन सफलता की नई इबादत लिखेंगे. आपके हर ख्वाब जल्द पूरे हों , ऐसा मैं ईश्वर से हर रोज प्रार्थना करती हूँ . आपको जानकर खुशी होगी कि आपकी बेटी आज पूरे 07 माह की हो गई है. 'मेघा ' की नटखत हरकतें मुझे मेरे बचपन की याद दिला देती हैं. काश आप भी यहाँ होते तो मेघा की मासूम किलकारियों , उसकी मासूमियत को महसूस कर हर्षोल्लास से भर उठते और शायद मेघा के साथ - साथ मुझे भी आपका साथ मिल जाता .
माँजी भी सकुशल हैं पर शायद अभी भी मुझसे ख़फा हैं. उन्हें मुझसे आशा थी कि मैं उनकी पीढ़ी को आगे बढा़ने के लिए उन्हें एक पुत्र दूँगी. पर यह मेरे हाथ में नहीं. अमूमन लोगों के घर यदि पुत्र नहीं पुत्री जन्म लेती है तो लोग ' लक्ष्मी ' कह कर उस नवजात शिशु का स्वागत करते हैं. पर माँजी जिस नफरत व घृ्णा से मेरी मासूम मेघा को देखती हैं, मेरी रुह काँप उठती है और न चाहते हुए भी मेघा के जन्म के समय की वो कड़वी यादें परत दर परत मेरी आँखों के समक्ष खुलती जाती हैं.
मुझे आज भी याद है जब मैंने मेघा को जन्म दिया था तब नर्स व डॉक्टर ने मुझे बधाई देकर कहा कि नन्हीं सी परी का आगमन हुआ है आपके जीवन में. पर माँजी ने जैसे ही मेरी बच्ची को देखा तो बिना किसी देर के उनके मुँह से निकले शब्द मुझे आज भी कचोटते हैं. " कुल्टा ने डायन को जन्म दिया है, सबको खा जाएगी ये डायन ".............. 'डायन' - हाँ, यही शब्द मेरी बेटी को मिला था , उसकी अपनी दादी से . मैं उसी वक़्त समझ गई थी कि मेरे और मेरी बेटी के लिए ज़िंदगी आसान नहीं.
माँजी उसी वक़्त मुझे अस्पताल में छोड़ चली गईं. मैं पूरे तीन दिन तक इंतज़ार करती रही पर घर से कोई न आया. माँजी ने तो मेरे लिए खाना भिजवाना भी उचित न समझा. तीन दिन तक मैं बेवकूफ इस इंतज़ार में पड़ी रही कि शायद कोई आए और मेरे सिर पर प्यार से हाथ फेरे और मुझे माँ बनने के लिए बधाई दे पर कोई न आया. आखिरकार मैं , बेशर्म खुद ही किसी तरह घर पहुँची.
मुझे अभी घर पहुँचे दस मिनट भी न हुए होंगे कि माँजी ने मुझे सख़्त आदेश दिए थे कि मेरा रसोई में जाना वर्जित है क्योंकि मैं अशुद्ध हूँ. माँजी ने रसोई व फ्रिज पर ताला डाल दिया था . अनाथ हूँ , माँ- बाप का देहांत हो चुका है . अत: मायके कैसे जाती ? तब अपना और अपनी बेटी का पेट भरने के लिए अपना मंगलसूत्र बेचा था. सुहाग की निशानी को बेच कर मेरी आत्मा मृ्त हो गई थी पर सुहाग की निशानी को बचाने के लिए अपनी ममता का , एक माँ के दायित्वों का गला कैसे घोंट देती ?
माँजी ने जब मेरा और मेरी बेटी का खर्चा उठाने से साफ मना कर दिया तब मैंने नौकरी करने का फैसला किया . अपनी बेटी को अपने साथ हर पल रखती हूँ . हालाँकि वो अभी इतनी छोटी है कि मेरे जीवन की कठिन परिस्थितियाँ हर दिन मेरी बेटी के लिए जीवन व मौत में से एक को चुनने का विकल्प देती है पर मेरी बेटी अबोध होने के बावजूद बेहद बहादुर है. वो हर वक़्त अपनी माँ का साथ देती है, मौत को मात देती है. उस दिन को मैं आज भी याद करती हूँ तो आत्मा काँप उठती है जब माँजी ने मेरे कमरे में लगे कूलर के पास अंगीठी में मिर्च सुलगा दी थी . थोड़ी देर बाद पूरे कमरे में मिर्च का घुँआ भर गया जिससे मेरी और मेरी बेटी की हालत बिगड़ गई थी . पता नहीं वो कौन सी शक्ति थी जिसने मेरी और मेरी बेटी की रक्षा करी. उस दिन के बाद से मैंने एक पल भी अपनी बेटी को खुद से अलग नहीं किया . सिर पर कफन बाँध कर , सफेद कफन की ओढ़नी ओढ़ कर , अपनी बेटी को अपनी पीठ पर बाँध कर मैं हर रोज जीवन के संघर्षों का सामना करती हूँ.
मुझे खुद पर और अपनी बेटी पर गर्व है . हम माँ- बेटी हर रोज बदकिस्मती को , अपने जीवन के दुर्भाग्य को मुँह चिढ़ाते हुए जीवन पथ पर अग्रसर हैं. मेरी बेटी मेरी कमज़ोरी नहीं , वो मेरी ताकत है . माँजी की नफरत एक दिन उनके समक्ष वो चुनौती पैदा करेगी जब उन्हें इस बात का अहसास होगा कि इंसान के बुरे कर्मों की आग का घुँआ इंसान को घुटा- घुटा के इस कदर दर्दनाक मौत देता है जिसकी परिकल्पना शायद ही कभी किसी ने की हो . मैं माँजी को कभी माफ नहीं करुँगी क्योंकि मेरी बेटी के जन्म को लेकर उन्होंने अपना वो रुप मेरे समक्ष प्रस्तुत किया है जिससे औरतज़ात तक शर्मसार हो जाए . माँजी को औरत कहना औरत ज़ात के मुँह पर तमाचा है . माँजी ने मेरी बेटी के जन्म पर उसे डायन कहा , उसको मिर्च के घुँए से घुटा- घुटा कर मारने की कोशिश करी , उनकी इन हरकतों ने यह साबित किया है कि माँजी औरत नहीं बल्कि दुनिया की सारी गंदगी को अपने अस्तित्व में धारण करने वाली एक गाली हैं, जो सिर्फ और सिर घृ्णा के लायक है.
आपकी आभागी
मृ्दुला .
- शालिनी अवस्थी ( Shalini Awasthi )
अंग्रेज़ी साहित्य में परास्नातक श्रीमती शालिनी अवस्थी ( Shalini Awasthi ) जिंदगी की कठोर व कड़वी सच्चाईयों को साहित्य के रंग में रंगना बखूबी जानती हैं. स्त्री विमर्श , स्त्री संघर्षों को उजागर करती ऐसी कहानियाँ जो हमारे मस्तिष्क को ही नहीं अपितु हमारी आत्मा तक को हिला कर रख दें. श्रीमती शालिनी अवस्थी के द्वारा रचित दिल में कचोटन पैदा करने वाली कहानियाँ अब स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन का निरंतर हिस्सा होंगी.
विविध :
रुद्राक्ष :
हमारे प्राचीन इतिहास से ही लोगों के बीच रुद्राक्ष एक आकर्षण का विषय बना हुआ है व इसकी असीम शक्तियों की चर्चा भी होती आ रही . आज के आधुनिक परिवेश में भी रुद्राक्ष के प्रति लोगों का झुकाव बना हुआ है. लोगों को इसकी चमत्कारी शक्तियों के बारे में जिज्ञासा बनी ही रहती है. तो आइये इस संदर्भ में जानते हैं कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण बातें रुद्राक्ष `के बारे में-
'रुद्राक्ष'- अर्थात भगवान शिव की सार्वधिक प्रिय वस्तु जिसकी उत्पत्ति पौराणिक मान्यताओं के अनुसार साक्षात भगवान शिव के नेत्रों से हुई है . असल में रुद्राक्ष एक फल का बीज है परन्तु इसमें विद्यमान अनेकों गुणों के कारण ये आध्यात्मिक व भौतिक विज्ञान एवं चिकित्सा जगत में बेहद पवित्र , पूज्यनीय व लाभकारी रुप में स्वीकार किया गया है.
रुद्राक्ष धारण करने वाला व्यक्ति अनेकों प्रकार की व्याधियों व आपदाओं से सुरक्षित रहता है . साथ ही साथ इसके दानों से बनी माला जप के लिये सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है .प्राचीन काल के साथ-साथ आज के आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने भी रुद्राक्ष के दानों में विद्यमान अदभुत चुम्बकीय व विद्युत शक्ति को स्वीकारा है जो इसको धारण करने वाले को अनेक प्रकार से प्रभावित करता है .
रुद्राक्ष के चमत्कारी प्रभावों के कारण लोग इसके दानों को शिवलिंग की भाँति ही पूजते हैं और कहा जाता है कि इसको धारण कर प्रभावी मंत्र 'ऊँ नम: शिवाय' का जप करने से व्यक्ति ज्वर उत्तेजना , रक्तचाप , बुरे स्वप्न, अनिद्रा, चर्मरोग आदि परेशानियों से निजात पा जाता है. वनस्पति विज्ञान ( Botany ) के अन्तर्गत रुद्राक्ष के पेड़ को ELAECARPUS GANITRUS ROXB कहते हैं और अंग्रेजी भाषा में UTRASUM BEAD TREE कहते हैं .
रुद्राक्ष की कई जातियाँ होती हैं जैसे एक मुखी , दो मुखी आदि. व्यक्ति विशेष को रुद्राक्ष की विभिन्न जातियों के बारे में जानने के बाद अपने भीतर की कमियों को दूर करने व परेशानियों से मुक्ति पाने के लिये इसको धारण करना चाहिये .
मुख्यत: रुद्राक्ष के दानों को गले या बाँह में धारण किया जाता है. पर आज के आधुनिक युग में इसको फैशन स्टेट्मेंट के तौर पर लोग ब्रेसलेट के रुप में भी धारण कर लेते हैं . ज्यादातर युवाओं को रुद्राक्ष एक आकर्षक एक्सेसरी के तौर पर लुभाता है जो उन्हें बेहतरीन लुक के साथ साथ उनके लिये अनेक लाभकारी परिणाम भी सामने लाने में मददगार साबित होता है. तभी अक्सर युवा वर्ग इसके दानों को गले में लॉकेट व ब्रेसलेट की तरह पहनना पसंद करते हैं परंतु ऐसी स्थिति में यदि आप रुद्राक्ष को धारण करते हैं तो पवित्रता का ध्यान रखते हुए प्रतिदिन प्रात: उठते ही सबसे पहले इसे अपने माथे से लगायें व ऊँ नम: शिवाय का जाप करें , आपको नि:संदेह अनेकों सुखों की प्राप्ति होगी .
आइये अब जानते हैं कि कौन सा मुखी रुद्राक्ष धारण करने से आप किस प्रकार से लाभान्वित हो सकते हैं -
एकमुखी : यह भगवान शिव क स्वरुप है. इसे धारण करने वाले व्यक्ति में एकाग्रता बढ़ती है व भक्ति एवं मुक्ति दोनों की ही प्राप्ति होती है.
दोमुखी: अर्धनारेश्वर अर्थात शिव व शक्ति का स्वरुप है . इसे धारण करने से पति-पत्नी में एकात्मक भाव उत्पन्न होता है व धन - धान्य से युक्त्त होकर व्यक्ति पवित्र गृ्हस्थ जीवन व्यतीत करता है.
तीनमुखी: अग्नि का स्वरुप है. धारणकर्ता अग्नि के समान तेजस्वी हो जाता है. आत्मविश्वास की कमी वाले लोगों के लिये बेहद लाभकारी है.
चारमुखी : भगवान ब्रह्मा का स्वरुप है. धारणकर्ता अनेकों कलात्मक व रचनात्मक गुणों को व बुद्धिमत्ता को प्राप्त करता है .
पंचमुखी: पंचब्रह्म स्वरुप है. धारणकर्ता को अच्छा स्वास्थ व शांति प्रदान करता है .साथ ही साथ धारणकर्ता अनेक पापों से मुक्त हो जाता है. आत्मविश्वास बढ़ोत्तरी में लाभदायक.
छ:मुखी : भगवान कार्तिकेय का स्वरुप है. बुद्धिमत्ता व विद्याप्राप्ति के लिये श्रेष्ठ है.
सातमुखी: यह देवी महालक्ष्मी का स्वरुप है. धारणकर्ता को धन, संपत्ति ,यश , कीर्ति, ऎश्वर्य , व्यापार व नौकरी में सफलता प्रदान करता है.
आठमुखी: भगवान गणेश का स्वरुप है. विघ्नहर्ता मंगलकर्ता है. रिद्धि-सिद्धि प्रदान करने के साथ- साथ इसे धारण करने से विरोधियों की समाप्ति हो जाती है.
नौमुखी : यह देवी दुर्गा माँ का स्वरुप है. यह धारणकर्ता को वीरता, शक्ति, साहस, कर्मठता , अभय व सफलता प्रदान करता है.
दसमुखी: भगवान विष्णु का स्वरुप है . इसको धारण करने से सर्वगृ्ह शांत हो जाते हैं . धारणकर्ता को भूत, पिशाच सर्प आदि का भय नहीं रहता है. साथ ही साथ शारीरिक सुरक्षा भी प्रदान करता है.
ग्यारहमुखी: भगवान हनुमान का स्वरुप है. भाग्य वृ्द्धि , धनवृ्द्धि , शक्ति, अभय व सफलता प्राप्ति के लिये श्रेष्ठ है. धारणकर्ता की दुर्घटनाओं से रक्षा होती है.
बारहमुखी: भगवान सूर्य का स्वरुप है. धारणकर्ता तेजस्वी व आत्मविश्वास से परिपूर्ण हो जाता है. यह धारणकर्ता की चिंताओं व परेशानियों का अंत करता है.
तेरहमुखी : भगवान इंद्र का स्वरुप है. ये धारणकर्ता की संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करता है व जीवन में सुख - शांति प्रदान करता है.
चौदहमुखी: भगवान हनुमान का स्वरुप है . अति दुर्लभ व प्रभावशाली . इसे देवमणि भी कहा जाता है. ये हानि , दुर्घटना, रोग व चिंता से मुक्त रखकर धारणकर्ता की सुरक्षा करता है. व्यक्ति की छठी इंद्री भी जाग्रत करने की इसमें शक्ति होती है. धारणकर्ता को धन-संपदा , सुख व शांति की प्राप्ति होती है.
पंद्रहमुखी: भगवान पशुपति का स्वरुप है. धारणकर्ता को धन प्रदान करता हैव चर्मरोगों में अत्यंत लाभदायक होता है.
सोलहमुखी: यह धारणकर्ता को सफलता प्रदान करता है व सर्दी और गर्मी के कारण होने वाले रोगों से रक्षा करता है. . यदि घर पर इसको रखा जाए तो चोरी, ड्कैती व आग लगने का खतरा नहीं रहता है.
- स्वप्निल शुक्ला ( Swapnil Shukla )
The above article has published in one of the leading Nationalised Magazines .......
सुर ..... लय ..... ताल
भारतीय जीवन में संगीत ::
हमारा देश सदा से कला और संगीत का पुजारी रहा है . संगीत भारतीय जन जीवन का एक अविभाजय अंग रहा है और रहेगा . यह जीवन का एक अनिवार्य अंग कब से है, कहना कठिन है. संगीत आत्मिक उल्लास और आनंद की अनुभूति को व्यक्त करने का साधन होने के कारण , यदि कहा जाए कि यह परंपरा आधि युग से है तो अनुपयुक्त न होगा. संगीत का संबंध घर्म से होने के कारण भारत में इसका संबंध देवी- देवताओं से भी जोड़ा जाता है. भगवान शंकर नृ्त्य के आदि निर्माता, देवी सरस्वती वीणापाणि तथा भगवान कृ्ष्ण की कल्पना बिना मोहिनी बाँसुरी के करना व्यर्थ है. यदि भारत वासियों के जीवन का अध्य्यन किया जाए तो हम देखते हैं कि जिस समय बच्चा जन्म लेता है , उस समय संगीत सुनना प्रारंभ करता है और जीवन के लंबे सफ़र को पूरा करने के बाद भी गीत सुनता है . घर पर बच्चा उत्पन्न होने पर सोहर नामक गीत गाए जाते हैं . शादी - विवाह के शुभ अवसरों पर प्रत्येक अवसर के लिए अलग गीतों का भंडार है, जो गाए जाते हैं. प्राचीन समय में जब कि युद्ध आमने- सामने हुआ करते थे , उस समय रणभेरी तथा ऐसे जोशपूर्ण गीत गाए और वाद्य बजाए जाते थे कि कायर से कायर सिपाही में भी जोश उत्पन्न हो जाता था और वह युद्ध करने के लिए रण - भूमि में कूद पड़ता था . वह संगीत का ही प्रभाव था.
दिन भर का थका हुआ श्रमिक जिस समय रात्रि को अपनी ढोल निकाल कर गाना प्रारंभ करता है, उस समय वह अपनी संपूर्ण थकान से मुक्ति पा जाता है और सारे सांसारिक कष्टों का विस्मरण कर सुख का अनुभव करता है. शहरों में संगीत - सम्मेलन, नृ्त्य - सम्मेलन तथा छोटी- छोटी संगीत सभाओं का आयोजन किया जाता है, जिससे श्रोता अपने दैनिक जीवन की विषमताओं से मुक्ति पाता है. शिक्षा में संगीत को विशेष स्थान प्राप्त होता जा रहा है. शिक्षा- विशेषज्ञ ने उच्च शिक्षा तक में संगीत को एक विषय के रुप में मान्यता देकर , इसके महत्त्व को स्वीकारा है.
हमारे देश में अधिकांश कलायें , विशेषत: संगीत और नृ्त्य राष्ट्र की आध्यात्मिक तथा सांस्कृ्तिक पूँजी का एक अविभाज्य अंग है . यही कारण है कि देश के धार्मिक जीवन में भी इन्हें स्थान मिला और कला- प्रेमी मानव ने अपने देवी और देवताओं में भी कला संबंधी गुण समाविष्ट किए. इसी कारण नटराज, कृ्ष्ण , सरस्वती आदि देवी- देवताओं का, हम संगीत के किसी न किसी विशेष यंत्र अथवा वाद्य से संबंध जोड़ते हैं . इन बातों से ही अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत में संगीत और नृ्त्य को समाज में कितना ऊँचा स्थान प्राप्त है.
- ऋषभ शुक्ला ( Rishabh Shukla )
{ The Writer has attained musical degree ' Sangeet Prabhakar ' in Indian Classical Percussion Instrument ' Tabla' from Prayag Sangeet Samiti , Allahabad in First Class First division. }
आपके पत्र
आपके पत्र ..... आपका नज़रिया :
* आदरणीय संपादक महोदय,
पत्रिका के दूसरे वर्ष का चतुर्थ अंक बेहद रोचक व आकर्षक लगा. एसिड , नामक ई- पुस्तक ने आत्मा तक को झकझोर कर रख दिया .यह स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन का ही प्रभाव है जो पाठकों को अपने मोहपाश में बाँधे हुए है . आपकी टीम को ढेर सारी शुभकामनाएं.
- विद्युत पाण्डेय , दिल्ली
* ऋषभ जी, नमस्कार !
स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन में प्रकाशित सभी जानकारियाँ व तथ्य बेहद रोचक है. इसका कंटेट प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्रासंगिक है. लाइफस्टाइल, फैशन , इंटीरियर्स , कला आदि के अलावा इसमें प्रकाशित सभी लघु कहानियाँ अत्यंत सराहनीय व प्रेरणायुक्त हैं.
ई- पुस्तकें, सफ़केशन व एसिड , ने जीवन की जटिल सच्चाईयों से सामना कराया .
2014 के प्रत्येक अंक हमें बहुत कुछ सिखा गए. आपकी टीम को आभार .
- मोहिनी झा , शिमला
* Volume second, Issue Fifth was extra- ordinary . loved all the paintings and content was superb .please let me know If you can provide a physical copy of this issue.I will be highly obliged . Wishing your team a great artistic , fashionable and stylist future.
Regards
Vineet Gupta , Agra
* Swapnil Saundarya ezine has very distinctive style and format which makes it far better than its contemporaries . The Stories are very eye- opening and bounds us to re- think about the realities of life.
- Deepika Singh , Jaipur .
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