Diary of a Journalist ......Sarvesh Mishra !!
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Diary of a Journalist ......Sarvesh Mishra
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स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन - परिचय
कला , साहित्य, फ़ैशन, लाइफस्टाइल व सौंदर्य को समर्पित भारत की पहली हिन्दी द्वि-मासिक पत्रिका के चतुर्थ चरण अर्थात चतुर्थ वर्ष में आप सभी का स्वागत है .
फ़ैशन व लाइफस्टाइल से जुड़ी हर वो बात जो है हम सभी के लिये खास, पहुँचेगी आप तक , हर पल , हर वक़्त, जब तक स्वप्निल सौंदर्य के साथ हैं आप.
प्रथम, द्वितीय व तृतीय वर्ष की सफलता और आप सभी पाठकों के अपार प्रेम व प्रोत्साहन के बाद अब स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन ( Swapnil Saundarya ezine ) के चतुर्थ वर्ष को एक नई उमंग, जोश व लालित्य के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है ताकि आप अपनी ज़िंदगी को अपने सपनों की दुनिया बनाते रहें. सुंदर सपने देखते रहें और अपने हर सपने को साकार करते रहें .तो जुड़े रहिये 'स्वप्निल सौंदर्य' ब्लॉग व ई-ज़ीन के साथ .
और ..............
बनायें अपनी ज़िंदगी को अपने सपनों की दुनिया .
( Make your Life just like your Dream World )
Launched in June 2013, Swapnil Saundarya ezine has been the first exclusive lifestyle ezine from India available in Hindi language ( Except Guest Articles ) updated bi- monthly . We at Swapnil Saundarya ezine , endeavor to keep our readership in touch with all the areas of fashion , Beauty, Health and Fitness mantras, home decor, history recalls, Literature, Lifestyle, Society, Religion and many more. Swapnil Saundarya ezine encourages its readership to make their life just like their Dream World .
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Founder - Editor ( संस्थापक - संपादक ) :
Rishabh Shukla ( ऋषभ शुक्ला )
Managing Editor (कार्यकारी संपादक) :
Suman Tripathi (सुमन त्रिपाठी)
Chief Writer (मुख्य लेखिका ) :
Swapnil Shukla (स्वप्निल शुक्ला)
Art Director ( कला निदेशक) :
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'स्वप्निल सौंदर्य - ई ज़ीन ' ( Swapnil Saundarya ezine ) में पूर्णतया मौलिक, अप्रकाशित लेखों को ही कॉपीराइट बेस पर स्वीकार किया जाता है . किसी भी बेनाम लेख/ योगदान पर हमारी कोई ज़िम्मेदारी नहीं होगी . जब तक कि खासतौर से कोई निर्देश न दिया गया हो , सभी फोटोग्राफ्स व चित्र केवल रेखांकित उद्देश्य से ही इस्तेमाल किए जाते हैं . लेख में दिए गए विचार लेखक के अपने हैं , उस पर संपादक की सहमति हो , यह आवश्यक नहीं है. हालांकि संपादक प्रकाशित विवरण को पूरी तरह से जाँच- परख कर ही प्रकाशित करते हैं, फिर भी उसकी शत- प्रतिशत की ज़िम्मेदारी उनकी नहीं है . प्रोड्क्टस , प्रोडक्ट्स से संबंधित जानकारियाँ, फोटोग्राफ्स, चित्र , इलस्ट्रेशन आदि के लिए ' स्वप्निल सौंदर्य - ई ज़ीन ' को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता .
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चेतावनी : 'स्वप्निल सौंदर्य - ई ज़ीन ' ( Swapnil Saundarya ezine ) में घरेलु नुस्खे, सौंदर्य निखार के लिए टिप्स एवं विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों के संबंध में तथ्यपूर्ण जानकारी देने की हमने पूरी सावधानी बरती है . फिर भी पाठकों को चेतावनी दी जाती है कि अपने वैद्य या चिकित्सक आदि की सलाह से औषधि लें , क्योंकि बच्चों , बड़ों और कमज़ोर व्यक्तियों की शारीरिक शक्ति अलग अलग होती है , जिससे दवा की मात्रा क्षमता के अनुसार निर्धारित करना जरुरी है.
संपादकीय
नमस्कार पाठकों,
आप सभी के प्रेम व आशीर्वाद के कारण हम भारत की पहली हिंदी द्वि-मासिक ई पत्रिका स्वप्निल सौंदर्य ( Swapnil Saundarya ezine ) के तीन वर्ष सफलतापूर्वक संपूर्ण कर चुके हैं. अब हम स्वप्निल सौंदर्य ई ज़ीन के चतुर्थ चरण के पथ पर अग्रसर हैं. गत वर्षों में हमने विभिन्न मुद्दों पर पत्रिका के माध्यम से चर्चा की. सौंदर्य की सही परिभाषा को आत्मसात किया. स्वप्निल सौंदर्य एक लाइफस्टाइल ई पत्रिका है पर पत्रिका के कंटेट को सीमित न करते हुए हमने इसके जरिये कई सामाजिक मुद्दों को गहराई से समझा व पूर्ण संवेदनाओं के साथ इन्हें उजागर किया. पत्रिका में हमने कला, फ़ैशन, लाइफस्टाइल, साहित्य से जुड़े तमाम पहलुओं को सम्मिलित किया. गत वर्ष 'लावण्या' नामक नव सेगमेंट के जरिये हमने भारतीय शास्त्रीय संगीत व नृत्य के क्षेत्र में अपनी सफलता का परचम लहरा चुके कुछ नृतक व नृत्यांगनाओं के प्रेरणादायक जीवन पर प्रकाश डाला.
इसके अतिरिक्त 'सफ़केशन' व 'एसिड' नामक ई- बुक्स द्वारा दिल में कचोटन पैदा करने वाले व मस्तिष्क को झकझोर कर रख देने वाले मुद्दों को आप पाठकों द्वारा भेजी गईं कुछ विशेष कहानियों द्वारा उजागर किया. एक ओर स्त्री विमर्श से संबंधित मुद्दों पर डॉ. आकांक्षा अवस्थी की डायरी के कुछ पृष्ठों को सम्मिलित किया गया तो दूसरी ओर एड्वोकेट प्रणवीर प्रताप सिंह चंदेल व उनके मित्रों द्वारा गरीब व असहाय बच्चों की शिक्षा व बेहतर भविष्य के लिए किए जा रहे प्रयासों को व उनके मिशन एन.जी.ओ की संरचना व कार्यप्रणाली पर विस्तृत जानकारी प्रदान की गई. स्वप्निल सौंदर्य ई-ज़ीन के चतुर्थ वर्ष का शुभारंभ हमने अधिवक्ता मीरा यादव की डायरी ( From the diary of Meera ) के कुछ अनमोल पृष्ठों से किया . नारी व्यथा व सशक्तिकरण को मर्मस्पर्शी व दृढ़्ता के साथ प्रस्तुत करती मीरा की डायरी के ये पृष्ठ सराहनीय थे. इसके अलावा स्त्री का जीवन चुनौतियों का पर्याय जैसे हृदय भेदी मुद्दों व अपने रिसर्च पेपर्स व जर्नल्स के साथ डॉ. आकांक्षा अवस्थी की डायरी निरंतर हमारी ई पत्रिका की शोभा बढ़ा रही है. इस वर्ष पत्रिका की प्रमुख लेखिका व डिज़ाइनर स्वप्निल शुक्ला के खजाने से फ़ैशन व आभूषणों पर उनके प्रकाशित लेखों के संकलन को भी प्रस्तुत किया गया. पुरुषों की जीवनशैली को समर्पित स्वप्निल सौंदर्य ई -ज़ीन की नवीन पेशकश 'दि आइसोलेटेड चैप' ( The Isolated Chap ) के प्रथम अंक को जल्द ही लाँच किया जाएगा .
स्वप्निल सौंदर्य ई ज़ीन के इस विशेषांक में हम बड़े ही गर्व के साथ आप सभी के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं एक ऐसी शख्सियत को जिनकी कलम की शरारतें सीधे दिल में उतर जाती हैं ...ये शरारतें कभी हमें हंसाती हैं तो कभी ज़िंदगी के कटु सत्य से हमारा साक्षात्कार कराती हैं और हमें गहरे द्वंद में डूबने को मजबूर कर देती हैं तो कभी हमारे समक्ष उन प्रेरणात्मक बातों का खज़ाना भी प्रस्तुत करती हैं जिसकी कभी भी किसी को भी निराशा से उबरने हेतु आवश्यकता पड़ सकती है. इलेक्ट्रानिक मीडिया के क्षेत्र से जुड़े बेबाक पत्रकार सर्वेश मिश्र की कलम से निकली कुछ शरारतों को पत्रिका में सम्मिलित करते हुए हर्ष की अनुभूति हो रही है. आशा करता हूँ , पत्रिका में प्रस्तुत प्रत्येक विशेषांक की तरह ही सर्वेश मिश्रा की डायरी ( Diary of a Journalist : Sarvesh Mishra ) के ये अनमोल पृष्ठ भी आपके प्रेम और आशीर्वाद के पात्र बनेंगे.
तो बस बने रहिये स्वप्निल सौंदर्य ई -ज़ीन के साथ और बनाइये अपनी ज़िंदगी को अपने सपनों की दुनिया.
- ऋषभ शुक्ला ( Rishabh Shukla )
संस्थापक -संपादक ( Founder-Editor )
Diary of a Journalist ..... Sarvesh Mishra
मेरी संवेदनहीनता की पराकाष्ठा
क्या मै, भावना शून्य हो गया हूँ । हाँ । शायद नहीं । पता नहीं । यही द्वंद सुबह से परेशान कर रहा है । आज मेरा साप्ताहिक अवकाश था । आदत से मजबूर , रोज की तरह आज भी देर से सो कर उठा । करीब 10.30 बजे । लेकिन आज की सुबह रोज की तरह नहीं थी । कुछ अलग हुआ । मेरे घर के सामने , मेरे दरवाज़े से दो कदम की दूरी पर दुनिया से रुखसत हो चुके एक व्यक्ति का शव पड़ा था । जहां दो चार महिलाएं बैठी थीं ।
मैं, कमरे से बाहर नहीं निकल सकता था । क्योंकि कमरे के बाहर भीड़ थी । लिहाज़ा मैं, कमरे में वापस चला आया । दिमाग में तमाम तरह की बातें हिलोरे मारने लगी थीं । कौन हो सकता है । मकान मालिक के घर का सदस्य या फिर कोई किरायेदार । आखिर यहाँ रोना पीटना क्यों नहीं है । दिन के 10.30 बज रहे हैं । लाश के पास बस चार महिलाएं । कैसा शहर है..... किससे पूछा जाए । लगता है आज की चाय भी नसीब नहीं होगी । हर रोज की चाय ठिहे पर ही होती है । सब लोग कमरे के सामने ही बैठे थे । दरअसल मेरा फ्लैट निचले तल पर है इसलिये चाहकर भी मैं बाहर नहीं जा सकता था । मुहल्ले में मातम का माहौल था । लोगों के चेहरे पर उदासी थी । घर के सामने शव पड़ा थi । हर कोई गमगीन था । मुझे आज के उप चुनाव के रिजल्ट की पड़ी थी ..... मैं, कमरा बंद करके टी.वी खोल कर बैठ गया । बाहर मातम था अंदर टी.वी चल रहा था । जैसे जैसे वक्त बढ़ता गया .......लोग आते गए । रोना पीटना बढ़ गया । इधर रिजल्ट भी आने लगा । मेरे लिये जैसे कुछ हुआ ही नहीं था । यह सही है कि मैं, मरने वाले को नहीं जानता था । फिर भी बात मेरे कमरे के सामने की थी । मानवता की थी । इंसानियत की थी । दिमाग मे कई सवाल ज्वालामुखी की तरह फटने लगे । क्या मैं वही हूँ । कुछ दिन पहले की ही तो बात है जब गांव में कभी मैयत होने पर टीवी तो दूर , 13 दिन तक मातम मनाते थे । लोग घाट नहाते थे । दाल मे हल्दी नहीं पड़ती थी । सब्जी मे तड़का नहीं लगता था । कोई खुशिया नहीं मनाता था । पूरा घर परिवार उसके दुख में शामिल था । इस शहर में ये मेरे लिये कोई पहला वाक्या नहीं था । इसके पहले भी कई बार ऐसा हो चुका था । केदार नाथ हादसे में भी कुछ ऐसा ही हुआ था । लोग विक्षिप्त थे । अपनों को खोज रहे थे । मातम का माहौल था । चारों तरफ चीख पुकार थी । मुझे लोग अपनों की जानकारी के लिये फोन कर रहे थे । और मैं उसको खबरो के तौर पर चैनल पर परोस रहा था । इससे ज्यादा कुछ कर भी नहीं सकता था । एक तरफ लाशे पड़ी थीं । दूसरी तरफ पापी पेट और बेईमान भूख ने खाने पर मजबूर किया था । बात यही नहीं खत्म होती । मामला अपनों का भी आता है । मेरे नाना जी की मौत हुई थी । खबर मुझे भी मिली । लेकिन मैं, यह सोचकर कि जो होना था सो हो गया । खबर से बेखबर होकर काम के सिलसिले में दिल्ली से भी दूर निकल गया था ...... नाना जी की मौत भी मेरे लिये मात्र एक खबर से ज्याद कुछ नहीं थी ।
सोचता हूँ जमाना बदल गया या सिर्फ मै । ये कहां आ गया हूँ यूँ ही चलते चलते ....................
दरअसल इसकी शुरुआत हुई थी वहां से जहां मैंने पत्रकारिता मे पहला कदम रखा था । पहले एक मौत देखी । फिर दूसरी । फिर तीसरी । और उसके बाद तो सिलसिला ही शुरु हो गया । एक वाक्या और याद आता है.... कहीं दूर की बात नहीं है । बस कुछ साल पहले की ही बात है.... ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेस वे पर एक जज के बेटे का एक्सीडेंट होता है । डिवाइडर पर लगे कटीले तारों ने उसकी गर्दन को धड़ से अलग कर दिया । मृत शरीर रोड पर पड़ा था । गाड़ियाँ उसके चारों तरफ से गुजर रही थीं । किसी ने उठाने की जहमत नहीं की । भला हो एक जोड़े का जिसने उसके चेहरे पर कपड़ा डाल दिया । पुलिस के जवान मूक दर्शक बने एम्ब्यूलेंस का इंतज़ार कर रहे थे । हाईवे के बीच मे बॉडी को पड़े पड़े करीब एक घंटा गुजर चुका था । जैसे किसी कुत्ते की मौत हुई हो । गाड़ियाँ अगल बगल से निकलती जा रही थीं। मैंने भी कैमरा मैन से कवर करने को कह दिया । खुद भी एक दो वॉकथ्रू मारा (वहां की रियैलिटी कैमरे मे कैद करवाई ) ....मानवता की वजह से और कर्त्तव्य कह लीजिये एस.एस.पी को फोन कर दो चार खरी खोटी सुनाई और ये भी बताया की एक मृत शरीर पिछले एक घटे से यहाँ पड़ा है । अगर जरा सी भी आप लोगों में गैरत हो तो उठवा लीजिये । जाने किसके घर का चिराग है । बारिश भी होने लगी थी ......भगवान ने भी पुलिस का काम आसान कर दिया.... सड़क से खून अपने आप धुल गया था ।
तमाम चीज़ें सामने आने लगी थीं, लिहाज़ा टी.वी बंद कर दिया । बाहर निकला ये देखने के लिये की अभी क्या हो रहा है । महिलाओं के हजूम के बीच 10 ,12 मर्द जरुर दिखे । क्या ये काफी थे । कई बार दिमाग मे आया कि इस जनाज़े के साथ चंद कदम चल कर मैं भी इस शख्स को अंतिम बिदाई दे आऊं । आखिर यह दुनिया से रुखसत हो चला है । कई बार कोशिश कर के भी कदल आगे नहीं बढ़ा सका । और जब हिम्मत बढ़ा कर फिर से दरवाज़ा खोला तो जनाज़ा निकल चुका था । अफसोस तब और हुआ.... जब ये देखा की कंधे के अभाव में उसके मैयत की डोली को कंधो पर नहीं बल्कि गाड़ी में लाद कर ले जाया जा रहा था । अनायास ही कुछ सवाल उठ खड़े हो गये ।
ये क्या हो रहा है । भावनाये जिंदा भी है मुझमें, या सब खत्म हो गयी हैं । सफलता की दो सीढ़ियाँ भी नहीं चढ़ा हूं पर भावना और संवेदना को तिलांजलि जरुर दे चुका हूं । मैं जानता था कि उससे मेरा कोई रिश्ता नहीं था । फिर भी मानवता कुछ कहती है ।
-सर्वेश मिश्रा ( Sarvesh Mishra )
टी.वी के कोठे पर पत्रकारों का मुजरा.........
कभी कभी गली के नुक्कड़ और चाय की दुकान पर भी बड़े बड़े मशवरे मिल जाया करते हैं। वैसे तो पहले चाय और पान की दुकान से ही बड़ी बड़ी सियासत तय होती थीं । तब वाकई राजनीति हुआ करती थी, लेकिन दौर बदलने के साथ ही काफी कुछ बदल गया है । फिर भी ज्ञान तो हर जगह बँटता है, इसी तरह कुछ ज्ञान मुझे भी चाय की दुकान पर मिल गया । जो मैं अब आप के साथ बाँट रहा हूं...... वैसे ये ज्ञान तो काफी कड़वा है क्यों कि मेरे पेशे से जुड़ा है, फिर भी बाँट रहा हूं । दरअसल हुआ कुछ यूँ कि एक दिन सुबह-सुबह कुछ पत्रकार मित्रों को कॉल करते हुये मैं चाय की दुकान पर पहुंचा । सुबह का समय होने के नाते चाय की दुकान पर काफी भीड़ -भाड़ थी । तभी मेरे मित्र भी आ गये । फिर आदत से मजबूर हम शुरु हो गये पहले की तरह, जैसे कभी देश-विदेश को लेकर तो कभी व्यक्ति-विशेष को लेकर चर्चा । इसी तरह उस दिन भी कश्मीर को लेकर बात-चीत चल ही रही थी। हर व्यक्ति अपनी राय रख रहा था। कुछ लोगों की नज़र में सिस्टम दोषी था तो कुछ की नज़र में सरकार नाकाबिल तो कुछ मीडिया को जिम्मेदार मान रहे थे। तभी अचानक से मेरे बगल में खड़े कुछ नौजवान दोस्त, जो हमारी बात सुन रहे थे......अचानक से बिदग गये । मानो कि हमने उनकी दुखती रग पर हाथ रख दिया हो। वो हम पर कुछ इस कदर बरस पड़े जैसे हिन्दुस्तान में आयी बाढ़ के लिये यही बादल जिम्मेदार हों । पता नहीं कब की दुश्मनी दबाये रखे थे जो अचानक से निकल आयी । फिर क्या था बिना बादल बरसात भी शुरु हो गयी। वे कहने लगे, "इन सब की जड़ आप लोग हो। क्या आप को पता है , देश को आज़ादी दिलाने वाली मीडिया आज बैसाखी के बल चल रही है । आज की मीडिया पेज 3 से लेकर सास बहू और सागा में सिमट गयी है। आप को नहीं लगता कि मीडिया बिक चुकी है "...........
उनकी बातें सुन मुझे गुस्सा आया , तभी मुझे याद आया न्यूज़ रुम का शोर कि फलाना का फोन आया खबर गिराओ , खबर गिराओ। तभी दूसरा बोल पड़ा, एक तरफ तो आप पहले खबर बना कर सनसनी पैदा करते हो, फिर समीक्षा कर खुद को हीरो बनाने की कोशिश करते हो । मैं कुछ बोलता, तभी मुझे अरुंधति रॉय , उमर अब्दुला और ललित मोदी का ख्याल आया। उसी समय पीछे से आवाज़ आती है, आज खबर बेचते-बेचते कलमकार भी बिकने लगे है । जो किसी ना किसी के लिये लिखते है और सत्ता के गलियारो की राह देखते है । आज कुछ कॉग्रेस के दरबारी तो कुछ बीजेपी के बाकि जो बचे वो कम्युनिस्ट के हो गये... कभी कलम के सिपाही सल्तनत हिला कर रख देते थे और आज सियासत में ही दम तोड़ देते है । अब पानी मेरे सर से उपर था, लेकिन मरता क्या नहीं करता । उस समय मुझे सत्ता के कुछ दरबारियों की याद आ रही थी । जो हमेशा सत्ता के गलियारों में दरबारी करते हैं । ऐसा नहीं था, कि दलीले मैं नहीं दे रहा था, पर ये जानता था, कि वो कहीं भी गलत नहीं थे। फिर भी मैं बोल पड़ा...... "पता है, आज जो भी थोड़ी बहुत अराजकता पर लगाम लगी है वो मीडिया की देन है । आपको पता है अगर मीडिया नहीं होती तो क्या होता."...... तभी मेरी बात बीच में काट एक वरिष्ठ सज्जन बोल पड़े, "हाँ गरीबो के जोर पर अमीरों का पैसा नहीं चलता, जानते हो आज क्यों किसी पर मीडिया का कोई असर नहीं रहा क्योंकि आज पैसा और पावर के चौखट पर मीडिया भी दरबार लगाती है। आज पत्रकारिता कोठे पर बैठी औरत की तरह है । जिसके पास जितना दम खम हो वो उतना इस्तेमाल कर ले ।".... इतना कहना था कि हम सब का खून खौल उठा, बात तू- तू, मैं- मैं पर उतर आयी । लेकिन फिर मैं यही सोचा माना कुछ गलत बोल रहे है पर पूरी तरह से नही यह सोच फिर चुप हो गया । एक भाई साहब थोड़ी समझदारी दिखाते हुये बोले कि ऐसा नहीं कि मीडिया पूरी तरह से गलत है पर जिस फल का आधा हिस्सा खराब हो जाय उसे क्या कहेंगे , हम आप को दोष नहीं देते अगर आप शराफत का चोला उठाये नही घूमते पर क्या करे समाज की जिम्मेदारियाँ तो आप लोगों ने उठा रखी है, । मुझे लग गया था, कि ये पब्लिक है सब जानती है , इनका कहना है कि जिसके खिलाफ आप लोग टी.वी पर चिल्लाते हैं और अखबार में लिखते हैं उन्ही के साथ शाम को पैमाने भी छलकाते हैं। तो फिर काहे का असर और काहे की पत्रकारिता .......... अब तर्क का दौर कुतर्क में बदल चुका था ऐसे में मुझे लगा की बातों को दूसरा मोड़ दे देना चाहिये और मैने ऐसा ही किया । इसी के साथ उनको यह भरोसा दिलाते हुये कि नयी पीढ़ी कुछ-ना-कुछ नया जरुर करेगी, हमने भी बिदा ली । लेकिन यह बात यहीं नहीं खत्म हुई मुझे कौंधती रही और मैं अपने आप से ही कुछ सवाल जवाब में उलझ गया। काफी सोचने के बाद निष्कर्ष तो यही था कि माना कि वो पूरी तरह से सही नहीं है, पर गलत भी नहीं है । क्योंकि आज मीडिया , मीडिया नहीं रही । यहाँ अब पढे लिखे पत्रकार न होकर व्यवसायी इसका व्यापार कर रहे हैं । यह भी सच है कि अब मीडिया की आवाज़ जनता की आवाज़ नहीं रही । आज मीडिया सत्ता पर लगाम लगाने के बजाय इसकी भेट चढ़ गयी है । इसका कारण यह है कि मीडिया के पहरेदार बिक रहे हैं और जो नहीं बिकेते वो मजबूर बैठे हैं । याद आता है, खबर गिराओ- खबर गिराओ या फिर वही लिखो या दिखाओ जो बिकता हो , भले ही खबर बनानी पड़े। आज मीडिया समाज के लिये कम और व्यक्ति विशेष के लिये ज्यादा काम करती है। यह सच है, कि आज मीडिया एक ऐसी जगह बैठी है जो कोठे से कम नहीं, और कुछ पत्रकार बोली लगाने पर मुजरा करते भी नजर आते हैं। रही बात इस फील्ड में कमिंग सून की तो छमक तो उनके पैरों से भी उसी पायल की आती है जिसे मीडिया के सरताज बाँध देते हैं। नयी पीढ़ी को आज मीडिया का क.. ख.. ग... पढ़ाने से पहले ही ये बताया जाता है ।
- सर्वेश मिश्रा ( Sarvesh Mishra )
गुरु जमबेश्वर यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एण्ड टेक्नॉलजी ( Guru Jambheshwar University of Science and Technology) से मास कम्यूनिकेशन ( Mass Communication) में परास्नातक व नोएडा ( Noida ) के आइसोम्स ( ISOMES ) द्वारा जनसंचार में परास्नातक डिप्लोमा धारी सर्वेश ( Sarvesh Mishra ) स्वतंत्र चेतना व पी 7 न्यूज़ चैनल में बतौर पत्रकार कार्य कर चुके हैं. दिल्ली , वाराणसी, लखनऊ , इलाहाबाद व उत्तराखण्ड में कार्यानुभव होने के साथ वर्तमान समय में सर्वेश इण्डिया 24 X 7 ( India 24X7 ) में अपनी सक्रिय भागीदारी दे रहे हैं.
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