स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन : Vol- 01, Issue- 5 , March - April 2014 - 2nd Part

स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन :  Vol- 01, Issue- 5 ,  March - April 2014



Swapnil Saundarya e-zine :                               

Swapnil Saundarya is a bi-monthly online magazine ( e-zine ) .It is a typical lifestyle e-zine that encourages its readership to make their life just like their dream world . The e-zine permanently published columns on Beauty, literature, fashion and lifestyle tips, recipe, interiors, career, society, travel, film and television, remedies,  famous personality, religion and many more.


कैरियर

विज़ुअल मर्चेंडाइज़िंग  :

बेहतरीन लाइफस्टाइल की होड़ में आज हर व्यक्ति तेजी से दौड़ रहा है . आज हर उपभोक्ता बाज़ार में अपनी पसंद के अनुरुप वस्तुओं की गुणवत्ता की परख के साथ- साथ अपने दाम का पूरा मोल भी चाहता है. ग्राहकों की इसी सोच व उनकी संतुष्टि के लिए आज हर छोटे- बड़े शहरों में मॉल कल्चर पूर्णतया स्थापित हो चुका है . लोगों ने इसे अपनाया भी है. पर फिर भी प्रश्न यह उठता है कि आखिर बड़े- बड़े शॉपिंग मॉल्स , डिपार्टमेंटल स्टोर्स और सामान्य प्रोड्क्ट्स में डील करने वाले एक से एक बड़े ब्रांड के बीच गतिशील प्रतिस्पर्धा में आखिर किस प्रकार उपभोक्ता को अपनी अपनी ब्रांड की तरफ आकर्षित करें. उपभोक्ता को अपने प्रोड्क्ट की ओर आकर्षित करने की इसी होड़ में ज़रुरत उभर कर आती है विज़ुअल मर्चेंडाइज़र की .
यदि आपमें  क्रिएटिव एबिलिटी के साथ-साथ टेक्निकल स्किल्स भी विद्यमान हैं और आप रिटेल सेक्टर में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाना चाहते हैं तो निश्चित ही विज़ुअल मर्चेंडाइज़िंग का क्षेत्र आपके लिए उत्तम है. इस संदर्भ में सबसे पहले जानते हैं कि विज़ुअल मर्चेंडाइज़िंग है क्या?

विज़ुअल मर्चेंडाइज़िंग ग्राहकों के समक्ष अपने उत्पाद ( प्रोड्क्ट ) को खूबसूरत, आकर्षक व बेहतरीन ढंग से प्रस्तुत करने की एक कला है. विज़ुअल मर्चेंडाइज़िंग  एक ऐसी कुँजी है जिसके द्वारा हम ग्राहकों को अपने प्रोड्क्ट की ओर आकर्षित कर सकते हैं. या यूँ कहें कि यह एक कलात्मक मीडियम है अपने प्रोड्क्ट को ग्राहकों के सामने प्रस्तुत करने का.

कई संस्थानों में यह होर्स इंटीरियर डिज़ाइन व फै़शन डिज़ाइन के पाठयक्रम  के साथ जोड़्कर पढ़ाया जाता है. वैसे आप इंडियन रिटेल स्कूल व मुद्रा इंस्टीटयूट आफ कम्यूनिकेशन में विज़ुअल मर्चेंडाइज़िंग के कोर्स में दाखिला ले सकते हैं जिनकी अवधि 3 माह से एक वर्ष के बीच होती है.

योग्यता :
विज़ुअल मर्चेंडाइज़िंग में दाखिले के लिए किसी भी विषय में ग्रेजुएशन कम से कम 50 प्रतिशत अंकों सहित उत्तीर्ण होना अनिवार्य है . दाखिला प्रवेश परीक्षा व साक्षात्कार  के आधार पर होता है. कई निजि संस्थानों में 10+2 के बाद भी प्रवेश संभव है.

विषय की प्रकृ्ति :
विज़ुअल मर्चेंडाइज़िंग के अंतर्गत रिटेल डिज़ाइन , स्टोर प्लानिंग एंड स्टोर डिज़ाइन मैनेजमेंट , स्पेस मैनेजमेंट , कलर साइक्लॉजी , ग्राफिक्स, साइनेज, लाइटिंग, प्रॉप्स , मैनिक्वीन हैण्डलिंग, प्लानोग्राम, फिक्चर्स एंड फिटिंग्स ,स्टोर इंटीरियर एंड एक्स्टीरियर डिज़ाइन, कन्ज़यूमर बिहेवियर, न्यू एज कस्टमर, इन्ट्रोडक्शन टू रिटेल, स्टोर एट्मोसफेरिक्स, थीम्स का प्रयोग आदि के बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान की जाती है.

कार्य :
एक विज़ुअल मर्चेंडाइज़र का कार्य अपने स्टोर की ब्रांड इमेज और अपने प्रोड्क्ट को प्रतिस्पर्धी ब्रांड से आगे रखना होता है. इसके लिए किस अवसर में किस प्रकार के थीम का प्रयोग कर अपने प्रोड्क्ट को ग्राहक के समक्ष प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करें और हर पल ग्राहक को ये सोचने पर मजबूर कर दें कि अब इससे नया और अधिक खूबसूरत क्या हो सकता है. इसके साथ -साथ एक वी. एम अपने सेल्स स्टाफ को भी वी. एम हेण्डलिंग से संबंधित ट्रेनिंग प्रदान करता है जिससे उसकी अनुपस्थिति में भी स्टोर की वी. एम से संबंधित कार्य प्रणाली में विघ्न न उत्पन्न हो.

आवश्यक क्षमताएं :
यदि आप विज़ुअल मर्चेंडाइज़िंग के क्षेत्र में अपना कैरियर तलाश रहे हैं तो यह बहुत ज़रुरी है कि आपमें कलात्मकता, रचनात्मकता के साथ- साथ अच्छे कम्यूनिकेशन स्किल्स , टेक्निकल स्किल्स , फै़शन ट्रेंड्स के बारे में जानकारी , टीम में कार्य करने की क्षमता के साथ -साथ आप स्ट्रेस टेकर भी हों क्योंकि महत्वपूर्ण सीज़न व त्योहारों में जब अत्यधिक सेल बढ़ जाती है तो ग्राहकों को रिझाने के लिए हर पल अपनी कलात्मकता को ग्राहक संतुष्टि के लिए सही आकार प्रदान करने की ज़िम्मेदारी भी एक वी. एम. की ही होती है.

संभावनाएं :
कोर्स संपूर्ण करने के उपरांत शॉपिंग मॉल्स, डिज़ाइनर बुटीक, होटल, सेट डिज़ाइनिंग , रिटेल स्टोर, राष्ट्रीय - बहुराष्ट्रीय रिटेल ब्रांड व टेक्सटाइल इण्डस्ट्रीस में बतौर वी. एम नियुक्ति होती है. यदि भारत के अलावा एब्राड की बात करें तो यू.के, यू. एस. ए, दुबई , इटली, जर्मनी जैसे देशों में भी बेहतरीन कैरियर की संभावनाएं हैं.

वेतन :
एक कुशल वी. एम. शुरुआती स्तर पर 8-12 हजार से बीच आसानी से कमा सकता है . कार्य कौशल व अनुभव के आधार पर वेतन में तेजी से बढो़त्तरी होती है.यदि बतौर फ्रीलॉन्स वी. एम . कार्य करते हैं तो प्रति विंडो डिस्प्ले के 20, 000 रु. तक कमाए जा सकते हैं.


कड़वा सच

बाल शोषण - एक घिनौना अपराध :








आज की भाग - दौड़ भरी ज़िंदगी में हम स्वयं अपनी ही जीवन शैली व दैनिक कार्यों में कुछ इस कदर उलझ जाते हैं कि हमारे समाज को खोखला करने वाले अपराधों को दूर करने के लिए क्या सार्थक प्रयास किए जाएं , इस बारे में सोचना भी नहीं चाहते .

जब हमारे साथ या हमारे अपनों के साथ कुछ गलत होता है तो बस शुरु हो जाता है ब्लेमगेम . उदाहरण , पुलिस ने अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी नहीं निभाई , सरकार ने सख़्त नियम नहीं बनाए इत्यादि . पर सच तो यह है कि दूसरों पर दोषारोपण करने के बजाए हम जरा सा समय निकाल कर खुद ये सोचें कि हमारे सभ्य समाज में होने वाले अपराध , हमारी स्वयं की ज़िंदगी पर भी कभी न कभी , कहीं न कहीं प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं, तो शायद इनसे निपटने के तरीके भी स्वयं हमारे सामने आ जाएं. हमारे समाज में फैली एक ऐसी ही गंदगी है - बाल शोषण ,जो हमारे समाज ही नहीं बल्कि संपूर्ण राष्ट्र , हमारे देश के भविष्य को अंधकार की ओर ले जा रही है.
' बाल शोषण ' वह घिनौना कृ्त्य है जो एक अबोध बालक की मानसिकता व उसके जीवन को झकझोर कर रख देता है. बाल शोषण हमारे समाज पर एक बेहद बदनुमा दाग है जिसकी जड़ें न सिर्फ शहरों में बल्कि गाँवों में भी फैली हुईं हैं जो एक बच्चे के कोमल मन-मस्तिष्क को तमाम विकृ्तियों से भर उनके संपूर्ण जीवन को बर्बाद कर विनाश की ओर ढकेल सकता है.
बाल - शोषण का सीधा तात्पर्य किसी भी बच्चे को शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक स्तर पर जान- बूझकर क्षति पहुँचाना है. इसके अंतर्गत किसी भी बच्चे की सामान्य जरुरतों को पूरा न करना , दुर्व्यवहार या हानिजनक व्यवहार , दुर्वचन, गाली, अपशब्दों का प्रयोग, बच्चे के आत्मसम्मान के विरुद्ध कार्य करना , बच्चे पर ध्यान न देना, उनकी उपेक्षा करना या ख्याल न रखना, उनको स्नेह से वंचित रखना, मारना, पीटना , अत्यधिक श्रम करवाना या किसी भी प्रकार का शारीरिक या मानसिक दुराचार करना जैसे अक्षम्य अपराध सम्मिलित हैं.
कोई भी बच्चा यदि दुर्भाग्यवश बाल शोषण का शिकार हो जाए, तो वह डिप्रेशन, मेंटम डिसआर्डर , सेक्शुअल प्राब्लम्स जैसी गंभीर परेशानियों की चपेट में आ सकता है. इसलिए इस विकृ्ति का हमारे समाज से जड़ - मूल समेत सर्वनाश करने के लिए हमें स्वयं जागरुक होना पड़ेगा.
यदि आपको ऐसा प्रतीत हो रहा है कि आपक बच्चा कुछ गुम सुम सा हो गया है तो उससे उसकी परेशानी को जानने की कोशिश करें. यदि संभव हो तो एक योग्य काउंसलर की मदद लें . स्वयं माँ- बाप को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि ज़िंदगी की भाग - दौड़ व परेशानियों को खुद पर हावी न होने दें क्योंकि कहीं न कहीं बड़ों की ही मानसिक कुंठाओं व विकारों का शिकार बनते हैं , अबोध बच्चे.

अपने बच्चों का धैर्यपूरवक ध्यान रखें, उन्हें बेहतर से बेहतर परवरिश दें और साथ की साथ उन्हें उनके अधिकारों से भी अवगत कराएं . उनके साथ मित्रवत व्यवहार करें. उनकी परेशानियों को समझें. यदि किसी प्रकार की अनहोनी की आशंका हो तो तुरंत सख़्त कदम उठाएं व बच्चों को भी प्रोत्साहित करें ताकि वे मौखिक बन पूरी हिम्मत व सावधानी के साथ स्वावलंबी बन स्वयं जागरुक रहें व एक बेहतर पथ पर सफलतापूर्वक अग्रसर होते रहें.


-स्वप्निल शुक्ल



इंटीरियर्स

रंग भरे जीवन में :

जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के साथ ही हमारी भावनाओं पर भी रंगों का गहरा प्रभाव पड़्ता है. विभिन्न रंगों के प्रति हमारी प्रतिक्रिया भी अलग - अलग होती है . अपने आस पास के वातावरण में कोई नया रंग जोड़ने पर उसका सकारात्मक व नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. कुछ रंग हमारे मन- मस्तिष्क को उत्साह, उमंग व जोश से भर देते हैं, तो कुछ रंग मन को शांति व आराम प्रदान करते हैं. रंगों का असर हमारी भावनाओं पर भी पड़ता है . कारण, हर रंग की अपनी अलग वेवलेंथ और ऊर्जा होती है. इसलिए अपने लिविंग स्पेस के लिए किसी भी रंग के शेड्स को चुनते समय इनके महत्व को समझ लेना बहुत जरुरी है. तो आईये इसी संदर्भ में बात करते हैं कलर साइकॉलजि की व जानते हैं कि कौन सा रंग किस प्रकार हमारे जीवन को प्रभावित करता है व कौन सा रंग किस चीज़ का द्योतक है :

रेड अर्थात लाल रंग :   अग्नि , रक्त, प्रेम, शक्ति, रोमांस, क्रोध, उत्तेजक, कर्मठ, भोगविलास, दृ्ढ़ निश्चय, संकल्प, आत्मशक्ति व प्रेरणा का द्योतक है.

पिंक अर्थात गुलाबी :   सौम्यता, शांति, रुमानी, प्रेम विषयक व प्रसन्नता का प्रतीक है .

आरेंज अर्थात नारंगी :   आकांक्षा , समाजिकता , मानसिक शक्ति प्रदान करने वाला, कलात्मकता, मित्रता, मिलनसारता का प्रतीक .

येलो अर्थात पीला :   सूर्य की तरह शक्ति प्रदान करने वाला, उज्जवलता , प्रेरणा, प्रसन्नता , आशावादिता, मानसिक प्रोत्साहन व बुद्धिमत्ता प्रदान करने वाला. आत्मविश्वास, खुशियाँ, व्यवहारिकता का प्रतीक .
   
ग्रीन अर्थात हरा :   नई ज़िंदगी , उमंग , समृ्द्धि व स्थिरता का प्रतीक है. यह आँखों को आराम प्रदान करता है. शांतिपूर्ण वातावरण बनाने की क्षमता रखने वाला ये रंग तनाव से मुक्त रखता है.

ब्लू अर्थात नीला :   आकाश का रंग, समुद्र की गहराई  , जल तत्व , आशावादिता,  सुरक्षा, शांति , मानसिक शक्ति, बुद्धिमत्ता व कार्यकुशलता का प्रतीक है.

पर्पल अर्थात बैंगनी :   इस रंग को शांति , रहस्य, भव्यता, उच्च आदर्श, आध्यात्मिकता , ध्यान व सहजबुद्धि का प्रतीक माना जाता है.

टरक्वाइज़ अर्थात फिरोज़ी :   यह रंग आशावादिता, रुपांतरण, बदलाव व बेहतर स्वास्थ का प्रतीक है.

व्हाइट अर्थात श्वेत :   शीतल, स्थिर व्यक्तित्व का परिचायक, आदर्शवादिता , पवित्रता, निष्कपटता का प्रतीक यह रंग मस्तिष्क को निश्चिंत रखता है.

ब्लैक अर्थात काला :   काला रंग अन्य सभी रंगों को अपने अंदर समा लेता है. यह रंग तीव्रता, औपचारिकता, व दक्षता का प्रतीक माना जाता है. परंतु काले रंग का उपयोग बेहद सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिये क्योंकि ये निराशावादिता व अकेलेपन का भी द्योतक होता है.


 - ऋषभ शुक्ल



धर्म, संस्कृ्ति व संस्कार

गरुण पुराण -   नर्कों का स्वरुप  :




गरुण पुराण में  नरकों के विभिन्न स्वरुप् व भेदों के बारे में विस्तृ्त जानकारी दी गई हैं, जिनमें जाकर पापी जन अत्यधिक दुख एवं कष्ट भोगते हैं. गरुण पुराण के अनुसार नर्क तो हज़ारों की संख्या में हैं, जिनकी चर्चा असंभव है परंतु मुख्य - मुख्य नर्कों की विवेचना निम्नवत है :

'रौरव ' नामक नर्क अन्य सभी की अपेक्षा प्रधान है. झूठी गवाही देने वाला और झूठ बोलने वाला व्यक्ति रौरव नामक नर्क में जाता है. इसका विस्तार दो हज़ार योजन है . जाँघभर की गहराई में वहाँ दुस्तर गड्ढा है. दहकते हुए अंगारों से भरा हुआ वह गड्ढा पृ्थ्वी के समान बराबर ( समतल भूमि - जैसा) दिखता है. तीव्र अग्नि से वहाँ की भूमि भी तप्तांगार जैसी है. उसमें यम के दूत पापियों को डाल देते हैं. उस जलती हुई अग्नि से संतप्त होकर पापी उसी में इधर उधर भागता है . उसके पैर में छाले पड़ जाते हैं, जो   फूट्कर बहने लगते हैं. रात दिन वह पापी वहाँ पैर उठा- उठा कर चलता है. इस प्रकार वह जब हज़ार योजन उस नर्क का विस्तार पार कर लेता है, तब उसे पाप की शुद्धि के लिए उसी प्रकार के दूसरे नर्क में भेजा जाता है.

'महारौरव ' नामक नर्क पाँच हज़ार योजन में फैला हुआ है. वहाँ की भूमि ताँबे के समान वर्णवाली है . उसके नीचे अग्नि जलती रहती है. वह भूमि विद्युतप्रभा के समान कांतिमान है. देखने में वह पापी जनों को महा भयंकर प्रतीत होती है. यमदूत पापी व्यक्ति के हाथ -पैर बाँधकर उसे उसी में लुढ़्का देते हैं और वह लुढ़कता हुआ उसमें चलता है. मार्ग में कौआ, बगुला, भेड़िया, उलूक , मच्छर और बिच्छू आदि जीव-जन्तु क्रोधातुर होकर उसे खाने के लिए तत्पर रहते हैं. वह उस जलती हुई भूमि एवं भयंकर जीव - जन्तुओं के आक्रमण से इतना संतप्त हो जाता है कि उसकी बुद्धि ही भ्रष्ट हो जाती है. वह घबड़ाकर चिल्लाने लगता है तथा बार- बार उस कष्ट से बेचैन हो उठता है. उसको वहाँ कहीं पर भी शांति प्राप्त नहीं होती है. इस प्रकार इस नरकलोक के कष्ट भोगते हुए पापी के जब हज़ारों वर्ष बीत जाते हैं, तब कहीं जाकर मुक्ति प्राप्त होती है.

इसके बाद जो नरक है , उसका नाम  ' अतिशीत' है. वह स्वभावत: अत्यंत शीतल है . महारौरव नरक के समान ही उसका भी विस्तार बहुत लंबा है. वह गहन अंधकार से व्याप्त रहता है. असह्य कष्ट देने वाले यमदूतों के द्वारा पापीजन लाकर यहाँ बाँध दिये जाते हैं. अत: वे एक दूसरे का आलिंगन करके वहाँ की भयंकर ठंड से बचने का प्रयास करते हैं. उनके दाँतों में कटकटाहट होने लगती है . उनका शरीर वहाँ की ठंड से काँपने लगता है. वहाँ भूख- प्यास बहुत अधिक लगती है. इसके अतिरिक्त भी अनेक कष्टों का सामना उन्हें वहाँ करना पड़्ता है . वहाँ हिमखण्ड का वहन करनेवाली वायु चलती है, जो शरीर की हड्डियों को तोड़ देती है. वहाँ के प्राणी भूख से त्रस्त होकर मज्जा, रक्त और गल रही हड्डियों को खाते हैं. परस्पर भेंट होने पर वे सभी पापी एक दूसरे का आलिंगन कर भ्रमण करते रहते हैं. इस प्रकार उस तमसावृ्त नरक में मनुष्य को बहुत से कष्ट झेलने पड़ते हैं.


जो व्यक्ति अन्यान्य  असंख्य पाप करता है , वह इस नरक के अतिरिक्त ' निकृ्न्तन ' नाम से प्रसिद्ध दूसरे नरक में जाता है. वहाँ अनवरत कुम्भकार के चक्र के समान चक्र चलते रहते हैं, जिनके ऊपर पापीजनों को खड़ा करके यम के अनुचरों के द्वारा अँगुलि में स्थित कालसूत्र से उनके शरीर को पैर से लेकर शिरोभाग तक छेदा जाता है. फिर भी उनका प्राणान्त नहीं होता . इसमें शरीर के सैकड़ों भाग टूट- टूट कर छिन्न - भिन्न हो जाते हैं और पुन: इकट्ठे हो जाते हैं. इस प्रकार यमदूत पापकर्मियों को वहाँ हज़ारों वर्ष तक चक्कर लगवाते रहते हैं. जब सभी पापों का विनाश हो जाता है , तब कहीं जाकर उन्हें उस नरक से मुक्ति प्राप्त होती है. 


- ऋषभ शुक्ल



शख्सियत

हिन्दी कथा साहित्य की श्रेष्ठ लिखिका : शिवानी



गौरा पंत , हिन्दी साहित्य जगत में जाना माना नाम जो  ' शिवानी ' के नाम से प्रख्यात हैं . हिन्दी- कथा साहित्य में शिवानी की जो लोकप्रियता है, वह विरले ही लेखकों को मिल पाती है. शिवानी का जन्म  17 अक्टूबर 1923 को राजकोट, गुजरात में हुआ. इनके पिता श्री अश्विनी कुमार पाण्डेय , उस समय राजकुमार कॉलेज , राजकोट के प्रधानाचार्य थे. शिवानी ने नौ वर्ष टैगोर के शांतिनिकेतन में अपने भाई व बड़ी बहन के साथ गुज़ारे. 1943 में शिवानी ने विश्वभारती से स्नातक की उपाधि प्राप्त की.




शिवानी की पहली लघु कहानी  1935 में एक बच्चों की हिन्दी पत्रिका में प्रकाशित हुई . तब शिवानी की उम्र मात्र 12 वर्ष थी. 1951 में धर्मयुग में उनकी कहानी ' मैं मुर्गा हूँ ' के प्रकाशित होते ही , गौरा पंत से वे शिवानी बन गईं और सफलता व प्रसिद्धी का शिखर चढ़ने लगीं. उनका पहला उपन्यास , ' लाल हवेली' प्रकाशित हुई और इनकी अन्य कहानियाँ निरंतर हिन्दी पत्रिका ' धर्मयुग ' का हिस्सा बनती रहीं.
शिवानी को हिन्दी के अतिरिक्त अन्य भाषाओं जैसे संस्कृ्त, बंगाली, अंग्रेज़ी, गुजराती व उर्दू पर भी बेहतर पकड़ थी. हिन्दी साहित्य में इनके अतुल्य योगदान के लिए इन्हें 1982 में पदमश्री से सम्मानित किया गया.

शिवानी प्रचुर मात्रा में रचनाएँ सृ्जन करने वाली एक प्रतिभासंपन्न लेखिका थीं. 'चौदह फेरे' , 'कृ्ष्णकली' , 'रति विलाप' , 'लाल हवेली' , 'यात्रिका' , 'विषकन्या'  आदि इनके अत्यंत  लोकप्रिय उपन्यास व कहानी हैं.

अपने जीवन के अंतिम समय के दौरान शिवानी ,ने आत्मचरितात्मक लेखन का प्रारंभ किया. दुर्भाग्यवश 21 मार्च 2003  को वे इस दुनिया को अलविदा कह गईं. उनकी पुत्री इरा पाण्डेय ने शिवानी के जीवन पर ' दीदी- माई मदर्स व़ॉइस ' नामक उपन्यास् लिखा जो पेंग्विन  द्वारा 2005  में प्रकाशित हुआ.

हिन्दी साहित्य जगत की श्रेष्ठ लिखिका शिवानी जी को हमारा सलाम .


- सुमन त्रिपाठी.





From the Diary of  Akanksha ...............

वो  'अनजान कूची- कूची'




प्यार किया नहीं जाता , हो जाता है. टीन एज के प्यार को प्यार नहीं कहा जा सकता , उसे आकर्षण कहना उचित होगा . आज मेरी उम्र 38 वर्ष है . शादी शुदा हूँ और पति और अपने बच्चे के साथ खुशहाल जीवन जी रही हूँ . एक मल्टीनेशनल कंपनी में उच्च पद पर आसीन हूँ . ज़िंदगी बहुत आगे बढ़ गई है. बचपन में जो सपने देखे , वे लगभग पूर्ण हो चुके हैं. बहुत कुछ करना बाकी भी है पर संतुष्टि इस बात की है कि चलो ! कार्य प्रगति पर है........... पर फिर भी टीन एज का मेरा वह पहला प्यार या आकर्षण , को मैं अभी भी भूल नहीं पाई. पता भी नहीं कि उसके दिल में मेरे लिए वही जज़्बात थे भी या नहीं . कैसे पता चलता कभी उससे बात ही नहीं हुई . नाम तक नहीं पता कर पायी . बस एक वर्ष के लिए ही तो आया था वो हमारे विद्यालय में .. मैंने उसका नाम 'अनजान कूची- कूची' रखा था . अपनी सहेलियों के साथ उसके साथ वैवाहिक जीवन की प्लानिंग करती थी . कभी- कभी हम सहेलियों में लड़ाई भी इस बात पर हो जाती थी कि  'अनजान कूची- कूची' के दिल में आखिरकार है कौन ???????

'अनजान कूची- कूची' एक बेहद सुंदर युवक था. श्चेत वर्ण , काले घुंघराले बाल , भूरी आँखें, सुडौल शरीर , वी- शेपड बॉडी , उसके घुंधराले बालों का गुच्छा सदैव उसके माथे पर रहता था . जी करता था जाकर उसके बालों को नोच डालूँ , इतना प्यारा लगता था वो  'अनजान कूची- कूची' ........ मैं तो अपने मन्- मंदिर में ही उसे अपना भावी जीवन साथी मान चुकी थी . शायद वो भी यह जानता था . मुझसे वह उम्र में बड़ा था ...... एक बार तो स्कूल के एक कार्यक्रम के दौरान बस जी चाहा कि अपने प्यार का इज़हार खत के जरिये कर ही दूँ .. खत लिख भी डाला पर फिर एक लंबी साँस खींच कर एक नज़र एग्ज़ाम्स की डेट शीट पर डाली तो प्यार का सारा बुखार उतर गया .. रही बात खत की तो उसे पवित्र अग्नि के हवाले कर दिया ..इस उम्मीद के सहारे कि कोई साक्षी बने न बने पर मेरे और मेरे  'अनजान कूची- कूची' के पवित्र प्रेम की साक्षी ये पवित्र अग्नि जरुर बनेगी. एग्जाम्स खत्म हुए .... कभी कभी वो भी मुझे चुपके से देख लेता था और उसकी कटीली आँखे मुझे देख रही हैं ,इस अहसास से ही मेरे चारों ओर मानो वायलिन बजने लगे हों. शीतल हवा चलने लगी हो और मैं बस स्तब्ध रह जाती थी . फिर मेरी उस जटिल स्थिति को मेरे प्राचार्य की कड़क आवाज़ ही मुझे वापस होश में लाती थी . आज भी मेरी और उसकी ,वो आखिरी नज़र वाली मुलाकात याद है मुझे . उस दिन उसका हमारे विद्यालय में आखिरी दिन था . वो अपने दोस्तों को अलविदा कहने आया था . स्कूल ड्रेस से परे वो कैशुअल ड्रेस में था . उसके श्वेत वर्ण पर काला लिवाज मानो कहर ढा रहा था . मैं उसके लिए अपने आकर्षण को रोक न पायी और अपनी कक्षा की दहलीज़ पर खड़े होकर उसे निहारे जा रही थी .. मेरी सहेलियों ने कहा अकांक्षा थोड़ा ओवर हो रहा है .... पर मुझे सुध कहाँ थी ..... तब तक वो  'अनजान कूची- कूची' अपने दोस्तों से गले - वले मिल चुका था , अब  उसके जाने का समय हो गया था .. जाते जाते उसने एक बार बड़े की मासूमियत और प्रेम से मेरी ओर देखा और मुस्कुराया ..... हाय ! मैं तो वहीं ढेर हो गई . और वो हमेशा के लिए चला गया . घर जाकर पूरे 5 घंटे मैं बहुत रोई . पर 5 घंटे के बाद माँ ने चाय के लिए आवाज़ दी और फिर अपनी पढा़ई में लग गई . शायद मेरा सो काल्ड टीन एज के सच्चा प्यार् को भुलाने के लिए 5 घंटे ही पर्याप्त थे . ज़िंदगी किसी के लिए नहीं रुकती .. वो तो गतिशील है . पर भी कभी- कभी वो  'अनजान कूची- कूची' यादों में आ ही जाता है .



अपने पति को मैंने इन सब के बारे में पहले ही बता दिया था और आज भी जब कभी बात करती हूँ तो मेरी इन बातों को बचपना कह कर जोर- जोर से हँसने लगते हैं. कभी मेरी और उनकी लड़ाई होती है , हर पति - पत्नी में खटपट होती है तो मैं , जब भी प्राय: नराज़गी में उनसे कहती हूँ कि , " आप से शादी  करके गलती की , मुझे अपने टीन एज के प्रेम को ही सीरियसली लेना चाहिये था , अगर मैं ऐसा करती तो शायद ज़िंदगी अलग होती " ... आश्चर्य होता है कि मेरी इस बात पे उनकी सारी नाराज़गी दूर हो जाती है और वे एकाएक हँसते हुए मुझे चिढ़ाते हैं कि 38 वर्ष की बुढ़िया हो गई हो पर अभी भी बचपना नहीं गया  और शीनू की मम्मी ! आप की इसी अदा के तो हम कायल हैं...... मेरा बेटा भी मेरी इन बातों पर हँसता है और मुझे चिढ़ाते हुए कहता है कि माँ आपने अपने टीन एज के प्यार को सीरियस नहीं लिया तो क्या हुआ , आपका बेटा आपका यह सपना अवश्य पूरा करेगा ........ वह मेरा मूड खुश करने के लिए प्राय : ऐसा मज़ाक करता है . ...... ये सब देख कभी कभी बेहद भावविभोर हो जाती हूँ कि अच्छा हुआ कि मैंने अपने टीन एज के प्यार को मात्र आकर्षण मान , ज़िंदगी में आगे बढ़्ती रही वरना क्या मुझे इतना खूबसूरत परिवार , पति और बेटा प्राप्त होता जो मुझे इतना अच्छे से समझते हैं .... ज़िंदगी की व्यस्तता के बावजूद मेरी बचपन की भावनाओं की भी इतनी कद्र करते हैं और हर वक़्त मुझे अहसास कराते हैं कि मैंने टीन एज की उस कोमल अवस्था में कितने सही निर्णय लिए ......जिस अवस्था में प्राय: बच्चे गलत संगति या सही मार्गदर्शन के अभाव में गलत फैसले ले लेते हैं और जीवन भर के लिए अपने लिए मुसीबतों के पहाड़ खड़े कर लेते हैं, उस अवस्था में अपने आकर्षण को मात्र आकर्षण मान ही जीवन पथ पर आगे बढ़ते हुए मैंने कोई गलत निर्णय नहीं लिया . मेरी माँ कहती थीं , आज उनकी वह सीख बहुत याद आ रही है.. वे कहती थीं कि, " जीवन में हर कार्य का एक सही और निश्चित समय होता है ... व्यक्ति को धैर्य , संयम, उचित, अनुचित के बारे में ठीक प्रकार से सोच- समझ कर पूर्णत: सूझ बूझ के साथ जीवन पथ पर आगे बढ़ना चाहिये न कि क्षणिक सुख और अपने मानसिक विकारों की भूख को तृ्प्त करने हेतु ऐसे कोई कृ्त्य नहीं करने चाहिये जिनका खामियाज़ा ज़िंदगी भर भुगतना पड़े. " . माँ ! आपकी यह सीख मुझे आज भी याद है और इस विरासत रुपी सीख से अपने बच्चे को भी रुबरु कराऊँगी . थैंक्यू माँ .... थैंक्यू भगवान !


- आकांक्षा  सिंह




आपके पत्र


आपके पत्र ..... आपका नज़रिया :


स्वप्निल सौंदर्य ई - ज़ीन सचमुच जागरुकता की नई रोशनी है, जो समाज में फैले अंधविश्वासों, कुरीतियों को भगा रही है . पत्रिका की सामग्री मात्र बिकने वाले तथ्यों या व्यक्तियों के बजाए जीवन में संघर्ष कर स्थान हासिल करने वालों की जीवनगाथा से परिपूर्ण होती है , जो प्रेरणादायक होती है .
 
आशा है स्वप्निल सौंदर्य ई- ज़ीन भविष्य में भी इसी तरह नकारात्मकता का अंत कर कलम के माध्यम से जनजागरण की मशाल जलाती रहेगी.

- विशाखा गुप्ता , नोएडा 


loved the fourth issue of SWAPNIL SAUNDARYA EZINE .  Thanks for throwing light on career in visual merchandising . I would like to be a VM now and your ezine truly inspired me for this . I am so happy that I caught your beautiful ezine and Yes, it makes my life just like my dream world . Thanks and Best wishes .

- Smita Narang , Punjab 


स्वप्निल सौंदर्य ई- ज़ीन का जनवरी- फरवरी 2014 अंक अति आकर्षक लगा . इसमें प्रकाशित उद्यमी की पहचान व गरुण पुराण के अनुसार मौत का स्वरुप बेहद पसंद आया . चित्राकन हमेशा की तरह बेहद सजीव व मनमोहक थे . उत्कृ्ष्ठ प्रस्तुति के लिए संपादकीय टीम को आभार व शुभकामनाएं.
श्री ऋषभ जी से अनुरोध है कि अपनी ई-पत्रिका में एक अन्य कॉलम की शुरुआत करें जो 'कन्फेशन्स ' पर आधारित हो . जहाँ लोग खुल कर अपनी बात रख सके और अपने जीवन के कुछ अनछुए व अनकहे पहलुओं को पत्रिका के माध्यम से बाँट सकें . आशा है , आपको यह सुझाव पसंद आएगा. आभार .

- रमित चव्हाण  , नासिक


मैंने अपने  लैपटॉप में एक फोल्डर बना कर रखा है ....जो आपकी पत्रिका के नाम पर सेव किया है ...इसमें आपकी पत्रिका के हर अंक को संग्रह कर  के रखा है ..... श्रेष्ठ साहित्य , कला व सौंदर्य का संगम स्वप्निल सौंदर्य ई- ज़ीन के प्रत्येक अंक होते ही इतने आकर्षक और अनमोल हैं कि वे स्वत: ही संग्रहनीय हो जाते हैं. पत्रिका के द्वितीय अंक में ऋषभ जी द्वारा लिखित संपादकीय में सुंदरता के जो सही मायने बताये गए हैं, वे वाकई काबिले- तारीफ हैं. हिंदी भाषा में होते हुए भी यह पत्रिका अन्य भाषी शहरों  में भी अपनी लोकप्रियता की मिसाले गढ़ रही है. बहुत जल्द ही यदि यह छोटे - बड़े हर शहर के बुक स्टॉल्स की शोभा बने और सुंदरता बढ़ाये तो यह हम पाठकों के लिए हर्ष का विषय होगा . शुभकामनाओं सहित ,

- पंकज रंगवानी



बहुत सारी खूबसूरत चीज़ों का सुंदर संकलन . छोटी सी खूबसूरत सी दुनिया जैसी है स्वप्निल सौंदर्य पत्रिका . लुभावनी पेंटिंग्स के साथ बेहद महत्वपूर्ण बातें व मुद्दों को बड़ी ही सहजता व खूबसूरती के साथ प्रकाशित करती पत्रिका . आभार व ढेरों शुभकामनायें.

- नीरज सभरवाल


प्रिय पाठकों !

आपकी ओर से निरंतर प्राप्त हो रही सकारात्मक प्रतिक्रियाओं के लिए 'स्वप्निल सौंदर्य ई ज़ीन' की पूरी टीम की तरफ से आप सभी को हृ्दय से आभार . अपने आशीर्वाद, प्रेम व प्रोत्साहन की वर्षा हम पर सदैव करते रहें . आपकी टिप्पणियों , सलाहों एवं मार्गदर्शन का हमें बेसब्री से इतंज़ार रहता है . पत्रिका के लिए आपके लेख, रचनायें आदि सादर आमंत्रित हैं.  कृ्प्या अपने पत्र के साथ अपना पूरा नाम ,पता, फोन नंo व पासपोर्ट साइज़ फोटो अवश्य संलग्न करें.

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Comments

  1. बेहतरीन व प्रेरणादायी पत्रिका . विभिन्न वस्तुओं की विधिवत जानकारियाँ प्रदान करने हेतु धन्यवाद .

    - वीणा सेन

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  2. सुजाता वर्मा2 March 2014 at 03:08

    आदर्श प्रस्तुतिकरण . बधाई

    - सुजाता वर्मा

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  3. अदिति सिन्हा .2 March 2014 at 03:14

    पत्रिका के कॉलम 'कड़्वा सच्' के जरिये समाज को खोखला करने वाले मुद्दों पर पूर्ण साह्स व बेबाकी के साथ खरी- खरी बातें , मन-मस्तिष्क को हिला डालती हैं. स्वप्निल जी को बहुत - बहित आभार इतनी सशक्त तरीके से इन बातों को उजागर करने के लिए व इनसे निपटने के उपाय बतलाने के लिए .

    शुभकामनायें.

    - अदिति सिन्हा .

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  4. मधु चंद्रा .2 March 2014 at 03:35

    रंग भरे जीवन में व नर्कों का स्वरुप लेख बेहद प्रभावी लगे . पत्रिका को पढ़ना अत्यधिक रोचक लगा और संतुष्टि मिली .
    आगे भी इसका हिस्सा बनूँगी . आभार !

    - मधु चंद्रा .

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  5. Anupriya Sharma2 March 2014 at 03:41

    This article वो 'अनजान कूची- कूची', From the Diary of Akansha ............... is truly awesome and outstanding. it reminds me my school days . Infact, i also get inspired FROM THE DIARY OF AKANSHA and would love to send my real life experience ... hope being so generous , you will give it a place in your tremendously beautiful and cool e-zine Swapnil Saundarya . Thanks and Regards:

    Anupriya Sharma

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  6. a very nice ezine ...awesome content and paintings

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  7. अपनी पत्रिका के माध्यम से बाल शोषण जैसे मुद्दों को उठाने के लिए बहुत- बहुत बधाई व आभार .
    आपके साहसी लेखन को सलाम !

    - उत्कर्ष शर्मा

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  8. JUST LOVE THE PRESENTATION. THIS EZINE IS COMPLETELY INCREDIBLE .
    BEST WISHES .


    - Vikas Patil

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  9. lovely read . Thanks for sharing so many info under one roof . congrats


    Tanu Charan


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  10. पारुल श्रीवास्तव9 March 2014 at 05:59

    पत्रिका को प्रिंट्स में निकलवाने का भी प्लान बना लीजिये ऋषभ जी . मुझे पूरा विश्वास है कि मार्केट में उप्लब्ध अन्य पत्रिकाओं के लिए आपकी पत्रिका तगड़ा कांप्टिशन पैदा करने की शक्ति रखती है . प्रिंट्स में आते ही ये धूम अवश्य मचायेगी . विश्वास मानिये बहुत से लोग जुड़ना पसंद करेंगे इतनी सुंदर व सशक्त पत्रिका के साथ . आभार व शुभकामनायें.

    पारुल श्रीवास्तव .

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