Diary of a Young Poet ~ Sanjay Chauhan
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Diary of a Young Poet ~ Sanjay Chauhan
Vol -04 , Year 2016
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स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन - परिचय
कला , साहित्य, फ़ैशन, लाइफस्टाइल व सौंदर्य को समर्पित भारत की पहली हिन्दी द्वि-मासिक पत्रिका के चतुर्थ चरण अर्थात चतुर्थ वर्ष में आप सभी का स्वागत है .
फ़ैशन व लाइफस्टाइल से जुड़ी हर वो बात जो है हम सभी के लिये खास, पहुँचेगी आप तक , हर पल , हर वक़्त, जब तक स्वप्निल सौंदर्य के साथ हैं आप.
प्रथम, द्वितीय व तृतीय वर्ष की सफलता और आप सभी पाठकों के अपार प्रेम व प्रोत्साहन के बाद अब स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन ( Swapnil Saundarya ezine ) के चतुर्थ वर्ष को एक नई उमंग, जोश व लालित्य के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है ताकि आप अपनी ज़िंदगी को अपने सपनों की दुनिया बनाते रहें. सुंदर सपने देखते रहें और अपने हर सपने को साकार करते रहें .तो जुड़े रहिये 'स्वप्निल सौंदर्य' ब्लॉग व ई-ज़ीन के साथ .
और ..............
बनायें अपनी ज़िंदगी को अपने सपनों की दुनिया .
( Make your Life just like your Dream World )
Launched in June 2013, Swapnil Saundarya ezine has been the first exclusive lifestyle ezine from India available in Hindi language ( Except Guest Articles ) updated bi- monthly . We at Swapnil Saundarya ezine , endeavor to keep our readership in touch with all the areas of fashion , Beauty, Health and Fitness mantras, home decor, history recalls, Literature, Lifestyle, Society, Religion and many more. Swapnil Saundarya ezine encourages its readership to make their life just like their Dream World .
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Diary of a young Poet ~ Sanjay Chauhan
मैं संजय चौहान ( Sanjay Chauhan ) ,इटावा जिला (Etawah ) का मूल निवासी हूँ.वर्तमान में मैं इटावा जिले के एक छोटे से कस्बे लखना में रहता हूँ. मैं एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार से हूँ और मेरे पिताजी एक किसान हैं . मेरी प्रारंभिक शिक्षा चकरनगर में हुई तथा मैट्रिक की पढ़ाई के लिए मैं, लखना आ गया .वहीं से मैंने बकेबर के जनता इण्टर कॉलेज से इण्टरमीडिएट की परीक्षा व कानपुर विश्वविद्यालय (CSJM University ) से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की है. बचपन से ही मुझे पढ़ने लिखने का बहुत शौक रहा है. मेरे पसंदीदा लेखकों में 'दिनकर जी', 'मैथलीशरण गुप्त जी' आदि कई लेखक प्रमुख हैं. मैं भविष्य में मीडिया क्षेत्र में अपनी सफल भागीदारी देना चाहता हूँ और इसके लिए मैं सोचा करता था कि अच्छा बोलने के लिए अच्छा लिखना भी आना चाहिये .इसलिए जो मन में आता था, उसे पन्नों पर उतारा करता था और आज वही शब्द मेरी ज़िंदगी हैं.
मेरे जीवन में मेरी माँ मुझे सबसे ज्यादा प्यारी हैं . आज दस साल से उनसे दूर हूँ पर प्यार में कई गुना बढ़ोत्तरी हो गई है.वही मेरे लिए सब कुछ हैं क्योंकि उन्हें मुझपे भरोसा है कि मैं वो करुँगा जो कोई नहीं कर सका और मुझे मेरी माँ के भरोसे पर भरोसा है. मेरी ज़िंदगी मेरी माँ और मेरे दोस्तों के इर्द गिर्द घूमती है. निशि चौहान व पारस ,मेरे उन दोस्तों में से हैं जिन्होंने मेरे लेखन को हर पल सराहा है व मुझे प्रोत्साहित किया है. आज मैं जीवन में जितना आगे बढ़ पाया हूँ , वो इनके सहयोग से ही संभव हो पाया है और अपनों की उम्मीदों पर खरा उतरते हुए साहित्य को उस ऊँचाई तक ले जाना चाहता हूँ जहाँ तक कोई न पहुँचा हो. इसके लिए मैं निरंतर प्रयासरत हूँ और सबसे महत्वपूर्ण मैं, अपने ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के समक्ष एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहता हूँ कि हम भी औरों की तरह विश्व पटल पर नाम रोशन कर सकते हैं......
स्वप्निल सौंदर्य ईज़ीन ( Swapnil Saundarya Ezine ) का मैं, तहे दिल से शुक्रिया कहना चाहूँगा क्योंकि इनके जरिये मुझे अपनी डायरी ( Diary of a young Poet ) के इन पृष्ठों को आप सभी के समक्ष प्रस्तुत करने का अवसर मिल रहा है . उम्मीद है आपके प्रेम और आशीर्वाद रुपी वर्षा में मैं भीग जाऊँगा. स्वप्निल सौंदर्य ई ज़ीन में प्रकाशित हो रही मेरी यह स्वरचित रचनायें आपको पसंद आएं ,इस विश्वास के साथ मैं संजय चौहान अपने कलम को यहीं विराम दे रहा हूँ.........
आभार
संजय चौहान ( Sanjay Chauhan )
आज से ठीक एक साल पहले किसी ने अलविदा कहा था मुझे...... आज उस दर्द को अपनी रचना के साथ बयां कर रहा हूँ.............
आज ये खुशनुमा चेहरा फिर से उदास है,
शायद उनके लौट आने की अब न इसे आस है.
दो पल साथ रहकर वो हमें जो खुशी दे गए,
जाते-जाते उससे ज्यादा कई गम-ओ-सितम दे गए.
हमने आस न की थी कभी उनकी रुसवाई की,
पर वो आए और चैन ओ सुकून ले गए.
जी रहे थे इससे पहले भी हम उनके बिना,
पर अब तो वो जीने की वजह भी ले गए.
सपने देखे थे हमने उनकी यादों में ही सही,
पर अब तो वो रातों की नींद भी ले गए.
गर छोड़ के जाना ही था, तो आए ही क्यों ?
प्यार जैसे सपने बुनाये ही क्यों ?
दिल टूटा है मेरा आज भी उस शीशे की तरह,
जिसे समेटूं तो चुभने का डर और न समेटूं तो भी चुभने का डर.
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दोस्तों की दोस्ती के नाम मेरी कुछ रचनाएं............
खुदा तूने रहमतों का खज़ाना दिया,
इतने सारे दोस्तों का तराना दिया.
ताह उम्र रहेंगे हम कर्जदार तेरे,
तूने हमें खुशियों का ठिकाना दिया.
नफ़रतों के दौर में जल रहे थे हम,
तूने ठंड़ी हवाओं का नज़राना दिया.
खुदा तूने रहमतों का खज़ाना दिया,
इतने सारे दोस्तों का तराना दिया.
माँ-बाप ने पाला और बड़ा कर दिया,
बेसहारे को जैसे पैरों के बल खड़ा कर दिया.
कमी महसूस हुई फिर भी,एक अदव सहारे की मुझे,
दोस्तों ने आ के उस कमी को भी पूरा कर दिया.
हिम्मत, हौसला, सुख दुख बन कर ,
दोस्तों ने भी करतव कर दिया.
कृष्ण-सुदामा सरीखी दोस्ती निभाकर,
हमारी दोस्ती को भी अमर कर दिया.
खुदा तूने रहमतों का खज़ाना दिया,
इतने सारे दोस्तों का तराना दिया.
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मैं आइने की तरह टूट कर चकनाचूर हो जाऊँगा ,
जिस दिन भी तुम्हारे जैसे दोस्त से दूर हो जाऊँगा .
जब तक पास में हूँ कदर कर लो मेरी,
हाथ से जो निकला कोहिनूर हो जाऊँगा.
मेरी अच्छाईयों में भी यूं जो ऐब ढ़ूढती रहती हो,
देख लेना फिर तो मैं बुरा जरुर हो ही जाऊँगा.
सुना है लोग जलते हैं हमारी दोस्ती से,
पर मैं लिखूँगा अपनी दोस्ती ही,
और मशहूर हो जाऊँगा .
कभी खोना नहीं चाहूँगा मैं,
तुम जैसे दोस्त को दिल से,
क्योंकि तुम्हें खो के शायद मैं,
और भी नासूर हो जाऊँगा.
मुझे मिला है तुमसा कोहिनूर बिन माँगे,
अब दुनिया क्या, मैं भी उस खुदा का ,
शुक्रगुज़ार हो जाऊँगा.
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गौ रक्षा पर मेरी रचना .............
लिख रहा हूँ मैं, कड़्वा सच,
सबको याद दिलाने को,
गौ माता अब भाग रही ,
अपनी लाज बचाने को.
नींद से जागो हे गौ प्रेमी !
तुमको ये बतलाना है ,
लुट रही आबरु माँ की,
तुमको उसे बचाना है.
अपनी माँ गौरी का ,
अब तुम कुछ मान रखो,
गौ के प्रेमी गौ रक्षक !
अब तो तुम कुछ ध्यान करो,
इन जिहादी जल्लादों का,
अब तुम न सत्कार करो.
मार भगाओ इन दैत्यों को,
और अब संहार करो.
क्या हो जाती है बूढ़ी माँ,
तो बाज़ारों में बेचा करते हो,
तो क्यों थोड़े से लालच के पीछे,
गौ माँ को सड़्कों पे छोड़ा करते हो.
न लिखा ये बाइबल में,
न सिखाती हमको ये कुरान ,
न पढ़ा हमने किसी वेद में,
न है ये गीता का ज्ञान .
नर नहीं नपुंसक है वो,
जिनको गौ माता से प्यार नहीं,
भक्षक है जो भी मेरी माँ का,
उसे जीने काअधिकार नहीं.
गौ रक्षा की इस मुहिम की,
हम सबको अलख जगानी है,
अपनी प्यारी गौ माता की ,
अब हमको लाज बचानी है.
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- संजय चौहान ( Sanjay Chauhan )
युवा कवि/ लेखक
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