स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन : Vol- 01, Issue- 04 , Jan- Feb 2014
स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन : Vol- 01, Issue- 04 , Jan- Feb 2014
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स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन - परिचय
द्वि-मासिक ई-पत्रिका के रुप में 'स्वप्निल सौंदर्य' में कुछ खास स्तंभों को भी सम्मिलित किया जा रहा है ताकि आप अपनी ज़िंदगी को अपने सपनों की दुनिया बनाते रहें. सुंदर सपने देखते रहें और अपने हर सपने को साकार करते रहें .तो जुड़े रहिये 'स्वप्निल सौंदर्य' ब्लॉग व ई-ज़ीन के साथ .
और ..............
बनायें अपनी ज़िंदगी को अपने सपनों की दुनिया
Founder - Editor ( संस्थापक - संपादक ) :
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Managing Editor (कार्यकारी संपादक) :
Suman Tripathi (सुमन त्रिपाठी)
Chief Writer (मुख्य लेखिका ) :
Swapnil Shukla (स्वप्निल शुक्ला)
Art Director ( कला निदेशक) :
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चेतावनी : 'स्वप्निल सौंदर्य - ई ज़ीन ' में घरेलु नुस्खे, सौंदर्य निखार के लिए टिप्स एवं विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों के संबंध में तथ्यपूर्ण जानकारी देने की हमने पूरी सावधानी बरती है . फिर भी पाठकों को चेतावनी दी जाती है कि अपने वैद्य या चिकित्सक आदि की सलाह से औषधि लें , क्योंकि बच्चों , बड़ों और कमज़ोर व्यक्तियों की शारीरिक शक्ति अलग अलग होती है , जिससे दवा की मात्रा क्षमता के अनुसार निर्धारित करना जरुरी है.
संपादकीय
नमस्कार पाठकों.
सर्वप्रथम आप सभी को नूतन वर्ष की ढेर सारी शुभकामनायें. हम सभी ने कभी न कभी किसी न किसी से प्यार किया है . आखिर प्यार है ही इतना खूबसूरत एह्सास जिसके आगोश में हर कोई समा जाना चाहता है , अपना सब कुछ लुटा देना चाहता है.प्यार के विषय पर न जाने कितनी ही बातें , किताबें , गीत, कवितायें , शायरी, फिल्म आदि लिखी व बनाई गईं. प्यार के बिना ज़िन्दगी की कल्पना ही नहीं की जा सकती परंतु प्यार के इस शब्द को क्या किसी ने गहराई से समझा ? क्यों लगती है ज़िन्दगी प्यार के बिना अधूरी सी, बदरंग सी ? आखिर क्यों है प्यार में सब कुछ जायज़ ? आखिर क्या है प्यार के इन ढाई अक्षरों की सटीक परिभाषा ?
प्यार बाज़ार में नहीं बिकता , ना उसे बगिया में उगाया जा सकता है. राजा हो या रंक जो सिर झुकाएगा, प्यार उसे मिल जाएगा. यह सिर झुकाना दो तरह से है , एक तो अहंकार को छोड़ देना , समर्पण और दूसरा खुद को भुला देना. दोनों ही स्थितियों में देना है. परंतु प्यार में असल दिक्कत यह है कि प्यार कि भूख सबको है पर देने को कोई राज़ी नहीं. यह कहते हुए काफी लोगों को आपने देखा होगा कि उन्हें सच्चा प्यार नहीं मिला , जबकि शायद ही कोई प्यार करने को उतावला नज़र आता है. सच्चाई तो यह है कि प्यार को लेकर जितनी भी बातें की जाती हैं , वह प्यार है ही नहीं. प्यार को मह्सूस करने के लिये उसमें डूबना पड़ता है , खुद को मिटा कर -उसके रंग में रंग जाना होता है. खुद को मिटाना है प्यार, सौ प्रतिशत समपर्ण है प्यार, बलिदान का पर्याय है प्यार.
जिसको अकसर 'प्यार' समझने की हमसे भूल हो जाती है , वह आकर्षण है, लिप्सा है, लेन देन है. हमारे समाज में तो संबंधों को प्यार में लपेटकर देखने का रिवाज़ है. जो असल प्यार है वो तो कहीं गुम होता जा रहा है .प्यार दिमाग से नहीं होता , ये होता है तो होता है , नहीं होता तो सिखाया भी नहीं जा सकता. एक पतंगा आग से बेपनाह प्यार करता है , मर जाने तक, उस आग में स्वाहा हो जाता है , ये आग के प्रति उसकी मोहब्बत है. परंतु वैसा प्यार अब नज़र नहीं आता.
प्यार प्रयास से नहीं हो सकता, क्योंकि बिना इसमें डूबे इसका एह्सास नहीं हो सकता. जो इसमें जितना डूबा , उसको ये उतना ही मिला. कुछ लोग तो मात्र दैहिक खिंचाव को ही प्यार मान कर बैठ जाते हैं. प्यार के ढाई अक्षरों को समझने के लिये आज कल लोग लव साइंस में जा अटके हैं. हार्मोनों को दोष दे रहे हैं. प्यार के नाम पर ढकोसला करने वाले टयूशनों का लोभ देते फिर रहे हैं. प्यार का भी बाज़ारीकरण कर डाला है कुछ लोगों ने. पर सच तो यह है कि प्यार को कभी भी किसी पर भी थोपा नहीं जा सकता.
ईर्ष्या व अपेक्षाओं के साथ प्यार नहीं टिकता . और अंत में, मैं आप सब से यही कहूंगा कि प्यार इसलिये करो किः
रिश्ता बनाना है, रिश्ता निभाने के लिये,
जीवन के अन्त तक साथ निभाने के लिये,
प्यार में जीने और प्यार में मर जाने के लिये,
सर्वस्व प्यार में लुटाने के लिये,
प्यार में खो के प्यार का हो जाने के लिये,
प्यार के रंग में रंग जाने के लिये,
पतंगे की भांति ही आग में जल जाने के लिये,
प्यार में प्यार का हो जाने के लिये.
स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन का यह अंक प्यार के नाम . नव वर्ष के शुभ अवसर पर स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन के चतुर्थ अंक ( जनवरी- फरवरी 2014 ) में हम जिन विभिन्न पहलुओं व जानकारियों को सम्मिलित कर रहे हैं वे निम्नवत हैं :
विशेष - क्योंकि पँखों से नहीं , हौसलों से उड़ान होती है
सौंदर्य - मुंहासे दूर करने के लिए उपाय
साहित्य - अब कुछ समझ न आए .......
पकवान - दिव्या की किचेन से : सूजी के दही बड़े
फैशन व लाइफ्स्टाइल - फ्रिली फै़शन
इंटीरियर्स - आशियाना हमारा लगे हरदम सुहाना
धर्म, संस्कृ्ति व संस्कार - गरुण पुराण : मौत का स्वरुप
कैरियर - विज़ुअल मर्चेंडाइज़िंग
कड़वा सच - आखिर कब होगा दुष्कर्मों का अंत :
शख्सियत - दमयंती जोशी
उद्यमीयता विकास - उद्यमी की पहचान :
डायरी - God Almighty
आपके पत्र
अंत में आप सभी को नूतन वर्ष की बहुत- बहुत शुभकामनायें. तो जुड़े रहिये स्वप्निल सौंदर्य ई- ज़ीन के साथ और बनायें अपनी ज़िंदगी को अपने सपनों की दुनिया.
शुभकामनाओं सहित ,
आपका ,
ऋषभ
विशेष :
क्योंकि पँखों से नहीं , हौसलों से उड़ान होती है .........
मज़बूत हौसलों के साथ आगे बढ़ने का इरादा, निस्वार्थ भाव से समाज को प्रगति के पथ पर अग्रसर करने का जुनून व महिलाओं के अधिकारों व मान-सम्मान के लिये सब कुछ न्यौछावर कर देने का जज़्बा .शायद ये कुछ वाक्य भी कम पड़ेंगे समर्थ समाज सेविका व 'सखी केन्द्र' प्रमुख सुश्री नीलम चतुर्वेदी के व्यक्तित्व को परिभाषित करने के लिये .
प्रस्तुत हैं इस चिट्ठे में सुश्री नीलम चतुर्वेदी से मेरी बातचीत के कुछ अंश :-
प्रश्न : समाज सेवा से आप सक्रिय तौर पर जुड़ी हुई हैं. इसकी शुरुआत कब और कहाँ से हुई व किस प्रकार समाज सेवा के क्षेत्र में आने की प्रेरणा मिली ?
उत्तर: समाज सेवा की शुरुआत मैंने 16 वर्ष की आयु से ही कर दी थी .इसकी प्रेरणा मुझे मेरे पिता से मिली. उस समय जब स्वदेशी कॉटन मिल के कर्मियों का शोषण हो रहा था , तब उनकी व्यथा सुन मेरे भीतर ये इच्छा जाग्रत हुई कि मैं भी इनके लिये कुछ करुँ .फिर क्या था स्कूल ड्रेस व बैग के साथ सुबह-सुबह मैं मिल पे जाती और विभिन्न गीतों के द्वारा उनकों अपने अधिकारों के लिये लड़ने की प्रेरणा देती. साथ ही साथ पढ़ाई भी चालू रही. पर हर वक़्त मेरा दिल व दिमाग समाज सेवा के लिये सोचता रहता . मैं, बचपन से ही किताबें पढ़ने की शौकीन थी. मात्र 14 वर्ष की आयु में मैंने ' अग्नि दीक्षा' , 'लाल रेखा', जैसी किताबें पढ़ीं. इन किताबों के क्रांतिकारी चरित्रों से भी मुझे बहुत हौसला मिलता था. लोगों को प्रेरणादायक भाषण देता देख एक बार मैंने भी अनुरोध किया कि मैं भी कुछ बोलना चाहती हूँ . बस फिर क्या था मैं मंच पर चढ़ी और मैंने कहा कि " यदि ' मिल ' में काम करने वाले मज़दूरों के साथ अनैतिक व्यवहार करके बड़े अफसर ये सोचते हैं कि हम टूट जाएंगे और आंदोलन को किनारे कर देंगे तो मैं ये कहती हूँ कि वे ऐसा सोचना भी भूल जाएं क्योंकि मज़दूर न टूटेंगे , ना अपना हौसला तोड़ेंगे क्योंकि मैं हूँ उनके साथ और हम सब मिल के अपने अधिकारों की लड़ाई जीत कर रहेंगे ." ये सुन कर सारे मज़दूरों का एवं वहाँ उपस्थित लोगों का हौसला बढ़ा व तालियों की गड़गड़ाहट से मंच गूँज उठा . इस वाक्ये ने मेरा हौसला और मज़बूत किया . फिर क्या, मज़दूरों के अधिकारों की लड़ाई से मैं, तब तक जुड़ी रही जब तक उन्हें उनका हक नहीं मिल गया. इससे मेरी हिम्मत और बढ़ी . उसके बाद लाठी लेकर शराब की मटकियाँ फोड़ीं. न्याय के लिये धरना प्रदर्शन किया. विक्टोरिया मिल् में 12 दिन आंदोलन भी किया. उस दौरान रात- रात भर मज़दूर महिलाओं को भी भाषण देना सिखाया ताकि वे अपनी बात दूसरों के समक्ष प्रस्तुत कर सकें. दिन पर दिन हौसला बढ़ा , जुनून बढ़ा तो एक संगठन तैयार किया और फिर क्षेत्रीय कमेटी बनाई. और इस प्रकार 'महिला मंच' व 'सखी केन्द्र' की नींव रखी. धीरे धीरे लोगों का मुझमें विश्वास बढ़ा और फिर राष्ट्रीय स्तर के बाद अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी समाज सेवा से जुड़े कार्य किये.
प्रश्न : आपने बेहद कम उम्र से ही समाज सेवा के लिये कदम बढ़ाये. शुरुआत में किस प्रकार की कठिनाईयों का सामना करना पड़ा ?
उत्तर : परेशानियाँ तो जीवन का अंग हैं .किसी भी अच्छे कार्य को जब आप शुरु करते हो तो कठिनाईयाँ तो सामने आती ही हैं . पर ऐसी स्थिति में आप की दृ्ढ़ निश्चयी सोच ही आपको सफलता के मार्ग पर आगे बढ़ाती है . शुरुआत में कम उम्र के कारण जब मैं स्कूल ड्रेस में मज़दूरों को न्याय दिलाने के लिये अनाज इकट्ठा करने जाती तो कई बार अपशब्दों का सामना करना पड़ता .बहुत दुख होता था तब . कुछ लोगों ने तो तब मेरे प्रयासों को भीख माँगने का भी नाम दे दिया था. शुरु -शुरु में जब किसी महिला के साथ हुए जुर्म के खिलाफ लड़ने व आवाज़ उठाने के लिये मैं उनके परिवार को समझाती तो लोग मुझे उनके घर से बाहर जाने का रास्ता दिखाते . उन लोगों के लिये तब बलात्कार जैसे शब्दों को मुँह से बोलना भी बेशर्मी कहा जाता था. तब लगता था कि मुँह से शब्द निकालना बेशर्मी है , अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाना बेशर्मी है या अपनी ही बहु - बेटियों के साथ हो रहे अन्याय को या बलात्कार जैसे घिनौने अपराधों को चुपचाप देखते रहना बेशर्मी है . खैर, इन बाधाओं ने मेरे हौसले ना तोड़े . पर कभी-कभी तो मैं इतनी हतोत्साहित हुई कि ऐसा लगा कि ज़िंदगी में कुछ न् कर पाऊँगी पर पिताजी ने मुझे प्रेरणा दी और मैं फिर आगे बढ़ी.
प्रश्न : आपकी संस्था 'सखी केन्द्र' की कार्यप्रणाली से हमें अवगत करायें.
उत्तर: 'सखी केन्द्र ' के द्वारा हम महिलाओं की भय, कमजोर, असुरक्षा एवं हीन भावना की ग्रन्थियों को खत्म कर उनकी क्षमताओं को बढ़ाने और उनमें 'हम' की भावना का विकास कर , उन्हें एक ऐसी प्रक्रिया में ढालते हैं जहाँ वे अपना जीवन स्वयं गढ़ सकें और महिलाओं को अपने अधिकारों को कर्त्तव्यों के साथ समझते हुए , एक सुंदर स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकने की प्रेरणा देते हैं जिसके अंतर्गत हम आश्रय केन्द्र, परामर्श केन्द्र, कानूनी सहायता, आपातकालीन महिला हेल्प लाइन, लाइब्रेरी, स्वयं सहायता समूह, व्यक्तित्व विकास एवं व्यवसायिक प्रशिक्षण जैसे कार्यक्रमों को संचालित करते हैं.
प्रश्न : महिला मंच क्या है और ये किस प्रकार महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने में सहायक है?
उत्तर : 'महिला मंच उत्तर प्रदेश' की शुरुआत 1977 में हुइ जो कि एक प्रादेशिक संगठन है जो उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में महिलाओं के मानवाधिकारों को लेकर काम कर रहा है. जिसके द्वारा हम महिला हिंसा से जुड़ी समस्यायें, लैंगिक असमानता , गरीबी, बेरोजगारी , जातिवाद, साम्प्रदायिकता व इंसानियत से जुड़ी सभी समस्याओं के खिलाफ लोगों को जाग्ररुक कर उन्हें संगठित कर जन आंदोलन चलाने के प्रयास करते हैं . महिला मंच का मुख्य उद्देश्य एक हिंसा मुक्त् व खुशहाल समाज की स्थापना करना है .
प्रश्न : महिलाओं के सशक्तिकरण के लिये भविष्य में और क्या योजनाएं हैं?
उत्तर : भविष्य में हम हिंसा को जड़ से उखाड़ फेकने का प्रयास करेंगे . हमें सामाजिक न्याय चाहिये , लैंगिक भेदभाव को खत्म करने की दिशा में कार्य करेंगे .प्रयास तो यही रहेगा कि और भी लोग व आने वाली पीढ़ी भी हमारे साथ जुड़े ताकि हम मिलकर एक हिंसा मुक्त समाज की स्थापना कर सकें. जिससे लोग सहज साँस ले सकें व खुशहाल जीवन जी सकें.
प्रश्न : पाठकों व जनता के लिये कोई संदेश ?
उत्तर : पाठकों व जनता को मैं यही संदेश देना चाहूँगी कि हमारी लड़ाई पुरुषों के खिलाफ नहीं है बल्कि हम पितृ्सत्तात्मक सोच के खिलाफ हैं . ये पितृ्सत्तात्मक सोच न केवल पुरुषों में बल्कि महिलाओं के साथ-साथ पूरे समाज में उपस्थित है. महिलाओं को स्वयं जाग्ररुक होना पड़ेगा और आगे आना होगा . इसके अलावा बेटी - बेटे में असमानता न करें . लड़कों के साथ-साथ लड़कियों को भी आत्मनिर्भर बनायें . पति-पत्नी को एक दूसरे का अभिन्न अंग बनना होगा .पति - पत्नी एक दूसरे के अच्छे दोस्त बनें ताकि आने वाली पीढ़ी में अच्छी व सकारात्मक सोच का विकास हो सके जिससे एक सुदृ्ढ़ समाज की स्थापना हो सके.
" नीलम जी , अपना बहुमूल्य समय हमें देने के लिये आपको हृ्दय से धन्यवाद ."
{ 'सखी केन्द्र' प्रमुख सुश्री नीलम चतुर्वेदी जी से मौखिक बातचीत के बाद मामूली संपादन के बाद इस साक्षात्कार को प्रकाशित किया जा रहा है .}
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सौंदर्य
मुंहासे दूर करने के लिए उपाय
- नीम का रस और हल्दी का मिश्रण लगाने से मुंहासे दूर होते हैं.
- हल्दी - चंदन का मिश्रण तैयार कर चेहरे पे लगाने से मुंहासों की उचित रोकथाम होती है.
- मुंहासे हटाने के लिए लहसुन को कूटकर उसका रस मुंहासों पर लगाएं , जल्द आराम मिलेगी.
- संतरे के छिलके के पाउडर में पानी मिलाएं और इसे मुंहासों पर लगाएं.
- सोते समय गुनगुने पानी या दूध के साथ आंवले के चूर्ण का सेवन करने से भी मुंहासों से राहत मिलती है.
- कच्चे दूध में जायफल मिलाकर पेस्ट बनाएं और मुंहासों पर लगाएं. शीघ्र फायदा होगा.
- पिसे हुए नीम के पत्ते में हल्दी मिलाकर रोज़ मुंहासों के ऊपर लगाएं , इससे मुंहासे जल्दी सूख जाएंगे.
- बादाम के पाउडर को पानी में घोल कर मुंहासों पर लगाने से मुंहासे जल्दी ठीक होते हैं.
- पुदीने के पत्ते और जई के पाउडर का पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाने से मुंहासे कम होते हैं. इसे 20 मिनट तक चेहरे पर लगाकर रखें और फिर हल्के गरम पानी से धो दें.
- स्वप्निल शुक्ल
साहित्य :
अब कुछ समझ न आए ..........
थक गया मैं ज़िंदगी से लड़ कर ,
अब कुछ समझ ना आए कि क्या करुँ,
हर तरफ दिया ज़िंदगी ने धोखा
अब कुछ समझ न आए कि क्या करुँ.
सोचा था कभी कि ज़िंदगी होगी हसीं,
पर कमबख़्त वो तो निकली बदनसीब ,
जिसे चाहा वो कभी मिल ना पाया ,
ऐसे मझधार में फँसा दिया इसने,
कि अब डूब जाने को जी चाहे.
वक़्त - बेवक़्त दिए नए- नए ज़ख्म इसने,
सँभलने का मौका न दिया,
क्या करुँ,किधर जाऊँ सब रास्ते बँद हैं,
ज़िंदगी के इस सफर में हम तो बदनसीब हैं.
एक आस जगी थी बहुत पहले,
कि शायद कुछ अच्छा होगा ,
नए दोस्त बने , नई ज़िंदगी मिली,
मिला जीने का नया बहाना.
पर शायद मँज़ूर ना था,
ज़िंदगी को कि खुश वो मुझे देख सके,
कर दिया दूर फिर उसने सबसे,
और अकेले रह गए हम .
एक दोस्त के लिए तरस रहे थे,
कोई तो मेरी चाहत को समझे .
पर इसी आशा में जीता रहा ,
और आज आखिरी मुकाम पे आ गया .
नहीं पता कल क्या होगा,
ज़िंदा रहूँ या ना रहूँ,
पर वो कसक दिल में ,
रह जाएगी और शायद,
मौत भी अच्छे से नसीब न हो पाएगी.
- कुमार प्रतीक
एम. बी. ए. डिग्री होल्डर ' प्रतीक ' की ज़िंदगी अधिकतर कॉर्परट (Corporate ) जगत के इर्द- गिर्द ही घूमती रहती है. फिर भी इस भाग- दौड़ भरी ज़िंदगी में भी उन्होंने अपने लेखन के शौक़ को पंख दिए हैं. इनकी रचनाएं ज़िंदगी की सत्यता, तन्हाई व श्रृंगार रस पर केन्द्रित हैं.
फै़शन व लाइफस्टाइल
फ्रिली फै़शन :
इस सीज़न में यदि आप चाहती हैं यंग व ट्रेंडी लुक तो रफल्ड टॉप यानी फ्रिली टॉप हैं आपके लिए राइट च्वाइस. फै़शन के साथ चलना चाहती हैं तो इन्हें अपने वॉर्डरोब में जरुर शामिल करें.
- रफल्ड टॉप जींस के साथ स्टाइलिश लगते हैं.
- फार्मल लुक के लिए फ्रिली या रफल्ड शर्ट को पेंसिल स्कर्ट या हाई वेस्ट ट्राउज़र के साथ धारण करें.
- ध्यान रखें कि टॉप या बॉटम में से किसी एक में ही फ्रिली एलीमेंट हो. बहुत ज़्यादा फ्रिल लाउड लगता है.
- अगर ड्रेस रफल्ड न पहनना चाहें तो फ्रिली पर्स सिलेक्ट करें . ये आपके व्यक्तित्व में चार- चाँद लगाते हैं.
- फ्रिली टॉप को और भी अधिक स्टाइलिश लुक देने के लिए हाई हील स्टिलेटोज़ पहनना न भूलें.
- स्वप्निल शुक्ल
कैरियर
विज़ुअल मर्चेंडाइज़िंग :
यदि आपमें क्रिएटिव एबिलिटी के साथ-साथ टेक्निकल स्किल्स भी विद्यमान हैं और आप रिटेल सेक्टर में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाना चाहते हैं तो निश्चित ही विज़ुअल मर्चेंडाइज़िंग का क्षेत्र आपके लिए उत्तम है. इस संदर्भ में सबसे पहले जानते हैं कि विज़ुअल मर्चेंडाइज़िंग है क्या?
विज़ुअल मर्चेंडाइज़िंग ग्राहकों के समक्ष अपने उत्पाद ( प्रोड्क्ट ) को खूबसूरत, आकर्षक व बेहतरीन ढंग से प्रस्तुत करने की एक कला है. विज़ुअल मर्चेंडाइज़िंग एक ऐसी कुँजी है जिसके द्वारा हम ग्राहकों को अपने प्रोड्क्ट की ओर आकर्षित कर सकते हैं. या यूँ कहें कि यह एक कलात्मक मीडियम है अपने प्रोड्क्ट को ग्राहकों के सामने प्रस्तुत करने का.
कई संस्थानों में यह होर्स इंटीरियर डिज़ाइन व फै़शन डिज़ाइन के पाठयक्रम के साथ जोड़्कर पढ़ाया जाता है. वैसे आप इंडियन रिटेल स्कूल व मुद्रा इंस्टीटयूट आफ कम्यूनिकेशन में विज़ुअल मर्चेंडाइज़िंग के कोर्स में दाखिला ले सकते हैं जिनकी अवधि 3 माह से एक वर्ष के बीच होती है.
योग्यता :
विज़ुअल मर्चेंडाइज़िंग में दाखिले के लिए किसी भी विषय में ग्रेजुएशन कम से कम 50 प्रतिशत अंकों सहित उत्तीर्ण होना अनिवार्य है . दाखिला प्रवेश परीक्षा व साक्षात्कार के आधार पर होता है. कई निजि संस्थानों में 10+2 के बाद भी प्रवेश संभव है.
विषय की प्रकृ्ति :
विज़ुअल मर्चेंडाइज़िंग के अंतर्गत रिटेल डिज़ाइन , स्टोर प्लानिंग एंड स्टोर डिज़ाइन मैनेजमेंट , स्पेस मैनेजमेंट , कलर साइक्लॉजी , ग्राफिक्स, साइनेज, लाइटिंग, प्रॉप्स , मैनिक्वीन हैण्डलिंग, प्लानोग्राम, फिक्चर्स एंड फिटिंग्स ,स्टोर इंटीरियर एंड एक्स्टीरियर डिज़ाइन, कन्ज़यूमर बिहेवियर, न्यू एज कस्टमर, इन्ट्रोडक्शन टू रिटेल, स्टोर एट्मोसफेरिक्स, थीम्स का प्रयोग आदि के बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान की जाती है.
कार्य :
एक विज़ुअल मर्चेंडाइज़र का कार्य अपने स्टोर की ब्रांड इमेज और अपने प्रोड्क्ट को प्रतिस्पर्धी ब्रांड से आगे रखना होता है. इसके लिए किस अवसर में किस प्रकार के थीम का प्रयोग कर अपने प्रोड्क्ट को ग्राहक के समक्ष प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करें और हर पल ग्राहक को ये सोचने पर मजबूर कर दें कि अब इससे नया और अधिक खूबसूरत क्या हो सकता है. इसके साथ -साथ एक वी. एम अपने सेल्स स्टाफ को भी वी. एम हेण्डलिंग से संबंधित ट्रेनिंग प्रदान करता है जिससे उसकी अनुपस्थिति में भी स्टोर की वी. एम से संबंधित कार्य प्रणाली में विघ्न न उत्पन्न हो.
आवश्यक क्षमताएं :
यदि आप विज़ुअल मर्चेंडाइज़िंग के क्षेत्र में अपना कैरियर तलाश रहे हैं तो यह बहुत ज़रुरी है कि आपमें कलात्मकता, रचनात्मकता के साथ- साथ अच्छे कम्यूनिकेशन स्किल्स , टेक्निकल स्किल्स , फै़शन ट्रेंड्स के बारे में जानकारी , टीम में कार्य करने की क्षमता के साथ -साथ आप स्ट्रेस टेकर भी हों क्योंकि महत्वपूर्ण सीज़न व त्योहारों में जब अत्यधिक सेल बढ़ जाती है तो ग्राहकों को रिझाने के लिए हर पल अपनी कलात्मकता को ग्राहक संतुष्टि के लिए सही आकार प्रदान करने की ज़िम्मेदारी भी एक वी. एम. की ही होती है.
संभावनाएं :
कोर्स संपूर्ण करने के उपरांत शॉपिंग मॉल्स, डिज़ाइनर बुटीक, होटल, सेट डिज़ाइनिंग , रिटेल स्टोर, राष्ट्रीय - बहुराष्ट्रीय रिटेल ब्रांड व टेक्सटाइल इण्डस्ट्रीस में बतौर वी. एम नियुक्ति होती है. यदि भारत के अलावा एब्राड की बात करें तो यू.के, यू. एस. ए, दुबई , इटली, जर्मनी जैसे देशों में भी बेहतरीन कैरियर की संभावनाएं हैं.
वेतन :
एक कुशल वी. एम. शुरुआती स्तर पर 8-12 हजार से बीच आसानी से कमा सकता है . कार्य कौशल व अनुभव के आधार पर वेतन में तेजी से बढो़त्तरी होती है.यदि बतौर फ्रीलॉन्स वी. एम . कार्य करते हैं तो प्रति विंडो डिस्प्ले के 20, 000 रु. तक कमाए जा सकते हैं.
पकवान
दिव्या की किचेन से .
सूजी के दही बड़े :
सामग्री :
- 250 ग्राम सूजी
- 500 ग्राम दही
- 1 चम्मच नमक
- 1 चम्मच लाल मिर्च
- 4-5 हरी मिर्च
- बारीक कटा हरा धनिया
- 1 चम्मच भुना हुआ जीरा
- तलने के लिए तेल
विधि :
सूजी को बिना तेल की कढ़ाई में भून लें. दो गुना पानी लेकर नमक , लाल मिर्च डालकर हलवे की तरह गाढ़ा घोल पका लें . फिर ठंडा होने को रख दें. हल्का सा हाथ में घी लगाकर बड़े के आकार में तलती जाएं. इसके बाद दही को थोड़ा सा नमक डालकर फेंट लें. उसमें बड़े डालती जाएं. थोड़ी देर में एक-एक कर के निकालकर प्लेट में सजा दें. ऊपर से हरा धनिया, मिर्च व जीरा बुरककर सर्व करें.
किचेन टिप्स :
- आम का अचार तैयार करते समय यदि सरसों के कच्चे तेल को खूब अच्छी तरह गर्म करके , उसे ठण्डा करके डाला जाए तो अचार को धूप में नहीं रखना पड़ेगा और न ही फफूंदी पड़ेगी.
- आम का अचार यदि खराब होने लगे तो उस पर थोड़े नमक की तह बिछा दीजिए .
- पुराने आलुओं को उबालते समय पानी में नींबू का रस या जरा सी चीनी डाल दें तो उनका स्वाद बढ़ जाएगा और आलू सफेद व भुरभुरे हो जाएंगे.
- आलू की टिकिया बनाते समय यदि आलू मसलकर दो चम्मच सूजी मिला दी जाए तो टिकिया कुरकुरी बनती है और फटती नहीं है.
- रोटी को अधिक नर्म व स्वादिष्ट बनाने के लिए आटे को ठण्डे पानी के स्थान पर गर्म पानी से गूंथे तथा आटे को थोड़ा नरम या गीला रखें.
कड़वा सच
आखिर कब होगा दुष्कर्मों का अंत :
भारतीय समाज में स्त्री को देवी स्वरूप माना जाता है, उनकी पूजा की जाती है. परंतु कटु सत्य यह है कि हमारे समाज में सदियों से स्त्री को हमेशा उपभोग की वस्तु ही माना गया है . कुछ लोगों की नीच, तुच्छ व संकीर्ण मानसिकता के कारण स्त्रियों को पूजना तो दूर समाज में उन्हें सम्मान तक प्राप्त नहीं हो पाता ..... ऐसे लोगों के लिये स्त्री मात्र पुरुषों की जरुरतें पूर्ण करने वाली मशीन है और उसका जिस्म खिलवाड़ करने की वस्तु.
हमारे देश भारत में स्त्रियों के साथ बलात्कार के मामले प्रतिदिन सामने आते हैं. जो स्त्री के अस्तित्व , उसकी स्वतंत्रता , अस्मिता , सुरक्षा व समाज में स्त्रियों के स्थान पर सवाल उठाते हैं. आए दिन होने वाली ऐसी वारदातों से हम अंदाज लगा सकते हैं कि हमारा समाज किस दिशा की ओर जा रहा है. समाज तो केवल मौन धारण किये हुए है. बलात्कार करने वाले यह नहीं देखता ना ही सोचता है कि उक्त महिला कौन से धर्म , जाति की है. ऐसी वारदातों को अंजाम देने वाले व्यक्ति अपनी हवस की आग में इतने पागल व अंधे हो जाते हैं कि उनमें दया, करुणा , इंसानियत , शर्म आदि भावनाओं का भी अंत हो जाता है . विकृ्त मानसिकता के ऐसे लोग प्रतिष्ठा व कद को ताक पर रख कर इस बात पर कतई ध्यान नहीं देते कि वे किस प्रकार का घृ्णित कार्य कर रहें हैं. अपनी हवस के आगे वे इस बात को भी भूल जाते हैं कि जिस स्त्री की इज़्ज़त को वे तार- तार कर रहे हैं, वैसी ही किसी स्त्री की कोख से उन्होंने भी जन्म लिया है. ऐसे घृ्णित लोगों के कारण हर रोज कहीं न कहीं इंसानियत शर्मसार होती रहती है.
वारदातें तो ऐसी भी सामने आईं कि लड़की के विरोध करने पर व बलात्कार में असफल होने पर दुराचारी कहीं लड़की की आँखें फोड़ देते हैं तो कहीं उन मासूमों की ज़िंदगी ही खत्म कर देते हैं.
प्रश्न यह उठता है कि आखिर समाज में महिलाओं की स्थिति कब सुधरेगी. कब हमारे समाज में स्त्रियों के लिये माहौल पूर्णतया अनुकूल होगा. स्त्री के नाम पर ढकोसलों से परे कब लोगों की महिलाओं के प्रति संकीर्ण व तुच्छ मानसिकता का जड़ मूल समेत अंत होगा. आखिर कब????? क्या प्रश्न देश की कानून व्यवस्था पर खड़ा होता है? मेरे अनुसार तो इसका जवाब है : नहीं .. क्योंकि कानून व्यवस्था चाहे जितनी सख्त क्यों न हो जाए ...जब तक लोगों की सोच में बद्लाव नहीं आएगा तब तक स्थिति नहीं सुधरेगी क्योंकि यहाँ मसला नैतिकता व समाजिकता का है. वैसे भी जब किसी की सोच ही गंदी व घृ्णित हो तो उससे लाख सख्ती बरतने पर भी अच्छे व्यव्हार की उम्मीद भला कैसे की जा सकती है.
बलात्कार की वारदातों में यह भी कड़वी सच्चाई प्राय: सामने आती है कि ज्यादातर महिलायें उनके साथ हो रहे शारीरिक शोषण के खिलाफ आवाज़ नही उठातीं , तो कभी परिवार की बदनामी के डर व पारिवरिक सदस्यों के दबाव में आकर , उनके साथ हो रहे अत्याचार को सहती रहती हैं और लोग उनकी इज़्ज़त से खिलवाड़ करने से बाज नहीं आते हैं...... यदि स्थिति में सुधार न आया तो महिलाओं के साथ होने वाले ये दुराचार स्त्री अस्तित्व के लिये बेहद घातक व चिंताजनक हैं.
समय के बदलने के साथ-साथ भारतीय समाज , विकास और देश की तरक्की की ओर अग्रसस तो हुआ , लेकिन सामाजिक सोच अब भी वही घिसी पिटी बरकार है. हमारे देश की व्यवस्था व लोगों की संकुचित सोच का ही परिणाम है कि हमारे समाज में ज्यादातर स्त्रियाँ अकेले थाने में मुकदमा लिखाने नहीं जाती हैं. वो भय से भी मुकदमा लिखाने में डरती हैं और आज-कल तो हमारे समाज में एक ढर्रा और बन गया है कि मुकदमा लिखाने का मतलब समय और पैसे की बरबादी के अलावा और कुछ नहीं है. समाज में स्त्रियों के अस्मिता की रक्षा व उनकी स्थिति में सुधार तभी संभव है जब हमारा समाज उनके प्रति संवेदनशील बने. बेतुके स्त्री विरोधी रीति -रिवाज़ों , परंपराओं व संकीर्ण मानसिकता व विचारों का अंत हो . जब तक आडंबर, दिखावे व ढोंग से परे जमीनी ह्कीकत को ध्यान में रखते हुए कोई ठोस रणनीती, हमारे समाज में स्त्रियों की स्थिति , स्वतंत्रता व सुधार के लिये नहीं बनती तब तक हम स्त्रियों को अपनी पह्चान , अपने अस्तित्व के लिये संघर्ष करते रहना पड़ेगा.
-स्वप्निल शुक्ल
आशियाना हमारा लगे हरदम सुहाना :
अक्सर ऐसा होता है कि कभी अचानक मन में विचार उफान मारता है कि क्यों न घर को नए सिरे से पुन: व्यवस्थित करके उसे एक नए साँचे , एक नए परिवेश में ढाले . और बात अगर किसी विशेष अवसर की हो या किसी त्योहार वगैरह की तो कुछ खूबसूरत फेरबदल आपके घर व आपकी जीवनशैली में फ्रेशनेस ला देता है.
वैसे तो घर को पूर्ण रुप से रेनोवेट ( पुनरुद्धार ) करने के लिए आपको प्रोफेशनल इंटीरियर डिज़ाइनर की आवश्यकता होती है क्योंकि ऐसे बहुत से डिज़ाइन आस्पेक्ट्स होते हैं जिन पर सूक्ष्म निरीक्षण करना अनिवार्य होता है . पर निम्नलिखित टिप्स के ज़रिये आप अपने घर को दे सकते हैं एक खूबसूरत व क्लटर फ्री व्यव्स्था :-
- अपने घर पर एक नज़र डालें कि कौन सी चीज़ें हैं, जिनका इस्तेमाल कुछ वर्षों या महीनों से नहीं हुआ . ऐसी चीज़ों को निकालकर जरुरतमंदों को बाँट दें.
- अपने घर के रेनवेशन के लिए किसी वस्तु को चुनने के लिए आपकी पसंद ही सर्वोपरि होती है क्योंकि वो घर आपका है , इसलिए दूसरों के द्वारा थोपी गई या बताई गई चीज़ों को दरकिनार करें.
- सबसे पहले घर के रेनवेशन के लिए एक प्लान बनाएं.
- इसके लिए मैगज़ीन, डिज़ाइनर शो हाउस , टी. वी या इंटरनेट की मदद से आप आइडिया ले सकते हैं.
- किसी भी रुम के डिज़ाइन के लिए सबसे पहले सॉफ्ट फरनिशिंग्स जैसे परदे, कार्पेट, कुशन्स, कवर आदि , एक्सेसरीज़ , फर्नीचर व पेंट आदि का चयन करें.
- दिवारों के लिए पेंट को सूर्य की नेचुरल रोशनी में देख कर ही पसंद करें न कि पेंटचिप से .
- कलर साइकॉल्जि का विशेष ध्यान रखें.
- अपने रुम में एक फोकल प्वाइंट निश्चित करें. फोकल प्वाइंट का सीधा तात्पर्य रुम के हाइलाइटेड एरिया ( रुम के केन्द्र बिंदू ) से है.
- यदि आपके घर में कई तरह के मिस मैचड फर्नीचर हैं तो उनको एक ही रंग में रंग दें और मैचिंग पिलोस , कुशन्स व अफोल्स्टरि के द्वारा कोआर्डिनेशन बैठाएं.
- घर के विभिन्न हिस्सों में पेबल्स, स्टोन बोल विद फ्लोटिंग कैंड्ल्स और फूल , केन स्टिक्स्विद आइल लैंप, विभिन्न प्रकार के पौधे व बांस का प्रयोग कर अपने घर की ईस्थेटिक वैल्यू को बढ़ा सकते हैं.
- अपना मूड फ्रेश करने के लिए आप घर में सदैव कुछ अच्छे सेंटेड कैंडल्स , अरोमा ( सुगंधित ) आइल, कैंडल स्टैंड , कैंड्ल लैंप होल्डर और अगरबत्ती रखें. विशेष अवसरों पर इनकी महक आपके जीवन में ताज़गी लाती है व सकारात्मक ऊर्जा भी प्रदान करती है .
- ऋषभ शुक्ल
धर्म, संस्कृ्ति व संस्कार
गरुण पुराण :
अठारह महापुराणों में ' गरुणमहापुराण ' का अपना एक विशेष महत्त्व है . जैसे देवों मे जनार्दन श्रेष्ठ हैं और आयुधों में सुदर्शन चक्र श्रेष्ठ है, वैसे ही पुराणों में गरुण्पुराण हरि के तत्वनिरुपण में मुख्य कहा गया है . जिस मनुष्य के हाथ में यह गरुणमहापुराण विद्यमान है, उसके हाथ में नीतियों का कोश है. जो मनुष्य इस पुराण का पाठ करता है अथवा इसको सुनता है , वह भोग और मोक्ष - दोनों को प्राप्त कर लेता है.
इस पुराण के स्वाध्याय से मनुष्य को शास्त्र - मर्यादा के अनुसार जीवनयापन की शिक्षा मिलती है . जन-सामान्य में एक भ्रान्त धारणा है कि गरुणमहापुराण मृ्त्यु के उपरांत केवल मृ्तजीव के कल्याण के लिए सुना जाता है , जो सर्वथा गलत है. यह पुराण अन्य पुराणों की भाँति नित्य पठन- पाठन और मनन का विषय है . इसका स्वाध्याय अनन्त पुण्य की प्राप्ति के साथ भक्ति - ज्ञान की वृ्द्धि में अनुपम सहायक है .
गरुण पुराण के अनुसार मृ्त्यु का स्वरुप :
मृ्त्यु ही काल है , उसका समय आ जाने पर जीवात्मा से प्राण और देह का वियोग हो जाता है . मृ्त्यु अपने समय पर आती है. मृ्त्यु कष्ट के प्रभाव से प्राणी अपने किये कर्मों को एक्दम भूल जाता है. जिस प्रकार वायु मेघमण्डलों को इधर-उधर खींचता है, उसी प्रकार प्राणी काल के वश में रहता हिअ. सात्विक, राजस और तामस - ये सभी भाव काल के वश में हैं. प्राणियों में वे काल के अनुसार अपने - अपने प्रभाव का विस्तार करते हैं. सूर्य , चंद्र , शिव, वायु, इन्द्र , अग्नि, आकाश, पृ्थ्वी, मित्र , औषधि , आठों वसु, नदी, सागर और भाव - अभाव - ये सभी कालके अनुसार यथासमय उद्भूत होते , बढ़ते हैं, घटते हैं और मृ्त्यु के उपस्थित होने पर काल के प्रभाव से विनष्ट हो जाते हैं.
जब मृ्त्यु आ जाती है तो उसके कुछ समय पूर्व दैवयोग से कोई रोग प्राणी के शरीर में उत्पन्न हो जाता है . इन्द्रियाँ विकल हो जाती हैं और बल, ओज तथा वेग शिथिल हो जाता है. प्राणियों को करोड़ों बिच्छूओं के एक साथ काटने का अनुभव होता है, उससे मृ्त्युजनित पीड़ा का अनुमान करना चाहिये. उसके बाद ही चेतना समाप्त हो जाती है, जड़ता आ जाती है. तदनन्तर यमदूत उसके समीप आ कर खड़े हो जाते हैं और उसके प्राणों को बलात अपनी ओर खींचना शुरु कर देते हैं. उस समय प्राण कण्ठ में आ जाते हैं. मृ्त्यु के पूर्व मृ्तक का रुप बीभत्स हो उठता है . वह फेन उगलने लगता है. उसका मुँह लार से भर जाता है . उसके बाद शरीर के भीतर विद्यमान रहने वाला वह अंगुष्ठपरिमाण का पुरुष हाहाकार करता हुआ तथा अपने घर को देखता हुआ यमदूतों के द्वारा यमलोक ले जाया जाता है.
जो लोग झूठ नहीं बोलते , जो प्रीतिका भेदन नहीं करते , आस्तिक और श्रद्धावान हैं, उन्हें सुखपूर्वक मृ्त्यु प्राप्त होती है . जो काम, ईर्ष्या और द्वेष के कारण स्वधर्म का परित्याग न करे, सदाचारी और सौम्य हो, वे सब निश्चित ही सुखपूर्वक मरते हैं.
जो लोग मोह और अज्ञान का उपदेश देते हैं , वे मृ्त्यु के समय महाअंधकार में फँस जाते हैं. जो झूठी गवाही देने वाले, असत्यभाषी , विश्वासघाती और वेदनिन्दक हैं, वे मूर्च्छारुपी मृ्त्यु को प्राप्त करते हैं. उनको ले जाने के लिए लाठी एवं मुद्गर से युक्त दुर्गंध से भरपूर एवं भयभीत करने वाले दुरात्मा यमदूत आते हैं. ऐसी भयंकर परिस्थिति देखकर प्राणी के शरीर में भयवश कँपन होने लगती है . उस समय वह अपनी रक्षा के लिए अनवरत माता- पिता और पुत्र को यादकर करुण - क्रंदन करता है . उस क्षण प्रयास करने पर भी ऐसे जीव के कण्ठ से एक शब्द भी स्पष्ट नहीं निकलता . भयवश प्राणी की आँखे नाचने लगती हैं. उसकी साँस बढ़ जाती है और मुँह सूखने लगता है . उसके बाद वेदना से आविष्ट होकर वह अपने शरीर का परित्याग करता है और उसके बाद ही वह सबके लिए अस्पृ्श्य एवं घृ्णायोग्य हो जाता है.
- ऋषभ शुक्ल
शख्सियत
दमयंती जोशी :
शास्त्रीय नृ्त्य के क्षेत्र में दमयंती जोशी जी का नाम स्वर्ण अछरों में लिखा हुआ है . भारतीय नृ्त्य को विदेशों में प्रचलित करने में दमयंती जोशी जी का बड़ा योगदान रहा है . आपका जन्म मुंबई के एक साधारण परिवार में 5 दिसंबर सन 1928 को हुआ. एक वर्ष के बाद ही आपके पिता का स्वर्गवास हो जाने के कारण आपकी माँ ने आपका लालन- पालन बड़ी कठिनाइयों को झेलते हुए किया . बचपन से ही आपका झुकाव नृ्त्य की ओर देखकर आपकी माँ ने कथक नृ्त्य के एक नृ्त्य शिक्षक श्री सीताराम प्रसाद से शिक्षा दिलानी शुरु की . उनसे आपने बड़ी लगन से नृ्त्य शिक्षा ग्रहण की. कुछ दिनों बाद आपने प्रसिद्ध नर्तकी मेनका देवी के साथ विदेश भ्रमण किया अर विदेशों में काफी ख्याति प्राप्त की . विदेश से लौटने पर आपने नृ्त्य की विशेष उच्च शिक्षा अच्छन महाराज , शम्भू महाराज और लच्छू महाराज से ली. आपने कथक, भरतनाट्यम , कथकलि , मणिपुरी और पाश्चात्य नृ्त्य में भी दक्षता प्राप्त की.
दमयंती जोशी जी को भारत सरकार की ओर से चीन , जापान आदि देशों में सांस्कृ्तिक मंडल के साथ भेजी गईं जहाँ इन्होंने भारतीय नृ्त्य का प्रदर्शन किया . वहाँ पर आपके कथक और मणिपुरी नृ्त्यों को बहुत पसंद किया गया . भारत के विभिन्न संगीत सम्मेलनों में आप अपनी कला का प्रदर्शन करती थीं. आप नृ्त्य की शुद्धता पर अधिक विश्वास रखती थीं. लय- ताल के चमत्कार की अपेक्षा भावात्मक नृ्त्य को आप अधिक अच्छा समझती थीं. आपको प्रादेशीय और राष्ट्रीय संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार सन 1969 मैं मिला . भारत सरकार द्वारा सन 1970 में आपको मानद उपाधि पदमश्री से सम्मानित किया गया. 19 सितम्बर सन 2004 को आपका निधन हो गया.
उद्यमीयता विकास
उद्यमी की पहचान :
एन्ट्रीप्रिन्योर की परख व पहचान के लिए अनेक प्रयास किये गए हैं. परंतु वे सब आर्थिक उत्थान तथा समाज व राष्ट्र की अवनति के कारणों का ही अन्वेषण तथा अभिज्ञान करते रहे. उद्यमी की ठीक - ठीक परख कर पाना कठिन कार्य है तथा कोई भी एक सिद्धांत ऐसा नहीं है जिसके द्वारा यतार्थ उद्यमी को उद्यमी का ढोंग मात्र करने वाले से अलग किया जा सके. यह संभव है कि भविष्य में कोई ऐसा सिद्धांत विकसित किया सके परंतु तब तक विभिन्न पद्धतियों के सम्मिलित उपयोग पर ही निर्भर रहना होगा.
उद्यमीयता पर उपलब्ध सीमित साहित्य के अध्ययन से उसकी परख के तीन मार्ग दिखाई पड़ते हैं :
1- व्यक्तित्व के लक्षणों पर आधारित सिद्धांत :
आरंभ में उद्यमी के अध्ययन व परख के क्षेत्र में इसी पद्धति का बोलबाला रहा है और इसे मनोवैज्ञानिकों का समर्थन भी प्राप्त रहा. परंतु व्यक्तित्व के परीक्षण के जो साधन विकसित हुए वह न केवल अपर्याप्त थे वरन वे सभी परिस्थितियों मैं और सब जगह उपयोग किये जाने के लिए अनुपयुक्त भी थे, तथा बिना किसी विशेषज्ञ के उन उपायों को व्यवहारित करना भी निरापद नहीं था.
2- क्षेत्रीय सिद्धांत ( Field Theory ) :
इस सिद्धांत के अनुसार व्यक्तित्व के गुण या लक्षण उन सामाजिक परिस्थितियों से अटूट रुप से जुड़े होते हैं जिसमें व्यवहार व कार्य किया जाता है. वास्तविकता तो यह है कि सामाजिक परिसर से अलग व्यक्तित्व का उचित अध्ययन किया ही नहीं जा सकता . इस सिद्धांत से इस प्रश्न का उत्तर मिलता है कि ' भावी उद्यमी कहाँ है ?' यह सिद्धांत इस बात पर बल देता है कि उद्यमी के चुनाव में उनके सांस्कृ्तिक तथा परिस्थितिजन्य कारकों पर ध्यान दिया जाना चाहिये और उद्यमी के विकास के लिए स्थानीय संसाधनों के आधार पर क्षेत्रों के विकास का मार्ग अपनाया जाना चाहिये. अनेक अध्ययनों द्वारा इस सिद्धांत की सार्थकता भी पर्याप्त मात्रा में सिद्ध हुई है.
3- कृ्त्य का सिद्धांत ( Role Theory ) :
यह सिद्धांत भावी उद्यमी की परख में उसके द्वारा किए गए या किए जा रहे कार्यों , व्यापारों और व्यवहार पर बल देता है. इसके द्वारा ' भावी उद्यमी क्या कर रहे हैं ' इस प्रश्न का उत्तर मिलता है.
4- C.P.K.P. ( Choice of persons in key position )
इस सिद्धांत के अंतर्गत सर्वेक्षक किसी क्षेत्र विशेष के विकास कार्यों से संबद्ध महत्वपूर्ण व्यक्तियों से संपर्क द्वारा अनुरोध करता है कि वे अपने परिचितों में से कुछ ऐसे व्यक्तियों की सूची बना दें, जिनके विषय में वे सोचते हैं कि उनमें औद्योगिक इकाई को स्थापित करने की क्षमता व रुझान है . ऐसी कई सूचियों में जो नाम कई बार आयें , उनसे बातचीत करके उन्हें भावी उद्यमी के रुप में चुना जा सकता है .
अंत में यह कहा जा सकता है कि उद्योग साहसिक के भावी कृ्त्य का निरुपक, प्रशिक्षण , उद्यमी की परख और उसके विकास के लिए सशक्त उपाय है. कई संस्थाओं के अनुभव इस बात की पुष्टि करते हैं कि उद्यमियों की क्षमताओं को विकसित करने के लिए उन्हें प्रशिक्षण प्रदान करना अति आवश्यक है . विगत कुछ वर्षों में इसी आशा से अनेक संस्थाओं ने भावी उद्यमियों के प्रशिक्षण का कार्य आरंभ किया है और सरकार उसके महत्व को समझते हुए उदारतापूर्वक वित्तीय सहायता दे रही है.
- ऋषभ शुक्ल
From the Diary of Madhumita ............
God Almighty
Love is Awesome because 'God is Love'
I wish the whole world, people of every skin, race, religion, group, state and country; a very happy new year. May God bless you with all the good things of life in abundance….
Many thanks for all of your appreciations and feedbacks... I don't have much word to express my regard for all the support that i'v gotten from you all since my first manifestation...
Now as we welcome the New Year, full of things that have never been... new challenges, new experiences and new opportunities perhaps waiting for you...
I will try to bring a shift to my writing this time though i can’t promise to throw light upon that issue which had not been discussed before... I can expand on my perspective of seeing an issue and my connection to any entity...
One thing which I would like to share is that when i was going through variety of situations and circumstances, little did I know then which i am realizing now, how much fuller and complete one's life become when he/ she shares a piece of it with friends, family and well-wishers...
So, i am here to bring light on the beauty and power of love... I often wish I could inspire others as life has inspired me through. For truly, as we all know, we are all here to help, inspire, to love and be loved... less than this is just surviving, not living in true sense...
I am a people's person, love being surrounded by nice and friendly people, i mean who doesn't want?
I am an emotional creature just by seeing any old friend's/family's picture or a thought of them makes me nostalgic... I love to make good friends with whom i can talk for year even every day. But only once in your life, I truly believe, you find someone who can completely turn your world around. You tell them things that you’ve failed to share with others and they absorb each and every talk of yours still want to hear more. You share hopes for the future, dreams that will never come true, unachieved goals and the many disappointments life has thrown at you and they will understand... they show excitement even in your small achievements. They don’t feel embarrassed if u cries upon anything. Never do they hurt your feelings or make you feel like you are not good enough, but rather they make you feel that you are special and beautiful... You can be yourself and not worry about what they will think of you because they love you for who you are.
Today i would like to unfold my equation with a person and a city...
New Girl in a Whole new World- I had an eager to step into new city and Delhi is that city which has everything that u can ever imagine... history, culture, food, fun, life, temples etc... I brought up in not so big city, Kanpur. so stepping into a Giant-city like ND was little off-beat for me... and random, horrified incidences in Delhi use to scare the hell out of me but I promised I won't let anything comes in between me and things that I always dreamt of...
No one - can be you- Delhi had been well-known place to me since the time when I use to visit my Granny’s in childhood… though I dint have much knowledge about the places…
My lone journey starts from the most filthy, nastiest and crowded place of Delhi, Sangam Vihar. Though we confined to manage one way or another… because the college has lodged all of us there and also because not everything in this world is Blissful and that goes for the capital as well.
There will always arise some frustration when you start a new journey but don’t let the annoyance drag you down, keep a positive attitude. Though I was not so confident and optimistic person till I met someone who was full of live then and now. He was my college mate. He dint have any best friend though he considers each and every individual his friend and believed we should hate the sins not the sinner. Initially I didn’t so want to know about his goals but he sure knew how to enjoy every moment of life… When I look back I wonder if the joy of writing and dreaming would have been the same without his thoughts, if the evenings would have been the same bright and colorful without his presence and, sharing a bowl of maggi… . Laughter now seems part of daily life where before it was infrequent or didn’t exist for me at all… I don’t deny that I faced lot of difficulties staying here, I mean things don’t always turnout how you want them to be… but a phone call or two during the day helps to get you through every hard situation, always brings a smile to your face and helps you to keep your head high…
The city has given me so much, but his friendship is a real treasure… what an amazing bond I mean where my story of childhood woe and heartbreak’s being so insignificant and invaluable for the world it becomes so significant for someone. And now I am not forced to be so reasonable and practical. Coz I am good in my own way…
Something miraculous about the Tea(chaa) of CR(CHITTARANJAN- home to large bengali community and affluent neighborhood of South Delhi ) park market you can even spice it up with tasty and flavorsome muri and ghugni (chola). But the most fascinating thing of South Delhi for me would always be Iskcon, I have never known to anything like this till my elder sis took me there. Iskcon’s connecting all its Devotees worldwide in a large extent… No, don’t get me wrong I am not that spiritual person and definitely not a sworn believer of any community or group or society. I became fond of it when the special friend of mine insisted me to visit there long back… What fascinates me is that it’s beyond nationality or races and brings in me a sense piece… just a quiet calmness exist everywhere in the compound… When I came here my goals were not so clear but I knew one thing that I am not going to enjoy the corporate life for long… I always wanted to be people’s person and the Krishna consciousness awakens my original consciousness, enlightened my path, helped me to see within and achieve my goal to connect with people…
His Divine Grace A.C Bhaktivedanta Swami Prabhupada- He is the founder of International Society of Krishna Consciousness and widely regarded as the world’s pre-eminent exponent of the teachings and practices of Bhakti-yoga (Devotional yoga) to the western world. You will become fond of his grace by observing his qualities and reading his books like Light of Bhagvata, The Journey of Self-Discovery, Back to God Head magazine, The Nectar of Devotion and many more….
Divine insight of Swami Prabhupada- Abhay Charan De( Swami Prabhupada’s actual name) had born in Calcutta on Sep1 1896, as a youth he become involved with Mahatma Gandhi’s civil disobedience. A famous spiritual leader Srila Bhaktisiddhanta Sarasvati had become his mentor; he followed his master’s path of devotion and wisdom. Though didn’t get adequate support from people to flourish his knowledge till 1965, at the age of seventy that he would set off on his mission to the west. He suffered two heart-attacks during his journey to New-York… He struggled for lively- hood then, so started leading Kirtans & giving classes on Bhagavad-gita. He established Iskcon for the purpose of working for real unity and piece…
Hypnotic trance of Hare Rama Hare Krishna- The divine sound of Hare Rama Hare Krishna transport you to a different world… The 24-hour Kirtan singing, chanting and dancing made my heart explode with love and joy for the lord’s holy names…Though lot of people complains that the society gives more privilege to affluent people. According to them the foreigners and Rich who pay fat cash as donation, gets preference for membership. `but as far as I am concern I try to see any entity as a whole, I am so happen to be fond of all good things which gives a definite direction to my positive thoughts…My life had never been so simple like others I had qualities but lacked in self-confidence, just a thought of facing enormous crowd and strange people use to make me uncomfortable…
And I have that confidence in me to be the change which I want to see in others. It gives me power to fight with my insecurity whether I am in midst of Darkest place…
Poise of a devotee- Though I don’t call myself a great devotee but Krishna consciousness definitely gave a lift to my consciousness… You see, no matter what culture or country you belong to or what place you choose to visit, the utmost importance would to connect with people and exploring new horizons. So, my humble request is whether you are in Bangalore, Delhi, Kolkata, Vrindavan, Los Angeles, Canada… and so on, visit IsKcon to satiate your heart, mind and soul........This New Year Invoke auspiciousness through the power of the Holy names…. And interesting part is you don’t have to try so hard for it it’s Like when you sit in front of a fire in winters- you are just there in front of fire… You don’t have to be wise or anything… the fire warms you ultimately, God’s grace and his mercy are just like that…
‘HARI BOL’
आपके पत्र
आपके पत्र ..... आपका नज़रिया :
* ऋषभ जी व स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन परिवार को नमस्कार !
आपकी ई- पत्रिका का हर अंक एक विशेष अनुभूति लेकर आता है. अगस्त अंक में प्रकाशित सुंदरता के सही मायने बतलाता ऋषभ जी द्वारा लिखित संपादकीय अत्यंत रोचक लगा. पत्रिका के सभी स्थायी स्तंभ बेहद उच्चस्तरीय व पठनीय होते हैं . एक- एक स्तंभ को बेहद खूबसूरती के साथ प्रस्तुत किया जाता है . ऐसी पत्रिका मैंने अभी तक कभी नहीं देखी जिसमें अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारियों को इतने सटीक शब्दों में प्रस्तुत किया जाता है कि इसका हर अंक संग्रहणीय है .
पत्रिका में प्रकाशित चित्रांकन तो मानो आठवां अजूबा हो . सच्चाई तो यह है कि पत्रिका की वेबसाइट पर क्लिक करते ही व्यक्ति उसमें घुसता सा चला जाता है .इतना आकर्षण , इतनी सारी रोचक व महत्वपूर्ण बातें , इतना सुंदर साहित्य और क्या कहूँ , शब्दों की कमी सी मह्सूस हो रही है.
दो टूक बात कहूँ तो सौंदर्य का सही अर्थ क्या है और एक सुंदर सपनों सी सुंदर नगरी का यदि उदाहरण प्रस्तुत करना हो तो स्वप्निल सौंदर्य ई- ज़ीन इसका सीधा व सटीक उदाहरण है .
स्वप्निल सौंदर्य ई- ज़ीन के आगामी अंकों का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा. पत्रिका के उज्जवल भविष्य के लिए हमारी शुभकामनायें.
- डा. मीरा श्रीवास्तव , दिल्ली
* स्वप्निल सौंदर्य ई- ज़ीन में प्रकाशित सभी लेख मेरे परिवार की सेहत और सौंदर्य के साथ जीवन शैली को भी निखारने में बेहद सहायक हैं. 'साहित्य' स्तंभ में अभी तक प्रकाशित सभी कवितायें : 'अधूरा प्यार', 'घुटन' , 'वो दिव्यपुँज' , दिल को छू गईं. 'विशेष' स्तंभ तो वाकई विशेष है . 'रुद्राक्ष', 'लीगल टिप्स' , 'colours of the spirit ' बेहद रोचक लगे. एक सही जीवन शैली किसे कहते हैं .प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में किन - किन बातों का समावेश होना आवश्यक है ? जहाँ आपकी ई- पत्रिका फैशन , लाइफ़स्टाइल , सौंदर्य ,पकवान, इंटीरियर्स आदि के बारे में हमें अवगत कराती है और हमारी जीवन शैली को निखारने हेतु अनेक जानकारियाँ उपलब्ध कराती है वहीं दूसरी ओर 'कड़्वा सच्' जैसे स्तंभ हमें हमारे समाज की घिनौनी सच्चाईयों से हमारा सामना कराते हैं.'धर्म , संस्कृ्ति व संस्कार' हमें हमारी भारतीय परंपराओं और महान पौराणिक इतिहास् से रुबरु कराते हैं.
ई ज़ीन को उच्चस्तरीय बनाने लिए जो मेहनत की जाती है वो काबिले तारीफ है . एक -एक पेंटिंग बेहद मनमोहक होती है . कवर पेज बेहद सजीव और सुंदर होते हैं.
आपकी पूरी टीम को ढेर सारी हार्दिक शुभकामनायें.
- नूपुर सोगानी, उज्जैन
* युवा सोच को उजागर करती एक शानदार ई- पत्रिका . नि: संदेह आपकी ई- पत्रिका आधुनिक समाज , आधुनिक परिवेश व आधुनिक टेक्नोलॉजी का आईना है परंतु इस पत्रिका में हमारे देश की मिट्टी की खुशबू भी है . पहले मुझे लगा कि यह पत्रिका केवल युवा वर्ग के लिए तैयार की गई है . पर जब इससे जुडना प्रारंभ किया तो अहसास हुआ कि ये एक ऐसी पत्रिका है जो हर उम्र के लोगों के लिए वरदान है . क्योंकि इसमें युवा सोच को बेहद परिपक्वता व संजीदगी के साथ प्रस्तुत किया गया है . जून अंक में प्रकाशित रुद्राक्ष पर जानकारी अत्यंत रोचक लगी. पत्रिका के खूबसूरत आवरण , पृ्ष्ठ सज्जा व कवर पेजेस पर नज़र ठहर सी जाती है. ऐसी पत्रिका जिसमें ज्ञान और भावनायें शामिल हों, की तलाश मुझे हमेशा रहती है और यह तलाश स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन की बेबसाइट व ब्लॉग पर आकर रुकती है. बधाई व आभार !
- लीना शर्मा
पुणे , महाराष्ट्र
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Congratulations on showing such talented work in your magazine.
- Hiren Patel, Ahmedabad
* मेरी पुत्री ने मुझे आपकी पत्रिका का गतांक पढ़ाया . इससे पूर्व में कुछ ब्लॉग्स को नियमित रुप से पढ़ती थी . मैं स्वयं एक ब्लॉगर भी हूँ परंतु ऐसी पठनीय सामग्री जो दिल को छू जाए , उसकी मुझे कमी सी मह्सूस होती थी . बाकि खानापूर्ति के लिए कुछ भी पढ़ लो . परंतु स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन में उपलब्ध विविध जानकारियाँ काफी दिलचस्प लगीं. अब मैं और मेरी बेटी साथ में नियमित आपकी पत्रिका का पाठन करते हैं. मेरी पुत्री को सौंदर्य और फैशन व लाइफस्टाइल में दी गई जानकारियों व टिप्स का इंतज़ार रहता है तो मुझे रेसिपीज़, शख्सियत , धर्म , संस्कृ्ति व संस्कार का .' कड़वा सच' में प्रकाशित खरी- खरी बातें दिल को चीर कर रख देती हैं पर शायद इसी लिए कहा जाता है कि सच कड़वा होता है . बहुत - बहुत प्रेम व आशीर्वाद .
- राखी त्रिपाठी , लखनऊ
प्रिय पाठकों !
आपकी ओर से निरंतर प्राप्त हो रही सकारात्मक प्रतिक्रियाओं के लिए 'स्वप्निल सौंदर्य ई ज़ीन' की पूरी टीम की तरफ से आप सभी को हृ्दय से आभार . अपने आशीर्वाद, प्रेम व प्रोत्साहन की वर्षा हम पर सदैव करते रहें . आपकी टिप्पणियों , सलाहों एवं मार्गदर्शन का हमें बेसब्री से इतंज़ार रहता है . पत्रिका के लिए आपके लेख, रचनायें आदि सादर आमंत्रित हैं. कृ्प्या अपने पत्र के साथ अपना पूरा नाम ,पता, फोन नंo व पासपोर्ट साइज़ फोटो अवश्य संलग्न करें.
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- स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन टीम
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सुंदरता के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती अत्यंत रोचक एवं प्रभावशाली ई- पत्रिका .
ReplyDeleteई - कैलेंडर लाजवाब है . बधाई
love this ezine.
ReplyDeleteits wonderous . keep going . congrats to editorial team .
- Mridula Verma
स्वप्निल जी द्वारा लिखित, ' आखिर कब होगा दुष्कर्मों का अंत ' ... ने झकझोंर कर रख दिया . प्रभावशाली व गंभीर लेखनी के लिए स्वप्निल सौंदर्य ई- ज़ीन टीम को बधाई व शुभकामनाएं
ReplyDelete- कामिनी राय
कुमार प्रतीक जी की कविता ....' अब कुछ समझ न आए ' दिल को छू गई . आवरण व पृ्ष्ठ सज्जा मनमोहक है . बधाई
ReplyDelete- दीपा मेहता
found this online magazine , interesting and informative . very well written , well presented .
ReplyDeletemesmerised by all the pantings .
Vikas Pathak
Thanks for explaining love in such great way . editorial by Rishabh ji is truly amazing . salute to your art and writing skills .
ReplyDeleteAtul
Rishabh , you are really an amazing artist .very nice art and literature .fabulous ezine
ReplyDeleteRavi kiran
"रिश्ता बनाना है, रिश्ता निभाने के लिये,
ReplyDeleteजीवन के अन्त तक साथ निभाने के लिये,
प्यार में जीने और प्यार में मर जाने के लिये,
सर्वस्व प्यार में लुटाने के लिये,
प्यार में खो के प्यार का हो जाने के लिये,
प्यार के रंग में रंग जाने के लिये,
पतंगे की भांति ही आग में जल जाने के लिये,
प्यार में प्यार का हो जाने के लिये."
वाह ! ऋषभ जी . बहुत सुंदर पंक्तियाँ . प्रेम के असल मायने इससे और अधिक खूबसूरती से शायद ही कोई बयां कर पाए.
प्रेम रस में सजी चित्रकारी बेहद उमदा व सजीव है . मानो एक - एक कलाकृ्ति अभी बाहर आ जाएंगी .
सुंदरता, साहित्य , कला व बेहतरीन जीवन शैली का सशक्त संगम ...' स्वप्निल सौंदर्य ई - ज़ीन ' .
ReplyDelete- मुकेश लांबा
धर्म, संस्कृ्ति व संस्कार के अंतर्गत प्रकाशित लेख ' गरुण पुराण के अनुसार मौत का स्वरुप' वाकई हृ्दय में कँपन भी करता है और यह अहसास भी कराता है कि क्यों सदाचारी लोग सदैव अच्छे कर्म करने की बात कहते हैं .... हम सभी को सकारात्मक जीवन शैली अपना कर , सच्चाई व ईमानदारी से जीवनयापन कर अपने जीवन पथ पर अग्रसर होना चाहिये वरना मौत भी बेहद दर्दनाक ही नसीब होगी .. बहुत - बहुत धन्यवाद इस लेख को प्रकाशित करने के लिए .
ReplyDelete- डॉ चित्रा उन्नीकृ्ष्णन
Articles by new writers , Kumar Prateek , Divya Dixit ,Madhumita banerjee are praiseworthy . Editorial is always the main highlight . Thanks for sharing Interview with Neelam ji . It will inspired others to come forward and do some contribution for the welfare of our society . Keep going !
ReplyDeleteAneeta Kashyap
पत्रिका के इस अंक में प्रकाशित लेख उद्यमीयता विकास , मुंहासे दूर करने के लिए उपाय व फ्रिली फै़शन बहुत अधिक रोचक लगे .
ReplyDeleteप्रस्तुतिकरण बेहतरीन व अचंभित कर देता है . आपकी पेंटिग्स पत्रिका में मानो जान फूँक देती हैं . बहुत - बहुत आशीष व बधाई .
डा. मीरा श्रीवास्तव
article based on Gareun Puran is simply great and fantastic . great presentation . best wishes for the coming issues
ReplyDeleteरोचक एवं सुंदर पत्रिका.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और रोचक पत्रिका...हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeletewell done . lovely content . keep up the good work .
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा संकलन है ... साहित्य से लेकर समाज से जुडी हर बात को बाखूबी संकलित किया है ...
ReplyDeleteबधाई ...
fascinating and captivating ezine.
ReplyDelete- Sudeepa Mahajan
beautiful and informative ezine that is inspiring a great interest in its readership
ReplyDelete- Mira Shetty
बेहतरीन ई ज़ीन . सुंदर आवरण से लैस मनमोहक व उत्साह एवं उमंग भरने वाली पत्रिका . बधाई .
ReplyDelete- यश कुशवाहा
This ezine is so attractive that it can hold anybody's attention by its charm , irresistible features and extra-ordinary content .
ReplyDeletewaiting for its next issue. The poetry by Kumar Prateek , Garun Puran ( DEATH ) by Rishabh ji are commendable .
- Kusum Chandra
A big salute to swapnil saundarya team . Live like King size and " MAKE YOUR LIFE JUST LIKE YOUR DREAM WORLD ".
ReplyDeleteI can easily connect with its interesting articles, paintings and beauty and can relate myself with this beautiful e magazine . Though the concept is new for Indian market and audience but you are doing a great job . Preserving Indian culture and beauty + providing a better lifestyle solutions. Thanks !!!!!!!!
- Nisha Jain
प्रेम के सही मायनों को बतलाती रोचक , अद्वितीय व अदभुत ई -पत्रिका. संपादक गण को ढेर सारी शुभकामनायें.
ReplyDeleteप्रदीप निगम